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Gay Sex Story with my Straight Friends. Part 5

खाना पकने और खाने में दोपहर हो गयी. वो मेरे जीवन की सबसे लंबी दोपहर थी. उस दिन दिल्ली का मौसम भी मेरी किस्मत की तरह बदल रहा था. जब हम निकले तब तक तेज़ हवा चलने लगी थी...और हाइवे पर आते आते तो आंधी आ गयी. उमंग मुझसे चिपक कर बैठा था. उस समय तो मैं दुनिया के सबसे बड़े तूफ़ान में भी घुस जाता. मोहित ने कहीं आश्रम के पास रूम लिया हुआ था क्यूंकि वो जामिया के पास था. आधे रास्ते में बादल घिर आये. मैंने जल्दी से फोन और पर्स वागाराह लिए और पौलीथीन में रखकर बैक की सीट के नीचे रख दिए. उसके बाद मैं और उमंग बारिश का मज़ा लेटे हुए ज़बरदस्त ट्रैफिक जैम में फँस गए. भीगने के बाद जब वो मुझसे चिपक रहा था तो ऐसा मज़ा आ रहा था की लग रहा था वहीँ सेक्स शुरू कर दूं. हमको मोहित के रूम पर पहुँचते पहुँचते अच्छी खासी शाम हो गयी...रूम के नीचे गली में मोहित की बैक खड़ी देख मेरा चेहरा थोड़ा उतरा और जब रूम पर गए और वहाँ मोहित दिखा तो सारे अरमानों पर पानी फिर गया. उसने मुझे बहुत फोन किया मगर फोन अंदर रखने के कारण मुझे पता नहीं चला.

उसका रूम छोटा था. साइड में उसके पहने हुए कपड़े टंगे थे. वो उस समय खुद एक शोर्ट्स और टी शर्ट पहने हुए पहले से भी सुंदर लग रहा था. मैंने उतनी देर में देखा की उसकी जांघ काफी गोरी और चिकनी थी...और टी शर्ट के बड़े गोल गले से उसका कंधा और गर्दन भी चिकने और गोरे दिख रहे थे. मैंने उसके ही कपड़े पहन लिए और अपने सुखाने के लिए डाल दिए...उमंग ने भी कपड़े चेंज कर लिए. अब बारिश बहुत तेज़ हो रही थी. बहुत भयानक.

'बहुत जैम लग गया होगा...अब आप नहीं जा पायेंगे' उसने कहा.

फाइनली जब रात तक बारिश नहीं रुकी तो ये प्लान बना कि उस रात मैं और उमंग वहीँ रुकेंगे...एक दिन और गुजार गया और उमंग मुझे नहीं मिल पाया. भैया के घर की वो ट्रिप बाकियों के मामले में मेरे लिए लकी थी मगर उमंग के मामले में अनलकी!

रात में हमने वहीँ बाहर एक ढाबे पर खाना खाया. सिगरेट पीने में मोहित ने पहले कुछ आनाकानी करी मगर बाद में जला ली. वापस करहम काफी देर बातें करते रहे. उसके रूम में एक फोल्डिंग बेड था और नीचे एक गद्दा पड़ा था. उमंग उसी गद्दे पर लेता लेता पलट कर सो गया. सोते में वो बहुत मस्त लग रहा था. मैं बार बार मोहित से नज़र चुरा कर उमंग के जिस्म के कटाव देख रहा था. उसकी टी शर्ट कुछ उठ गयी थी...उसकी नमकीन चिकनी कमर दिख रही थी...उसके नीचे पैंट की कसी हुयी बेल्ट थी और अंदर से उसके चड्ढी की इलास्टिक झाँक रही थी. मैंने बड़ी मुश्किल से अपने आप को काबू किया.

'यहीं सो जायेंगे न भैय्या...' उसने फोल्डिंग दिखाते हुए कहा 'हाँ हाँ कोई प्रोब्लम नहीं है... यहीं अडजस्ट हो जायेंगे दोनों' मैंने कहा 'ठीक है' लेटते लेटते रात के करीब ग्यारह बज गए. मोहित ने उठ कर लाईट ऑफ कर दी और फिर रूम में बस पंखे की आवाज़ के साथ तीन लोगो की साँसें ही गूँज रही थीं.

एकदम नयी जगह थी और बिलकुल नया साथ. मुझे काफी देर नींद नहीं आई. बड़ी मुश्किल से मैं करवट ले पा रहा था और वैसे में ध्यान रखना पड़ रहा था की कहीं मोहित डिस्टर्ब ना हो या उसके जिस्म से टच न हो. किसी तरह थोड़ी बहुत कच्ची सी नींद आई. उस रात कुछ करवटें मैंने बदलीं, कुछ मोहित ने और कुछ उमंग ने. कई बार मेरा दिल किया की उठ कर नीचे उमंग के साथ लेट जाऊं और उसको बाँहों में भर लूं. जब तक मैं जगा रहा मैंने पूरा ध्यान रखा की कुछ ऐसा न हो जाए जिसपर मोहित कुछ कह दे...मगर नींद में अलग बात थी. पता नहीं कब मेरी नींद टूटी तो मैंने पाया की मैं और मोहित दोनों ही सीधे सीधे लेटे हुए थे...मेरी लेफ्ट जांघ मोहित की राईट जांघ पर चढ़ी हुयी थी और उस पर मोहित का हाथ था. और कुछ होने की उम्मीद तो थी नहीं...मैं टूटी आधी नींद में उसी अहसास का मज़ा लेता रहा. बाहर फिर से बारिश हो रही थी जिसकी आवाज़ मेरे अंदर हमेशा एक तूफ़ान मचा देती है...रूम के अंदर की हवा में एक गीलापन था जो जिस्म की गर्मी का मज़ा बढ़ा देता है.

मोहित का हाथ मेरी नंगी जांघ पर था. उसकी हथेली से चिंगारियां निकल रही थीं. ऐसे में जब किसी लड़के से फ्रैंक नहीं होता और सोने में उस तरह एक्सीडेंटल टच हो जाता है तो मैं हमेशा चुपचाप लेटकर उस टच का जब तक होता है पूरा मज़ा लेता हूँ. मोहित का हाथ उस समय मेरे घुटने और लण्ड के बीच में था और उसकी उँगलियों कि टिप्स मेरी इनर थाईस पर हलके हलके सांस लेने में टच होकर गुदगुदा रही थीं. उतनी देर में अँधेरे कमरे में मैंने इसका अंदाज़ लगा लिया था कि मोहित का हाथ मेरे लण्ड से काफी दूर था...इसलिए जब उसके अहसास से मेरा लण्ड खड़ा होने लगा तो मैंने ज़्यादा टेंशन नहीं लिया और वैसे ही चुपचाप लेटा रहा. वैसे भी हाथ उसका था...मेरा तो कुछ जा नहीं रहा था. मुझे बस उसका चेहरा याद आ रहा था. उसकी कातिल अदा. उसकी जांघ. उसकी ज़िप. उसकी मुस्कराहट. उसकी कमर. उसकी गोल टाईट गांढ़. उसकी बातें. और मैं चुपचाप लेटा था...मैंने सोचा उमंग तो मिल नहीं पा रहा है...किसी तरह मोहित के टच के सहारे ही वो रात काट लूं.

मैं साँसें रोक कर उसी पोजीशन में जमा हुया लेटा रहा...और मोहित की हथेली मेरी जांघ पर आग लगाती रही.

फिर मोहित हल्का सा हिलाडुला उसने शायद करवट बदली क्यूंकि अब उसकी साँसें मेरे चेहरे के साइड से टकराने लगीं...मुझे टेंशन था कि कहीं अब उसका हाथ न हट जाए...मगर उसका हाथ वहीँ रहा...फिर कुछ देर बाद वो हिला तो मैंने सांस रोक ली...मुझे लगा कहीं नींद में उसका हाथ मेरी जांघ से सरक न जाए...मगर वो सरका नहीं...इस बार वो थोड़ा और ऊपर आ गया...अब उसकी उँगलियों और मेरे लण्ड के बीच की दूरी थोड़ी और सिमट गयी...मेरा लण्ड अब ठनक गया था...मुझे डर था कहीं मोहित का हाथ उसपर ना पड़ जाए. मगर मैं फिर भी चुपचाप लेटा रहा. बाहर से ताबड़तोड़ बारिश की आवाज़ आ रही थी जिसके कारण मुझे अब मोहित की साँसें नहीं सुनाई दे रही थीं बस अपनी गर्दन पर उनकी गर्मी का अहसास हो रहा था. मैं आमतौर पर अजनबी लड़कों के साथ सोता नहीं हूँ...क्यूंकि मुझे खुद पर कंट्रोल नहीं रहता और पता नहीं कौन लड़का कितना बर्दाश्त करे...मगर उस रात तो मजबूरी थी. नींद टूटने के बाद तो मुझे अपने आप को कंट्रोल करना और मुश्किल हो रहा था...और उसपर से मोहित का गर्म हाथ...मेरा लण्ड अब ठनक कर शोर्ट्स में उछल रहा था. शायद प्रीकम भी निकल रहा था. बस अँधेरे का सहारा था.

फिर मोहित का हाथ थोड़ा हिला...मुझे लगा अब वो शायद मेरी जांघ पर से सरक जायेगा...मुझे उसकी अंगुलियां चलती हुयी महसूस हुयी...मेरी जांघ पर गुदगुदी की लहर दौड़ी...मेरे लण्ड में फिर उछाल आई...नींद में सोते सोते मोहित ने फिर करवट ली और इस बार मुझे लगा कि वो मेरे और करीब आ गया था. मेरे चेहरे के साइड पर उसकी साँसों की गर्मी और बढ़ गयी...अँधेरे में अंदाज़ तो नहीं था मगर अब मुझे लग रहा था कि उसका हाथ मेरे लण्ड के काफी करीब था. मैं थोड़ा डरा भी...थोड़ा घबराया...सोचा कि उसके हाथ को पकड़ कर अपनी जांघ से हटा दूं...अगर मेरी जगह मोहित होता तो शायद वो वैसा ही करता....अगर कोई पुरान दोस्त होता तो वो उसके बाद जग कर गाली देने लगता! मगर मैं लेटा रहा. मेरे दिमाग में कभी नवीन और कभी उमंग नाचने लगा...जब जब उनके बारे में सोचता मेरे लण्ड में नयी जान आ जाती...शायद मेरी नींद टूटे हुए अब बहुत देर हो चुकी थी...मैं फिर सोने की कोशिश शुरू करी...अपना ध्यान उस सब से हटाने की कोशिश करी...मगर मोहित की गर्म साँसें मुझे कचोट रही थीं...वो हर बार करमेरे चेरे से लिपट रही थीं. मैं खुद अपने लण्ड पर से अपना ध्यान हटाने की कोशिश करी...मैं थोड़ा सा कामयाब हुआ...मगर जब मुझे लगा कि मुझे अब नींद आ जायेगी...तभी मोहित का हाथ फिर हिला...और इस बार उसकी कुछ अंगुलियां मेरे सुपाड़े पर आ गयीं...उन्होंने मेरे सुपाड़े को दबा लिया...मेरे अंदर बिजली दौड़ने लगी...बहुत मुश्किल से मैंने सांस रोक कर लण्ड से ध्यान हटाने की कोशिश करी...मगर अब वो नामुमकिन सा होने लगा था. तभी मोहित की उंगलियां हिलीं...उनके हिलने से उन्होंने मेरे सुपाड़े को सहलाया...मैंने लाख रोकना चाह मगर मेरा लण्ड एकदम से उछल कर कूद गया. मैंने अब फिर सोचा की मोहित का हाथ पकड़ कर हटा दूं...क्यूंकि अगर उसकी नींद टूटी और उसका हाथ मेरे खड़े लण्ड पर हुआ तो वो भी शायद मुझे ही इलज़ाम देगा...वो सोचेगा और कहेगा की मैंने जानबूझ कर अपना लण्ड खड़ा करके उसपर उसका हाथ रखा है...मैं येही सब सोच रहा था...मैं चाह रहा था की मेरा लण्ड खामोश हो जाए...मगर जवान लण्ड एक बार खड़ा होता है तो आसानी से बैठता नहीं है...खड़ा होते ही वो खुराक ढूँढने लगता है.

मैं चाह रहा था की मोहित की नींद टूट जाये और वो मेरे लण्ड से अपनी अंगुलियां हटा ले...अभी मैं ये सोच ही रहा था की अचानक मोहित का पूरा हाथ मेरे खड़े लण्ड पर आ गया...मेरी सांस रुक गयी...अब कोई तरीका नहीं था कि मैं उससे ये बात छुपा लूं कि मेरा लण्ड खडा है. मुझे सरप्राइज़ था कि अब तक उसकी नींद नहीं टूटी है क्यूंकि मेरा लण्ड उसकी हथेली के नीचे पूरे जोश से उछल रहा था. मुझे तो मज़ा आ ही रहा था...आराम से प्रीकम भी बह रहा था. शायद मोहित की नेकर पर जो मैंने पहन रखी थी गीला सा बड़ा धब्बा भी बन गया था. मगर मैं तो जबसे उठा था उसी पोज़ में जमा हुआ लेटा था.

कुछ देर मोहित का हाथ मेरे लण्ड पर वैसे ही रहा...और मुझे अब उसका मज़ा आने लगा. अब मेरा दिल करने लगा कि जो भी हो बस कम से कम मोहित का हाथ वहाँ से नहीं हटे.

तभी मुझे उसकी उंगलियां कुछ कुलबुलाती महसूस हुयीं...पहले मुझे लगा कि लण्ड उछलने के कारण मुझे वैसा लग रहा है. मगर जब मोहित ने मेरे लण्ड पर अपनी उंगलियां फिरना शुरू करदिन तो मुझे उसका खेल समझ में आया और एकदम से मेरे लण्ड के अंदर भूचाल मच गया...फिर भी मैं अभी अपनी उसी पोजीशन में लेटा रहा. कुछ देर मोहित ने जैसे उँगलियों से मेरे लण्ड को नापा...क्यूंकि उसकी अंगुलियां मेरे लण्ड की पूरी लम्बाई पर गयीं...और फिर उसने हलके हलके अँगुलियों से ही मेरे लण्ड को पकड़ना शुरू किया तो उस रात पहली बार मस्ती के कारण मैंने एक सिसकारी भरी और जांघ थोड़ा और फैला दी. उस बात से शायद मोहित को भी अहसास हुआ कि मैं जगा हुआ हूँ...क्यूंकि उसके तुरंत बाद ही उसके हाथ की नर्वसनेस खत्म हो गयी और उसने मेरे लण्ड को मजबूती से थाम लिया. मैं तो इतनी देर से भीना भीना मज़ा लेने के बाद मूड में आ ही गया था और नहीं भी आता तो मैं इतना कुछ शुरू हो जाने के बाद तो मूड में आ ही जाता हूँ. ज़्यादातर लड़के मैंने खुद ही फंसाए थे...कभी कभी होता था कि कोई लड़का मुझे खुद सेड्यूस करे. कुछ देर मोहित मेरे लण्ड को सहलाता रहा. अब मेरे अंदर भी जिज्ञासा बढ़ी...

मैंने अपना हाथ नीचे सरकाया...और उसको अँधेरे में मोहित की टांगों के बीच ले जाने लगा तो मुझे मोहित की सांस तेज़ होती लगी...फिर मैंने अपनी मंजिल पा ली...मोहित का लण्ड भी पूरे ताव में था...वो भी खड़ा था और उछल रहा था...मैंने फ़ौरन उसको थाम लिया...उसके लण्ड में गज़ब की सख्ती थी...मैंने उसको तबियत से थाम लिया. कुछ देर हम ख़ामोशी से लेटकर एक दूसरे का लण्ड सहलाते रहे...फिर जल्दी ही मैंने मोहित की तरफ करवट ली...और अपना एक हाथ सीधा उसकी कमर पर रख करउसकी कमर सहलाने लगा...अब मोहित के जिस्म में हरकत होने लगी...मैंने मौके का फायदा उठाया और जल्दी ही अपना हाथ और पीछे सरकाकर सीधा मोहित की गांढ़ पर रख दिया और उसको सहलाने लगा. उसकी गांढ़ जितनी दिखती थी उससे ज़्यादा गदराई हुयी थी...मैंने बारी बारी उसकी दोनों फांकें मसल मसल कर दबायीं...फिर अपनी हथेली उसकी दरार में नीचे तक उसकी जाँघों के बीच तक घुसाई. अचानक मिली नयी गांढ़ को दबाने का मज़ा अलग होता है वो भी जब कोई मोहित जैसा जवान गोरा चिट्टा जानने वाला लड़का हो तो जिससे कुछ देर पहले तक इस बात की उम्मीद न हो. वैसे सच है मैं जब से मोहित से मिला था मैंने दूर दूर तक उसके बारे में ऐसा नहीं सोचा था. मगर अब मैं तबियत से उसके जिस्म का मज़ा ले रहा था. उसको शायद मेरा लण्ड पसंद आया था क्यूंकि जब मैं उसकी गांढ़ सहला रहा था तब भी बस मेरा लण्ड ही दबाये जा रहा था.

फिर मेरे अंदर भी नंगई जागी...मैंने अपनी शोर्ट्स नीचे सरका कर लण्ड बाहर निकल कर मोहित के हाथ में दे दिया. अब तो उसका हाथ मचल मचलकर मेरा लौड़ा दबाने सहलाने लगा. मैंने अँधेरे में अंदाज़ से अपना मुह आगे किया तो मेरे होंठ मोहित के गालों से टच हुए...मैंने एक हाथ से उनको सहलाया फिर अँधेरे में उँगलियों से उसके होठों को तलाशा...उसने कुछ मन नहीं किया...शायद उसको पता था की अब क्या होगा...क्यूंकि जब मैंने उँगलियों से उसके होठों को सहलाने के बाद उनपर अपने होंठ रख दिए तो वो मस्त हो गया और उसने तुरंत अपना मुंह खोल दिया जिसको मैं चपचप चूसने लगा. थोड़ा जोश बढ़ा तो चुम्मे के दौरान आवाज़ भी निकल गयी. मोहित को उमंग का डर था...मगर मुझे उससे अब कैसा डर!

मैंने घपाक से अपना हाथ मोहित की नेकर के अंदर घुसाया और फिर आराम से उसकी गांढ़ मसलने लगा और उसके होंठ चूसने में लगा रहा. मोहित की गांढ़ पर नए नए बाल थे. अभी ज़्यादा नहीं थे और रेशमी थे. उनको सहलाने में मज़ा आ रहा था और मैं उसके छेद पर ऊँगली दबाकर कुरेद भी रहा था. जब भी छेद पर ऊँगली दबाता तो मोहित मस्ती से सिसकारी भरता जिससे मुझे आइडिया लगा की उसको गांढ़ देने का चस्का है. मैंने झटपट उसकी नेकर भी घुटने तक सरकाई. हम दोनों में अब तक कोई बात नहीं हुयी थी. सब कुछ काम ख़ामोशी से हो रहा था. उसको भी नंगा करने के बाद मैंने उसकी शर्ट ऊपर उठायी और कुछ देर उसकी छाती चूमी...फिर वो मेरी छाती चूमने लगा...और उसके बाद जब मैंने उसको नीचे दबाया तो वो आराम से नीचे हुआ और मेरे लण्ड को पकड़ कर मुंह में लेकर चूसने लगा...अब क्या था...अब मैं गांढ़ भींच भींच कर उसका मुंह चोदने लगा...उसने मेरी कमर पकड़ ली...मैं गहरे धक्के दे रहा था और मोहित मंझे हुए स्टाइल में जीभ से सहलाते हुए मेरे टट्टे हाथों से दबाते हुए मेरे लण्ड को चूस रहा था. अब तो बारिश का असली मज़ा मिल रहा था. फिर जब मेरा लण्ड आउट ऑफ कंट्रोल होने लगा तो मैंने उसको मोहित के मुंह से निकाला. कुछ देर हम फिर से एक दोसोरे से लिपट गए जसी दौरान मैं कभी उसकी गांढ़ और कभी लण्ड दबाता रहा. फिर मैंने उसको पीछे घुमाया.

मैंने जैसे ही हाथ से उसको घुमाने की कोशिश करी वो खुद ही मूढ़ गया और करवट लेकर अपनी गांढ़ मेरी तरफ कर ली. मैंने कुछ देर प्यार से उसकी गांढ़ और कमर सहलाई और ऊँगली से उसके छेद को अपने लिए तैयार किया. उसका छेद और उसकी सिलवटें जल्दी ही लपलपाने लगीं...वो अब मेरे प्रीकम को मेरे लण्ड पर मसल रहा था...फिर मुझे दिल किया...मैं खुद उसके पीछे झुका और उसकी फांकों पर सहलाते हुए चुम्मा लिया तो वो मस्ती से चिहुकने लगा. तब तक हम बिना ज़्यादा हिले दुले काम कर रहे थे. मगर जब मैंने उसके छेद पर जीभ दौडाई तो उसने 'उयीई आह्ह्ह्ह्ह्ह' करते हुए काफी तेज़ सांस ली....अब मैंने उसके छेद पर अपने होंठ और जीभ जोर से दबा दिए...और खूब चाटने लगा तो वो मछली की तरह मचलने लगा...उसकी गांढ़ भरभरा कर खुल गयी. शायद वो पहले काफी गांढ़ मरवा चुका था. अब मुझे शक हुआ कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उसने उमंग को भी फंसा रखा हो. उमंग अब भी नीचे गद्दे पर सो रहा था.

कुछ देर उसकी गांढ़ चाटने के बाद मैं उसके पीछे लेता और अपने लण्ड को उसकी दरार में मसलने लगा. वो पागल होने लगा. बार बार गांढ़ पीछे धकेलता. हर बार मैं उसको पकड़ कर दबाता और सहलाता. फिर मैंने पहली बार फुसफुसाकर उसके कान में कहा 'छेद फैलाओ' उसने अपने एक हाथ से अपना छेद फैलाया 'नहीं दोनों हाथों से फैलाओ सही से चौड़ा करो' मैंने फिर कहा तो उसने अपने दोनों हाथ उसी पोजीशन में पीछे किये और अपनी गांढ़ मेरे लिए पीछे कर दी. मैंने जब अपना सुपाड़ा उसके कुलबुलाते छेद पर टच करवाया तो मेरी सिसकारी के साथ साथ उसके होठों से भी एक आह निकल गयी 'आह्ह उह्हह' कहते हुए उसने अपना छेद भींच लिया...मगर अब वो चुदवाने के लिए व्याकुल था इसलिए उसका छेद फिर ढीला हो गया...मैंने सुपाड़ा हल्का सा दबाया तो उसके गांढ़ की सिलवटें फिर टाईट हुयीं...और फिर ढीली हो गयीं...

मैं हल्का सा उठा और फिर उसके कान में फुसफुसाया 'तेल है क्या?' 'जी भईया सामने टेबल पर' उसने वैसे ही दबी आवाज़ में जवाब दिया 'ले आऊँ?' 'हाँ' उसने अँधेरे में अपनी शोर्ट्स ऊपर करी और बिजली की फुर्ती से नारियल के तेल की प्लास्टिक की बोतल उठा लाया और मुझे दे दी. मैंने अँधेरे में अंदाज़ से अपनी हथेली पर थोड़ा तेल लिया और अपने लण्ड पड़ मसल दिया...फिर वो हाथ मैंने मोहित की गांढ़ पर रगड़ दिया 'लो नीचे रख दो' मैंने अँधेरे में उसका हाथ थाम कर उसको बोतल दे दी तो उसने हाथ बढ़ा कर उसको पलंग के नीचे रख दिया. 'अब फैलाओ' मैंने उसके कान में फिर कहा. वैसे मुझे उमंग के वहाँ होने का कोई टेंशन नहीं था मगर मैं ऐसे प्रिटेंड कर रहा था जैसे मैं नहीं चाहता की उमंग को बेड पर चल रही प्रेम कहानी का पता चले.

तेल लगाने के बाद तो मेरा लण्ड मोहित की गदराई मस्त गांढ़ की दरार में आराम से फिसलने लगा. मैंने फिर उसपे हाथ फेरा और अपनी उँगलियों से अँधेरे में मोहित के सुराख को ढूँढा और जब वो मिला तो उस पर दो उंगलियां फेरीं. मोहित के अंदर एक आग थी और सेक्स की उतनी ही चाहत थी जितनी मेरे अंदर थी इसलिए उसके साथ उस बारिश की अँधेरी रात में हर चीज़ का अपना मज़ा आ रहा था.

मैंने उसके छेद की सिलवटों को अपनी ऊँगली से सहलाया तो उसने एक चाहत भरी अंगड़ाई लेटे हुए अपनी गांढ़ मेरी तरफ धकेली...अब मैंने उसके छेद के बीचोबीच दो अंगुलियां रख दिन और फिर उनमे से एक को दबाया तो मोहित के छेद की सिलवटें अपने आप कुल्बुलायीं और मेरी ऊँगली उसकी गान्ढ़के अंदर घुसने लगी...जैसे ही उसके छेद ने मेरी अंगुली को कसा मैंने पूरी ऊँगली अंदर घुसा दी...मोहित ने सिसकारी भरकर अपने छेद को भींच लिया और मेरी अंगुली पर जकड़ लिया...मुझे बहुत मस्ती आई...मैंने उसके भींचे हुए सुराख में अपनी तेल लगी अंगुली तबियत से अंदर बाहर घघुसेड़ना निकालना शुरू कर दिया...और कुछ देर में मोहित बिंदास सिस्कारियां भरने लगा जो अगर उमंग जगा होगा तो ज़रूर सुन रहा होगा. मगर मुझे अब तक पता नहीं था कि उमंग सोया है या जगा है. मैं तो बस मोहित का मज़ा ले रहा था. इस तरह से कोई अनएक्सपेक्टेड मिल जाता है तो सेक्स का मज़ा और भी ज़्यादा बढ़ जाता है. वो भी मोहित जैसा मस्त चिकना लड़का. कुछ देर के लिए मेरा ध्यान उमंग से हट गया.

मैंने अब अपने लण्ड को फिर एक हाथ से पकड़ा और सुपाड़े को मोहित के छेद और दरार पर रगड़ने लगा. लण्ड की गर्मी ने मोहित को भड़का दिया...वो अब जोर से अपनी गांढ़ पीछे करने लगा. मैंने दूसरे हाथ से उसकी कमर पदकी और उसको एक जगह रुकने का इशारा किया. फिर उसके कान में फुसफुसाया 'अब फैलाओ' मैंने अपने सुपाड़े को उसके सुराख पर टिकाया...फिर मैंने एक गहरी सांस ली जिस बीच मोहित की गांढ़ कई बार भिंची और ढीली हुयी...फिर मैंने अपना लण्ड उसपर दबाया...कुछ देर के लिए हम दोनों ने अपनी अपनी साँसें रोक लीं. पहले तो सुपाड़ा जैसे उसके छेद पर अटका रहा...मगर मिएँ सांस रोके रखी और लण्ड पर दबाव बनाये रखा...और फिर जब मेरी सांस छूटने वाली थी उसके छेद की सिलवटें फैलीं और मेरा सुपाड़ा उसके छेद में घुसने लगा...उस अहसास की मस्ती से मैंने अपने दूसरे हाथ से मोहित की कमर को जोर से पकड़ लिया. तेल के कारण मेरा हाथ फिसल रहा था इसलिए मैंने अपनी अंगुलियां उसके जिस्म में गड़ा दिन...और लण्ड पर जोर बनाये रखा जिससे वो लगातार मोहित की गांढ़ में फिसलता रहा...उसके गांढ़ के अंदर की गर्मी लण्ड पर महसूस करके मुझे और मज़ा आने लगा. फिर मैंने एक लंबी सांस ली...और कुछ देर जितना लण्ड घुसा था उसी का मज़ा लिया...मगर मोहित की खुराक बड़ी थी...वो मेरा पूरा लौड़ा चाहता था...क्यूंकि मेरे रुकने पर वो गांढ़ पीछे धकेलने लगा...इस बार मैंने फिर सांस रोकी और मोहित को दोनों हाथ से पकड़ कर अपने लण्ड पर दबाव दिया तो कुछ देर में पूरा का पूरा लण्ड फिसलता हुआ उसके छेद के छल्ले को रगड़ता हुआ उसकी गांढ़ के अंदर घुस गया...पूरा लण्ड अंदर घुस्वाने के बाद मोहित ने अपनी गांढ़ का छल्ला मेरे लण्ड पर कस दिया.

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