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Heartless king

न्यूयोर्क शहर एक उँची ईमारत से, एक शख्स शीशे क़ी खिड़की के पास खड़ा  निचे आते -जाते हुए गाड़ीयों और लोगों को देख रहा होता हैँ..... उतनी ऊंचाई लोग और गड़िया उसे कीड़े माकोड़े क़ी तरह दिख रही होती हैं। वो निचे देखते हुए कुछ सोचे जा रहा था। तभी दो लोग अंदर आते हैँ, चलो हमें निकलना हैँ, काका हुजूर का बार बार फ़ोन आ रहा हैँ .... राजस्थान के लिए.... जैट तैयार हैँ......... वो शख्स, "हम्म्म " कहते हुए फिर से खिड़की क़ी तरफ देखते हुए और कहता हैं........... क्या उसके बारे कुछ मालूम हुआ, कहते हुए उसके आखों में एक दर्द उभर आया। दूसरा शख्स, "तुम आज तक नहीं भूले हो उसे..... सात साल हो गए.... कौन थी, कहाँ से आयी थी, केसी दिखती हैं,अब तक हमें मालूम नहीं हुआ,जैसे उसे जमीन खा गयी या आसमान निगल गया। जिन्दा भी हैं या मर गयी। तभी वो गुस्से में, उसका गला पकड़.... जस्ट शटअप दुबरा ये कहने की हिम्मत मत करना ये कहते हुए उसके आँखो में खून उतर आया। फिर झटके से उसे छोड़ दिया। वो खाँसते हुए अपने गले को सहलाता हैं। तभी वो मुड़ता हैँ और कहता हैँ..... उसकी पहली मुलकात के बाद यही कहूँगा क़ी उसके बगैर दिल कही लगता नहीं ज़ब तक जियूँगा उसे आखिरी सांस तक ढूढ़गा..... आगे महादेव क़ी मर्जी। तभी तीसरा शख्स छोड़ ना तू इसे जानता तो हैँ। तीनों निकल जाते हैं इंडिया के लिए.....

Dhaara_shree · Urban
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32 Chs

Ch-21

लावण्या ज़ब वाशरूम से निकलती है तो उसे कमरे मे अक्षय नहीं दिखता है। बेड पर एक प्यारी से ड्रेस देख लावण्या मुस्कुरा देती है। उसे पहने के बाद उसकी नजर नोट पर जाती है जो अक्षय ने उसके लिए छोड़ रखा था। नोट मे अक्षय ने लिखा था, डिअर लावण्या !! ये नाम अब मेरी जिंदगी है। तुम्हारे लिए मेडिसिन और ब्रेकफास्ट दोनों रख दिया है। बिना खाये मत जाना। अभी कमजोरी लग रही होगी। तुम मुझे चाहो या ना चाहो !! अब मेरी जिंदगी हो तुम। ये मेरा नंबर है ज़ब चाहे मुझसे बात कर लेना। मै तुम्हारे पास अपना काम खत्म करने के बाद जरूर आऊंगा। तुम्हारा अक्षय।

ये पढ़कर लावण्या गुस्से मे कहती है कभी नहीं!! तुम और मैं कभी नहीं मिलेंगे।

ओमकार गुस्से  में, काम्या को देखता है और उसे बिस्तर से जोर से धक्का दे देता है। इस तरह नीचे गिरने से कम्या की आंखें खुल जाती है और वह घूमती हुई ओंकार को देखती हैं। ओंकार को देखते हुए कहती है यह क्या बदतमीजी है ओमकार जी!!ऐसे कौन करता है सोते हुए के साथ। ओंकार उसके पास जाता है और उस पर चादर फेंकते हुए,उसके बालों को खींचकर कहता है, " तुमने जो हरकत की है उसके लिए मैं तुम्हारी जान भी ले लूं तो भी कम है। काम्या कहती है मैंने ऐसा क्या किया है यह सुनकर उनका अपने दांत को खींचते हुए कहता है तुमने ऐसा क्या किया है यह तुम पूछ रही हो कल रात  कॉफी में तुमने क्या मिलाकर मुझे पिलाया था? यह सुन काम्या समझ लेती है कि ओमकार को सब समझ में आ गया, इसीलिए ओंकार जो तौलिया लपेटे हुए था उसे पकड़,अपनी तरफ खींचती हूँ कहती है कुटिलता भरी आवाज़ मे कहती है, " जब समझ चुके हो तो सवाल क्यों कर रहे हो!! जो मुझे चाहिए था मैंने पा लिए कहती हुई उसके गले पर काट लेती है। ओमकार उसे धका दे खड़ा हो जाता है, और उसे खड़ा कर, घृणा से देखते हुए, "अगर तुम मेरे साथ बिस्तर पर अपनी जिस्म की गर्मी उतरना चाहती थी तो मुझसे पहले कहती मै तुम्हारे जिसमे के हर हिस्से की गर्मी उतार देता।"बल्कि अभी उतार देता हूँ की दोबारा तुम कभी मुझे हल्के मे लेने की कोशिश ना करो। तुम जैसी औरत किसी की पत्नी नहीं हो सकती।"ये कहते हुए उसके ऊपर से चादर खींच देता है।

कम्या जो अपनी जीत पर खुश थी अभी उसे ओमकार की आँखे देख डर लगता है। ओमकार उसके ऊपर जानवरो की तरह टूट पड़ता है। अभी उस कमरे मे कम्या की सिसकियाँ नहीं भयानक चीखे निकल रही थी। दो घंटा ओमकार उसके हर हिस्से क़ो इस तरह जख्मी कर दिया था की वो बेहोश हो गयी। ओमकार गुस्से मे पानी की बाल्टी उठा कर सीधे उसके मुँह पर भेंकता है। जिससे उसकी आँखे कराहते हुए खुल जाती है। वह वहां से चादर लपेट के उठ कर खड़ी हो जाती है? ओंकार जो अभी भी उसे गुस्से में खड़ा था वह गुस्से में काम्या को कहता है निकल जाओ मेरे कमरे से।

कम्या कराहते हुए  कहती है चाहे तुम. जो कर लो लेकिन इस सच क़ो नहीं बदल पाओगे की तुमने अपनी छोटे भाई के  की पत्नी के साथ हमबिस्तर हुए हो। मैं तो कह दूंगी कि तुमने मेरे साथ जबरदस्ती किया है, फिर हंसने लगती है।ओंकार उसके जबड़े क़ो दबाकर कहता है, " कम्या !!कम्या!! ओओओ!! तुम भूल गयी हो की ओमकार रायचंद क्या चिज है। रही बात छोटे भाई की पत्नी तो तुम्हें बता दू मेरा भाई कभी तुम्हें अपनी पत्नी मानता नहीं। ये सुनकर उसकी आँखे बड़ी हो. जाती है और वो उसी तरह मे कोशिश करते है पूछने की तुम्हें कैसे मालूम!!

ओमकार कहता है, मुझे सब पता है, घटिया औरत। वैसे मजा आया तुम्हारे साथ सो कर लेकर दुबारा तुम्हें छूने मे मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है और रही बात तुम सबको बताओगी की मैंने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की है तो उसके लिए तुम सबके सामने रहोगी तब ना। वैसे मानना पड़ेगा इतने दर्दनाक तरीके से मैंने तुम्हारे साथ जो किया फिर भी तुम्हारे मे इतनी हिम्मत है की तुम खड़ी होकर मुझे धमकी दे रही हो।""धमकी नहीं दे रही हूँ ओमकार!! तुम्हें आगाह कर रही हूँ की या तो शादी कर लो या अपनी जायदाद मुझे देदो। "अच्छी धमकी है !! क्यों ना मे तुम्हें दुबई शेख जो कल शाम आने वाला है मेरे साथ डील करने के लिए उसे तोफा के तोर पर तुम्हें दे दू। रोज तुम्हारी जिस्म की आग हर तरह के मर्द बुझाएंगे।

ये सुनकर कम्या की. आखों मे खोफ फेल जाता है,"नहीं!!नहीं!! तुम. ऐसा नहीं कर सकते। मैं बिल्कुल यही करुँगा कम्या!! इतनी बड़ी गलती की सजा कोई छोटी तो होगी नहीं। जिसकी ओकात नहीं है उसने मुझे डबल ट्रैप किया मेरी कॉफ़ी मे ड्रग्स मिला कर तुमने क्या सोचा की, सुबह सुबह तुम ड्रामा करोगी और मैं तुम्हारे ड्रामे मे फंस जाउंगा। अरे.. रे... रे!! तुमने मुझे अक्षय समझ रखा है। वो जितना अच्छा है मैं उतना ही बुरा हूँ। तुमने सीधे मुझे ही फंसाने की कोशिश की।

तभी दरवाजे पर,"भाई!! फिर अंदर देख कर कहता है, बाद मे आता हूँ!रुको अक्षय !! बाद मे आने की जरूरत नहीं है। अक्षय भी कम्या क़ो लानत भारी नजरों से देखता है। कम्या गुस्से मे दोनों भाई क़ो देखती हुई कहती है, खबरदार मेरे साथ कुछ गलत करने की कोशिश की।"उसकी बात नजरअंदाज करते हुए, अक्षय कहता है, भाई!! ये डाइवोर्स पेपर है!!मैंने इस पर साइन कर दिए है। इसे कहिये की ये भी इस पर साइन कर दे। वैसे भी मेरा इससे कोई सरोकार नहीं है।" मै साइन नहीं करुँगी!"

अक्षय कुछ कहता उससे पहले ओमकार कहता है, फ़िक्र मत करो!! ये अब किसी की जिंदगी मे नहीं रहेगी। मै देख लूँगा क्योंकि इसकी इतनी हिम्मत हो गयी की सीधे शेर की मांद मे घुस आयी है। तुम जाओ।अक्षय क़ो जाते देख कम्या जाने लगती है तो ओमकार उसकी बाजु पकड़ कर कहता तुम कहाँ चली !! ओमकार की नजर देख कर कम्या कहती है, मुझे माफ कर दो तुम जैसा चाहोगे वैसे करुँगी। डाइवोर्स भी दे दूँगी लेकिन मुझे किसी के हाथों मत बेचना। पहले डाइवोर्स पर साइन करो। ज़ब तक वो पेपर पर साइन करती है ओमकार किसी क़ो फोन करके कहता है। मेरे कमरे मे आओ। कुछ देर बाद एक लड़की ब्लैक लेदर जैकेट जीन्स पहनी हुई, उसके कमरे मे आती है। टीना !! यस बॉस!!इसे ले जाकर हमारे ठिकाने पर छोड़ आओ। आगे तुम्हें मालूम है की क्या करना है। यस बॉस। टीना उसे खींचती हुई ले जाने लगती है। नहीं मुझे माफ कर !! मुझे कहाँ ले जा रहे हो। छोड़ दो मुझे।

प्रजापति महल

रात के वक़्त सभी एक बड़े से मैदान मे इक्क्ठा होते है, होलिका दहन के लिए।

रात को होलिका दहन की तैयारी की सभी जोड़े तैयार होकर होलिका के आगे खड़े थे। तुलसी जी कहते हैं सब बारी-बारी से होलिका की पूजा करेंगे। सबसे पहले घर के बड़ो से शुरुआत होगी। तुलसी जी और राजेंद्र जी एक साथ पूजा करते हैं उनके साथ सभी बड़े तुली होलिका की पूजा करते हैं उसके बाद। दक्ष -दीक्षा, पृथ्वी- शुभ,कनक -रौनक,अतुल -तूलिका,अनीश-रितिका साथ मिलकर पूजा करते हैं। पूजा करने के बाद, राजेंद्र जी कहते है चलो पूजा तो बड़े अच्छे से निपट गया। अब कल होली अच्छी रहे है।

तभी एक आवाज़ आती है, हमारे लिए इंतजार नहीं करेंगे बड़े भाई सा!! ये सुनकर अंदर जाते हुए सबके कदम रुक जाते है। पीछे लक्षिता अपने पति शमशेर के साथ खड़ी होती है और उन्दोनो के साथ रंजीत और कामिनी भी। उन चारों क़ो देख, तूलिका कहती है लो कल की होली के शगुन आ गया। दीक्षा कहती है चुप हो जाओ।

उन चारों क़ो अपनी तरफ आते देख राजेंद्र जी कहते है कल की जो भी तैयारी है वो अब आप पांचो अपने मे रखियेगा। उनके साथ तुलसी जी कहती है, सुमन बिंदनी आप सभी क़ो जो चाहिए होगा वो आधी रात क़ो आप सभी तक पहुंचा देगी। इनके सामने अब कोई बात नहीं होगी। समझे। जी दादी सा।

आईये रंजीत!!आप दो दिन से कहाँ था। ना फोन ना मेसेज। माफ कीजिये भाई सा वो. हमदोनों थोड़े नाराज थे सबसे लेकिन परिवार से कब तक दूर रह सकते है इसलिये हम आ गए। नहीं बड़े पापा!!ये खुद नहीं आये है बल्कि हम इन्हें लेकर आये है। चलिए कोई बात नहीं, आओ कामिनी सबकी पूजा हो गयी अब तुम चारों भी कर लो। तुलसी जी बात सुनकर सभी पूजा कर लेते है।

जब सब घर के अंदर जाते हैं तो उससे शुभम। अंकिता के साथ और अंकित सौम्या के साथ पूजा करता है। अंकित अंकिता  को शुभम के साथ देख आंखें बड़ी कर लेता है।  शुभम पलके झुका देता है तो अंकित कुछ नहीं कहता। इधर हार्दिक अकेले ही सबके साथ पूजा करता है। अनामिका भी हार्दिक के साथ पूजा करती है। आकाश में उसके साथ ही रहता है। जब सब चले जाते हैं तो आकाश अनामिका के हाथ हाथ पकड़ कर अपनी कमरे में ले कर चला जाता है। अनामिका कहती आकाश यह क्या बदतमीजी है।  आकाश कहता है, " तुम बताओ तुम क्या कर रही हो जब से आई हो तब से मेरे से बात नहीं करती हो? क्या मुझे तुम अपना दोस्त नहीं मानती!!  अनामिका गुस्से मे  उसका कॉलर पकड़ती है और कहती है दोस्त से ऊपर भी कुछ होता है क्या आपको कभी समझ में आयी यह बात?  कैसी बात !! अनामिका गुस्से मे  उसके होठों को हल्का काट कर कमरे से निकल जाती है। आकाश हैरानी से अपने होठों पर हाथ रखकर उत्तर देखता है और कहता है इसका क्या मतलब हुआ?फिर कुछ देर बाद... ओह्ह्ह शीट....!!मै एकदम गधा हूँ!!कैसे नहीं समझ पाया !! अब तो और गुस्सा हो गयी होगी। कल मना लूँगा अपनी सोन चिड़िया क़ो। कहते हुए मुस्कुराने लगता है।

रंजीत का इस तरह से महल मे आना बहुत कुछ कह रहा है। साजिशों और रंजीशिओं के प्रजापति महल फिर से एक बार घिर रही है। इस बार लगता है कुछ ज्यादा ही गहरी है साजिशों के रंग।

सब ज़ब अंदर आती है तो. तुलसी जी कहती है महारानी बिंदनी , रानी बिंदनी  आप सब अपने छोटे दादिया ससुर और सास से आशीर्वाद ले। सभी आकर ज़ब उन्दोनो के पैर छुती है तो तुलसी जी अपनी कड़कती आवाज़ मे कहती है, छोटे देवर सा, कामिनी हमारी सभी बहुओं क़ो., "अखंड सौभाग्यवती "का आशीर्वाद दीजिये। उनकी इस तरह की आवाज़ सुन दोनों दबे मन से कहती है,"अखंड सोभागवती भवः "। चलिए रात बहुत हो. गयी आप सब आराम कीजिये। सुमन बिंदनी, सुकन्या बिंदनी और निशा, अर्चना आप सब पूजा की सभी चीजे तैयार कर के ही सोयेगी। जी बड़ी माँ सा!!

आज तुलसी जी के तेवर जवानी के दिनों के देख, राजेंद्र जी कहते है, क्या बात है रानी सा!!आज तो. आपकी आवाज़ और चाल देख हमें हमारी नई तुलसी याद आ गयी। तुलसी जी कहती है, राजा सा आप भी कमर कस लीजिये इस बार हम हमारे बच्चों पर एक आंच नहीं आने देंगे। ज़ब से हमारे पोते और पोता बहु आयी है, हम खुद क़ो बूढा समझ नहीं रहे है इसलिये आप भी खुद क़ो तैयार कर लीजिये। चलिए आपकी दवाई का समय हो गया है। जाती हुई तुलसी जी दीक्षा सब क़ो देख कर कहती है, ब्रम्ह मुहर्त मे पूजा होगा तो आप सब आधी रात क़ो निकलेंगे। वही मंदिर के तालाब मे आप सब स्न्नान करेंगे। तो आप सब क़ो रात के एक बजे ही निकलना होगा। ज़ब तक आप सब आ नहीं जाते है। हम यही इंतजार करेंगे। हम आते है आपके दादी जी क़ो दवा दे कर। आप सब थोड़ी देर आराम कर लीजिये।

दीक्षा धीरे से शुभ से कहती है जीजी सबके के साथ हमसे स्टडी रूम मे  मिलीये । स्टडी रूम मे सब इंतजार कर रहे होते है। रौनक कहता है, "ये शुभम कहाँ रह गया। अंकित कहता है,"वो डॉ महत्वपूर्ण लोगों के दरवाजे क़ो बंद करके आ रहा है।शुभम धीरे से रंजीत जी और कामिनी जी लक्षिता और शमशेर जी का दरवाजा  बाहर से कुंडी लगा देता है ।

सभी जब स्टडी रुम मे आते हैं,"  तो पृथ्वी पूछता है क्या बात है महारानी सा?  दीक्षा कहती है, "बड़े भाई सा आप मुझे महारानी सा नहीं कहे आप मुझे दीक्षा कहे तो मुझे अच्छा लगेगा। पृथ्वी मुस्कुरा कहता है ठीक है दीक्षा बताओ  क्यों हम लोग को इस तरह हो बुलाया? दीक्षा सब को सामने देखकर कहती है यह तो पता है ब्रह्म मुहर्त मे पूजा होगी और अगले एक. घंटे मे हम सभी निकलेंगे। सभी कहते हैं हां।

फिर दीक्षा कहती है," अंदाजा कहता है की हमारे दुश्मन हमारे वहाँ पहुंचने के करीब एक घंटे बाद हमला करेंगे।दक्ष कहता है ये तो हमारा भी अनुमान है जिसके लिए मंदिर के बाहर हमारे सभी. आदमी मौजूद रहेगें। बात ये है राजा साहब की मंदिर के बाहर सब तैयार रहेंगे लेकिन मंदिर के भीतर का क्या करेंगे।

रौनक कहता है, लेकिन भाभी सा!! मंदिर मे तो हथियार नहीं ले जा सकते। फिर!!बात आपकी ठीक है रौनक !! लेकिन उसके आलवा भी बहुत कुछ कर सकते है। पूजा कम से कम तीन घंटे की होगी। दो घंटे हमें उन्हें रोकना है जबतक दोनों भाई पूजा खत्म ना कर ले। हाँ ये तो फिर आपने क्या सोचा है स्वीट्स!!

अनीश सुनकर कहता है, कमीने कभी तो मोहब्बत के मोड से निकल। हम सब भी बेबी, जानू, सोना कर ले। रितिका उसे कोहनी मारती हुई कहती है, पता नहीं आपको किसने बनाया वकील। तूलिका मुँह बनाती हुई कहती है और किसने इनदोनो ने। देखो साली साहिबा तुम ने मेरी एजुकेशन पर मुँह मत टेढ़ा करो नहीं तो टेढ़ी हो जाओगी।

दक्ष कहता है, अगर अभी के अभी तुम सब ने मुँह बंद नहीं किया तो मै तुम सब का मुँह तोड़ दूँगा ।सभी चुप हो जाते तो दीक्षा कहती है, "अगर अभी जरूरी बात करनी नहीं होती दक्ष फिर मै आपको बताती मेरी दोस्तों का मुँह तोड़ने का मतलब। लेकिन महरानी सा!!हाथ दिखाती हुई,"कुछ नहीं सुनुँगी "!!!

दीक्षा कहती है शुभम, हार्दिक,आकाश,अंकित,आप सब इधर आइए। जी भाभी सा। आप सब का काम है, वहां जितनी चीजें पूजा की जाएगी उस सब बड़े-बड़े पर परातों में जाएगी। 5-10 पैकेट वहां पर आप मिर्ची पाउडर रखेंगे। उसके बाद मंदिर के चारदिवारी पर नंगे बिजली की तार डाल दीजिये और उसकी स्विच खुद के पास रखियेगा, क्योंकि आप सब ही बाहर होंगे तो आप सब क़ो ज्यादा दिखेगा। इतना काम हो सकता है आप सब से । बिल्कुल हो जाएगा छोटी भाभी माँ ।ठीक है तो आप सभी हमारे साथ नहीं हमसे पहले पहुँचेगें। जी छोटी भाभी माँ।

सौम्या, अंकिता, झुमकी और अनामिका आप चारों का काम रहेगा जैसे जैसे हम सब ऊपर जायेगे। आप सब सीढ़ियों क़ो तेज धार वाली पारदर्शी  तार लगाती जाएगी। ताकि जो भी बेखौफ सीढ़ियों से आये तो सबके पैरों की नशे कट जाये। ये कहती हुई दीक्षा काफ़ी खुंखार लग रही थी। सभी दीक्षा की समझ पर मुस्कुरा रहे थे।

अनीश पूछता है इससे क्या करोगी दीक्षा? दीक्षा कहती है कि अनीश भैया बात यह है," हम हथियार लेकर नहीं जा सकते लेकिन मेरा मेरा दिल कहता है कि वहां वह सब मौजूद होंगे। पूजा पर सिर्फ यह और बड़े भैया का उठना मना है, हम बंधे नहीं होंगे।। यह दोनों ना वहां से उठ सकते हैं जब तक पूजा खत्म नहीं होती ना बोल सकते बचे। हम सब  तो कम से कम  हम तलवार लेकर नहीं जा सकते। लेकिन वहां पर लड़ने के लिए हमारे पास कुछ तो चाहिए। यह सुनकर रौनक कहता है कमाल कर दिया आपने भाभीसा।

इसी बिच तूलिका कहती है, अंकित !! उस सब के साथ चश्मा और हाथ मे पहने के लिए गलब जरूर लाना । पता चला होली की जगह पर हम लोग सब आंख मिचोली खेल रहे हैं। यह सुनकर सभी हंस पड़ते हैं दीक्षा कहती है तो सब तैयार। सभी कहते है तैयार। दक्ष दीक्षा के कान मे कहता है, हमें गर्व है आप हमारी पत्नी है।

दीक्षा कहती है अभी रात के ग्यारह बज़ रहे है। शुभम आप चारों हमारे भरोसेमंद आदमियों के साथ निकलिए। जी छोटी भाभी माँ!!लेकिन आप चारों वादा कीजिये कहती हुई हाथ बढ़ा देती है, " आप चारों मे से किसी क़ो एक खरोच नहीं आनी चाहिए "!! चारों हाथ रख कर कहते है बिल्कुल नहीं आएगी। जय भवानी!! निकलिए.।.....

रितिका कहती है कि और  रात के 1:00 बजे तो हम लोग क़ो भी निकलना है । बात होने के बाद  सब ने हां कहा और सब अपने अपने कमरे में चलेगा। दक्ष और दीक्षा अभी भी अपने कमरे की बालकनी पर खड़े थे। दीक्षा कहती है दक्ष आपको कुछ देर आराम कर लेना चाहिए। महारानी सा!!  ये शुकुन तभी होगा जब हम सभी मंदिर से वापस ठीक-ठाक आ जाएंगे। आप फ़िक्र क्यों करते हम जरूर वापस आएंगे? हमें आना पड़ेगा महारानी सा हमारा बेटा आ रहा है। हां जरूर।

रात एक बजे तुलसी जी सबको आवाज लगाते हुए कहती है सब की तैयारियां हो गई। तुलसी जी की बात सुनकर अंदर से सुमन आती हुई कहती है हां  माँ सा!! सारी तैयारियां हो चुकी है। झुमकी भी कहती है हां रानी मां सब तैयारी हो गयी । सभी ऊपर से आते है, सबने धोती। पहनी रखी थी और गमछा डाले हुए  पांचों नीचे आते। आंखों में गजब का तेज था जिसमें दक्ष और पृथ्वी तो कमाल लग रहे थे। उनके पीछे पीछे उनकी पत्नियां आज पारंपरिक राजस्थानी कपड़ों में थी। सभी एक साथ आकर सबको पर हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं और कहती अब हमें इजाजत दीजिये। राजेंद्र जी के साथ सभी कहते हैं सकुशल वापस आओ।  यह कहने के साथ सभी मंदिर की तरफ निकल जाते।

शुरुआत हुई है पुरानी रंजिश की नई जबाब की!इस बार साजिशों के गहरे  बादल क़ो खत्म करने की नई रौशनी आयी है।

तूफान क़ो रोकने आज खुद दरिया खड़ी है!!

इधर रंजीत किसी को फोन करते हुए कहता है वह सब निकल चुके हैं और निहत्थे जा रहे हैं। उधर से भुजंग हंसते हुए कहता हूं, " निहत्थे गए है जरूर !! लेकिन वहां मुझे पूरी तैयारी कर रखनी होगी।  जीता तभी जाता है ज़ब तैयारी जीत की रखी हो।तुम्हें जो करना है करो पूरा खानदान वही जा रहा है। सिवा बुजुर्गों को छोड़कर। यह सुनकर भुजंग कहता है, "इतना अच्छा मौका दोबारा नहीं आएगा रंजीत जीजा? रंजीत कहता है तुम फोन रखो मैं ओंकार और दाता हुकुम को भी फोन कर दू । इसके साथ रंजीत ओमकार  को फोन करता है जो उसी के फोन के इंतजार में बैठा हुआ था। फोन उठाते के साथ कहता है कि तैयारी हो गई उसने कहा हां। ओंकार हंसते हुए कहता है तो फिर ठीक है।

रात के एक बजे ओमकार के साथ जयचंद और दाता हुकुम सब भुजंग राठौर के घर पहुंचते है अपने आदमियों के साथ। भुंजग कहता है, थारा ही इंतजार था। सब तैयार है आदमी। तभी विराज कहता है, बाबा मै जाऊंगा। भुजंग कहता है इस बार ना छोरे !! इस बार सिर्फ जयचंद और दाता हुकुम ही जायेगे। भुजंग की बात सुनकर, दाता हुकुम कहता है, आपके बाबा सा ठीक कह रहे है। सारे पतें खोलना समझदारी नहीं होगी। विराज कहता है ठीक है लेकिन मै और मिस्टर रायचंद दूर से आप सबके सपोट मे रहेंगे। अगर आप दोनों क़ो लगे की वो सब भारी पर रहे है तो हम मदद के लिए आ जायेगें।

दाता हुकुम कहता है, जरूरत नहीं पड़ेगी !! हम काफ़ी है।

सभी मंदिर पहुँचे चुके थे।घंटियों की आवाज सुनकर सभी हाथ नीचे से ही जोड़ते हुए कहते हैं।

ज़ब सभी पहुंचते है तो शुभम निकल कर उनके पास आता है और कहता है, छोटी भाभी माँ!! आपने जैसा कहा था सब कर दिया। दीक्षा कहती है ठीक। आप सभी सतर्क रहिये। जी। सभी सीढ़ियों से ऊपर जाने लगते है। वो मंदिर काफ़ी प्राचीन और विशाल और बहुत खूबसूरत था। दीक्षा के साथ सब पहली बार आयी थी।

रितिका कहती है, "कितना खूबसूरत है ये मंदिर!!"हाँ बेहद सुन्दर तूलिका कहती है। सभी धीरे धीरे ऊपर जाते है। और निचे हर सीढ़ियों पर सौम्या, अंकिता, अनामिका और झुमकी उसपर तार लपेटती जाती है। पुजारी जी सबका इंतजार कर रहे होते है।

ज़ब दक्ष उनके सामने आता है तो सभी एक साथ हाथ जोड़ कर प्रणाम करता है। आईये !! आइये !! राजा साहब!!हुकुम सा!!

सब तैयार है पुजारी जी। जी सब तैयार है। आप सब जा कर सरोवर मे स्नान कर के आइये। सभी वहाँ से सरोवर मे चले जाते है। कुछ देर बाद दीक्षा, शुभ सभी महिलाये लाल साड़ीयाँ पहन कर आयी और दक्ष, पृथ्वी सभी ने पीली धोती और लाल दुप्पटा डाले हुए मंदिर परिसर मे आते है। आज सभी अलग ही दिख रहे थे।

पुजारी जी पांचो जोड़े क़ो बिठा देते है और पूजा शुरू करते हैं। पांचो को तिलक लगा कर कहते है, रानी सा आप सब अपने मांग मे खुद ये टिका करे।दीक्षा पुजारी जी की बात सुनकर सभी के साथ अपनी मांग मे टिका लगाती है। अभी बाहर में सुबह अंधेरा ही था सुबह की तेज हवा कह रही थी आज मौसम भी कुछ अलग ही लग रहा था। पंडित जी बाहर की तेज हवाएं देख कर कहते है, पता नहीं राजा साहब आज मौसम क्यों इतना अलग लग रहा है!!  यह सुनकर दक्ष कहता है," घबराईये मत यह माता रानी का आशीर्वाद है। आप पूजा शुरू रखिये। सभी बैठते हैं उसके बाद पुजारी जी कहते हैं, " राजा साहब मैं संकल्प अब आप सबको करवाऊंगा। यह संकल्प सबके लिए है लेकिन सबसे ज्यादा इस संकल्प का महत्व आपके और हुकुम सा  पर ज्यादा प्रभावित है। आप दोनों को यह संकल्प लेना पड़ेगा साथ में सभी हाथ जोड़ कर बैठे।

संकल्प करवाते हुए पुजारी जी कहते है, इस संकल्प के साथ, "अब आप और राजा साहब दोनों जब तक पूजा खत्म नहीं होती देवी मां की तब तक आप यहां से ना उठ नहीं सकते और ना किसी से बात कर सकते है । दक्ष कहता है जानता हूं पुजारी जी। इसके साथ दोनों हाथ आगे बढ़ाते पंडित पूजा शुरु करते ।

पंडित जी संकल्प के साथ पूजा शुरू करते है। उनके पीछे सौम्या अंकिता अनामिका और झुमकी चारों तरफ निगाहे दी  रहती है। कुछ देर बाद काले। कपड़ों में कुछ लोग मुंह बांधे हुए धीरे-धीरे मंदिर के प्रांगण में घुस रहे होते। यह देख अंकिता कहती है तैयार। सौम्या कहती है सब तैयारी।

जैसे जैसे बिच्छूवो की तरह सभी मंदिर की चारदिवारी पर चढ़ते है तो उधर शुभम बिजली चालू कर देता और एक जोर झटके और चीख की शोर मंदिर प्रांगण मे गूंज जाती है। ये सुनकर दीक्षा पंडित जी से इशारे मे पूछती है की क्या वो उठ सकती है। पंडित जी इशारे मे अनुमति दे देते है।

इसके साथ अनीश, अतुल, रौनक, दीक्षा, शुभ, कनक, तूलिका, रितिका सभी उठ जाते है। मौसम आज अलग करवट ले रहा था सुबह के पांच बजने वाले थे फिर भी अंधेरा था।

प्रजापति महल

राजेंद्र जी सबके साथ बैठे हुए थे। सुकन्या जी कहती है आज मौसम ने तो अलग करवट ले रखी है। अभी तक सूर्य देवता ने दर्शन नहीं दिए है। राजेंद्र जी कहते है, हमें बहुत फ़िक्र हो रही है। हमारे घर के सारे बच्चे बाहर है और दुश्मनो की नजर उन्ही पर होगी।

तुलसी जी कहती है, घबराईये मत राजा साहब। इसलिए हमें दक्ष और पृथ्वी क़ो अकेले नहीं सभी क़ो साथ भेजा है। मतलब क्या है आपका रानी सा !! मतलब ये है राजा साहब हमने शादी की रात अपनी बहुओं क़ो देख लिया था और हमें हमारी महारानी सा पर पूरा भरोसा और उनके नेतृत्व पर भी। आपको मालूम है राजा सा !! ज़ब हम औरते रसोईघर मे छोटी छोटी चीजों का ध्यान रखते है। उसी तरह ज़ब हम बाहरी दुनिया का कमान संभालते है तो, हम आप पुरुषों की तरह बहुत बड़े बड़े निर्णय नहीं लेते। हम छोटी छोटी निर्णय लेकर ये निश्चित करते है की जो काम हमने हाथ मे लिया है उसमें हमें सफलता अवश्य मिले।

इसलिये हमें अच्छी तरह से मालूम है की हमारी बहुओं ने बिना हथियार के लड़ाई कैसे लड़नी है। उसकी तैयारी बहुत अच्छी तरह से कर ली होगी।

आप उनकी फ़िक्र छोड़िये आपके सभी पोते अपनी अपनी शक्ति के साथ है, इसलिये जीत अवश्य हमारी होगी। यहाँ पर आप तैयारी करे होली समारोह की और उनके जीत के स्वागत की। तुलसी आज अलग रूआब मे थी। जिन्हें देख सभी के चेहरे पर होशले की मुस्कान आ गयी।

मंदिर मे

तभी एक गोली दक्ष की तरफ चलती है। दीक्षा और अतुल एक साथ ग़ुलाल की परात उठा कर उन्दोनो क़ो घेर देते है। गोली परात से टक्करा कर बहुत तीखी आवाज़ करती है।

इस आवाज़ के साथ शुभम सतर्क हो जाता है और जबाब मे गोलियाँ  चलनी शुरु हो जाती है। दीक्षा शुभ के साथ दोनों भाईयों की परात से कवच बनाती है। जीजी!! युद्ध शुरु हुई। नहीं दीक्षा खुन की होली शुरु हुई।

आगाज हो चुका जंग का, अंजाम क्या होगा। वक़्त की दायरों मे बंद राज, ज़ब बाहर आएगी तो तूफान क्या होगा।

मंदिर मे

नकाबपोश धीरे-धीरे मंदिर को घेरना शुरू कर देते। कुछ तो  चारदीवारी फानने मे बिजली की तार से मारे जाते है  और कुछ सीढ़ियों क़ो चढ़ने में मारे जाते है। सीढ़ियों से जितनी बार रास्ता बनाने की कोशिश करते है निचे से शुभम, अंकित  गोलियाँ चला रहे होते है। ऊपर से अनामिका और झुमकी सबके गले मे धार वाली तार से गला काट रहे होते है। अभी का मंजर जितना बेहद क्रूर था। चारों तरफ से नकाबपोश, मंदिर के प्रांगण मे घुसने की कोशिश मे लगे होते है। लेकिन दीक्षा के साथ सभी उन्हें रोकने की. कोशिश मे लगे होते है। कमाल की बात ये थी की उन सभी हथियार बंद हत्यारो से ये सभी बिना हत्यार के लड़ रहे होते है।

दीक्षा जोर से आवाज़ देखर सभी क़ो कहती है, "बस ख्याल रहे की सब अपनी रक्षा के परात से खुद क़ो ढ़के रहेंगे ताकि किसी क़ो गोली ना लगे और कोशिश उतनी करे की. कोई अंदर ना आ पाए।सभी उसकी बात से खुद क़ो एक एक परात से ढक लेते है।

कुछ हत्यारे उन सबके बिच चारदिवारी लाँघने मे सफल हो जाते है। मंदिर में घुसा शुरू कर देते है," जिसे देख दीक्षा कहती है  अतुल भैया,अनीश भैया आप लोग इन दोनों भाइयों के इर्द गिर्द आईये। तब तक मैं और जीजी  इनको परात से इनकी रक्षा कवच बनाती हूँ।

शुभ और दीक्षा सभी परात से मंदिर के उस हिस्से को अच्छी तरह से कवच बना देती है जिस हिस्से  में दक्ष और पृथ्वी रहते हैं।बनाने के बाद वो दोनों अतुल और अनीश क़ो देख कर कहती है, अब इन दोनों की सुरक्षा आपकी जिम्मेदारी। आप दोनों निश्चिंत रहे, हम अपनी जान से बढ़ कर इनकी रक्षा करेंगे। नहीं अतुल भैया -अनीश भैया, आप दोनों की जिंदगी के साथ इनकी रक्षा करनी होगी। आज किसी की मौत नहीं लिखी जाएगी।

उसके बाद कनक और सौम्या चादर में मिर्ची का पाउडर ले जैसी सामने आते सभी नकाबपोश उनके ऊपर फेंकना शुरु कर देती है। मिर्ची की पावडर उनके आखों मे पड़ते ही उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता। तब मौका देख रितिका और तूलिका सभी क़ो निचे गिरना शुरु कर देती है। मंदिर काफ़ी ऊंचाई पर था वहाँ से धका देने के साथ सिर्फ उनकी चीखे सुनाई देती है।यह करते हुए बहुत हद तक उन्होंने बहुत चीज कंट्रोल कर लिया था।

दीक्षा तब उठती है और शुभ के साथ सब के ऊपर मिर्ची पाउडर देना देना शुरू कर देती। इस तरह से अपने आदमियों को गिरता देख दत्ता और जयचंद दूर से देख कर कहते हैं कि बिना हथियार के सब लड़ कैसे रहें है !! हमारे आदमी आधे से ज्यादा तो बाहर ही मारे जा रहे है और जो ऊपर पहुँचे रह है वो सीधे निचे गिरे जा रहे है !!सीढ़ियों से भी पहुँचे नहीं पा रहे है। अगर ऐसे होता रहा तो कोई आदमी मंदिर के अंदर पहुँचे ही नहीं पायेगा। सब बाहर ही बाहर खत्म हो रहे है। दता परेशान होकर कहता है आखिर ये सब लड़ कैसे रहे है।

अनामिका,अंकिता और झुमकी  सीढ़ियों पर तार जो बिछाई रहती हैं उससे सबके हाथ पैर कट रहे थे और गलती से उससे बढ़ कर हत्यारे ऊपर सीढ़ियों के आखरी तक आते-आते अंकिता और अनामिका उनके गले में वह रस्सी लगा देती है खींच देती है, " जिससे रस्सी की धार  तेज थी की जिससे उन सब का गला कट जाता है। वह तीनों सीढ़ियों से दुश्मनों को आना रोक देती है।

बिजली के झटके से कुछ मारे जाते हैं कुछ गिर जाते हैं लेकिन फिर भी बहुत सारे ऊपर आने लगते हैं तब। दीक्षा के साथ शुभ, रितिका के साथ कनक और तूलिका के साथ सौम्या यह सब मिर्ची पाउडर  चादरो मे डाल डाल चारों तरफ से फेंकना शुरू करती है। अनीश और अतुल  पृथ्वी और दक्ष के दाएं बाएं होते हैं। बहुत हद तक दुश्मनों को खत्म करने के बाद सुबह के 6:30 बज रहे होते। दीक्षा रोड से अनीश को कहती है अनिल भैया पुजारी जी से पूछिए और कितनी देर बाक़ी है पूजा मे क्योंकि अब बिना हथियार  उठाये!हम रोक नहीं सकते सारी मिर्ची पावडर खत्म हो चुकी है। क्योंकि अब हमारे पास कुछ भी नहीं है!!

रितिका हांफ़्ती हुई कहती है, वकील साहब अगर पहली होली खेलनी है तो अब खुन की होली खेलनी होगी। बहुत हो गयी बच्चों वाली खेल !! पूछिए कहती हुई एक नक़बपोश क़ो सीधे मुँह पर एक पंच मारती है।अनीश मुँह देखता है रितिका का, तब तूलिका कहती है, तुम्हारी ही बीबी है बाद मे देखना पहले पूछो क्योंकि अब नहीं पूछा तो होली की बजाय हमारी अर्थी उठाना !! अतुल जी आप दोनों बहरे तो नहीं हुए ना !! बिल्कुल नहीं... तभी अतुल और अनीश दोनों पुजारी जी से इशारे में पूछता है पुजारी जी इशारे में उनको कहते हैं कर सकते हैं।

अनीश आवाज देता है और कहता है हां भाभी कर सकते हैं। यह सुन दीक्षा मुस्कुराती है और सभी से कहती है, छीन लो हथियार। सभी उन्ही हमलावरों हथियार छीनती है। दीक्षा एक एक हथियार सबकीअतुल और अनीश तरफ फेंकना शुरू करती है। फिर शुभ से कहती है कमर बांध लो जीजी आज होली से पहले खून भरी होली खेलना पड़ेगा। उधर अंकिता भी शुभम को कहती है कि अब तुम लोग भी ऊपर आ जाओ क्योंकि अब हमसे नहीं संभलेगा। शुभम के साथ सभी ऊपर आ जाते है।

कुछ देर बाद वह मंदिर युद्ध का मैदान बन जाता हैं। हथियारबंद लोग दक्ष और पृथ्वी की तरफ आने लगते हैं, सभी एक साथ तलवार से वार करते है,जिसे  अतुल और अनीश और अंकित -शुभम रोकता है। शुभम इनको मारते हुए कहता है कमीनों होली के दिन भी चैन नहीं है इन लोगों को।  सभी लड़ रहे होते हैं। दीक्षा के ऊपर 10 नकाबपोश एक साथ अटैक करते हैं तब तक हार्दिक और आकाश, अंकिता-सौम्या आके उनको चारों तरफ से  घेर देते हैं। दीक्षा मुस्कुरा कर कहती है धन्यवाद। चारों एक साथ उन सबको तलवार से दूर फ़ेंकते हुए कहते हैं मोस्ट वेलकम महारानी भाभी मां।

शुभ की ऊपर पीछे से हमला होते देख शुभ और रौनक आगे से तलवार लगा देते है, शुभ कहती है शुक्रिया देवर सा !! मोस्ट वेलकम रानी भाभी माँ !! सबको यु इस तरह मरते देख, दाता हुकुम कहता है हमारे और आदमियों क़ो भेजो। ऐसे नहीं हम हार सकते है।पहले इन सबकी ताकत उसे दक्ष और पृथ्वी क़ो खत्म करना होगा। गुस्सै मे दोनों दूर से  ही गोली चलाते है, पृथ्वी और दक्ष की तरफ लेकिन उसकी गोली हर परात से टकरा के नीचे गिर जाती है।गोली की आवाज सुनकर सभी सतर्क हो जाते।बहुत सारे आदमी ऊपर आने लगते है।गुस्से मे दोनों दीक्षा पर निशाना लगाते है, जिसे विराज और ओमकार आ कर रोक देता है और गुस्से मे कहता है, कुछ भी हो जाये दीक्षा पर गोली नहीं चलनी चाहिए।

दीक्षा गुस्से मे कहती है, समझ मे नहीं आता इतने लोगों क़ो ये सब पालते कैसे है। उसकी बातें सुनकर हार्दिक कहता है,भाभी माँ, जैसे पाकिस्तान पालता है आतंकवादी क़ो।अभी कुछ ऐसा हो गया था, शुभ, रितिका और तूलिका एक साथ, कनक और रौनक और झुमकी एक साथ, अनीश -अतुल के साथ शुभम और हार्दिक, दक्ष और पृथ्वी के पास, अंकिता -अनामिका और आकाश एक तरफ और दीक्षा -सौम्या और अंकित एक तरफ सभी लड़ रहे होते है।

इधर पुजारी जी कहते है पूजा सम्पन्न हुई राजा साहब!! ये सुनकर दक्ष और पृथ्वी हाथ जोड़ लेते है।

दाता हुकुम गुस्से से कहता है तो दक्ष और पृथ्वी पर गोली कितनी बार भी चलाओ उनको उन्होंने रक्षा कवच से बांध दिया है। दाद देनी पड़ेगी प्रजापति महल की नई बहू को बिना हथियार के  सब को धूल चटा रखी है। तभी सबकी नजर दीक्षा पर और और प्रजापति में महल की सभी औरतों पर पड़ती है सब ने अपने साड़ी साड़ी के पल्लू को कमर में बांध और सभी उन नकाबपोश पर भारी पड़ रही होती।

जयचंद का बेटा सोमचंद विराज और ओमकार की बात,मानता नहीं और वह एक गोली दीक्षा पर चला देता है।  तब तक दक्ष की नजर उस पर चली जाती है तेजी से एक परात सोमचंद की तरफ फ़ेंकता है और दूसरी लेकर लेकर दीक्षा क़ो अपनी तरफ खींच लेता है। उस परात के लगने से सोमचंद का गला कट जाता है। दक्ष और पृथ्वी उठते हैं जोर से चीखते हुए कहते हैं, " दाता -जयचंद तेरी मौत तय है।

यह सुन दाता हुकुम वहां से विराज और ओमकार को कहता है चलो निकलो यहां से, जयचंद तो मौत अपने बेटे की मौत देख गुस्से मे उन सबको मारने जाता है। जिसे विराज और ओमकार रोक देते है। अभी नहीं। लेकिन मेरा बेटा, मैं क्या जबाब दूँगा इसकी माँ क़ो कहते हुए रोने लगता है।

दीक्षा क़ो देख दक्ष कहता है, आप ठीक है महारानी सा !! हम ठीक है। पृथ्वी शुभ क़ो गले लगा कर कहता है, आप सब बहुत बाहददूर है। सबकी आंखें बड़ी हो जाती एक एक करके पूरा मंदिर  खून से रंग जाता है। सुबह के 8:00 बज जाते हैं लड़ते-लड़ते। अब धीरे-धीरे सूर्य भी  बादल से छट लालिमा लिए निकल रहे होते है।

दक्ष और दीक्षा पुजारी जी के पास आकर कहते हैं कि क्या पूजा हमारी संपन्न हुई पूजा है।  पुजारी जी कहते हैं पूरी तरह से संपन्न हुई राजा साहब रानी सा। वह दोनों और उनके साथ सभी हाथ जोड़ते हैं और अपने आदमियों को कहते हैं पूरा मंदिर साफ करवाओ। इसके साथ ही। सभी प्रजापति महल निकलने लगते हैं।

दक्ष कहता आप जाइए मैं दाता हुकुम को उसकी जगह पहुंचा कर आऊंगा।  पृथ्वी उसे रोकते हुए कहता है आज नहीं। जयचंद के बेटे की मौत लिखी थी।

प्रजापति महल

दक्ष सबके साथ ज़ब प्रजापति महल आता है उसके आने से पहले ही दूर से ही ढोल नगाड़े की आवाज आती है।  क्योंकि शुभम ने सबको बता दिया था कि हम सब सकुशल वापस लौट  रहे है। इस खुशी में, लक्ष्य,मुकुल, चेतन  राजेंद्र जी ने दूर तक उनके स्वागत के लिए फूलों की होली और ही ढोल नगाड़े बरसाने की तैयारी कर देते हैं।

जैसे जैसे सभी बच्चे महल के करीब आते हैं उन ही उन सब पर फूलों की बारिश दोनों तरफ से लोग कर रहे होते हैं। आज राजेंद्र जी तुलसी जी के साथ सब परिवार पूजा थाली लेकर दरवाजे पर खड़ी रहती क्योंकि यह पहला मौका था जब पूरा परिवार सब कुशल किसी कार्य को पूरा करके लौटा था!  तुलसी जी से राजेंद्र जी कहते हैं, "  आपने सही कहा था रानी सा अब हमारा घर और इसकी हवाएं बदलने लगी है। तुलसी जी कहती है हर बार हम ही मात खाएं ऐसा तो जरूरी नहीं है ना राजा साहब। इस बार नेहले पे देहला हुआ जरूर है और शुरुआत हमारे बच्चों  ने होली के दिन से शुरू कर दिया।रंजीत और कामनी सुबह से ही गयाब थे और उनके साथ लक्षिता और शमशेर भी। हर किसी क़ो मालूम था की वो कहाँ गए होंगे इसलिये किसी ने ना उनसे पूछा और ना उन्हें रोका।

सभी दरवाजे की दहलीज पर आते हैं कि तुलसी जी सब की आरती उतारती है।  सभी के कपड़े पर हाथ पर खून लगे होते हैं जिसे देख तुलसी जी कहती है वैसे तो यह देखकर दिल खुश नहीं होता है लेकिन आज के दिन हमारे बच्चों के हाथ और कपड़े रंग की बजाय खुन से रंगे है लेकिन यह देखकर हमें विजय तिलक उतारने का दिल कहता है। उन सभी की आरती उतारते हुए कहती हैं स्वागत है आप सबका अपने घर में।जाईये सभी फिर से  तैयार हो जाइए फिर हम होली खेलेगें ।

यह सुनते हुए सभी प्रणाम करके अपने-अपने कमरों में चले जाते हैं। जाते के साथ सभी फ्रेश होते हो। सभी लड़कियों ने घाघरा चोली सफेद रंग की पहन रखी थी और दुपट्टा गुलाबी रंग का डाल रखा था। सभी लड़कों ने सफेद कुर्ता पजामा पहन रखा। दक्ष दीक्षा जब भी तैयार हो के नीचे आने लगती है तो दक्ष उसका हाथ पकड़ कर कहता है, " महरानी सा!! पहले हम से रंग नहीं लगवाएगी । दीक्षा कहती है, "राजा साहब!! पहले बड़ों क़ो रंग लगा लूँ फिर आपके साथ तो होली खेलीनी ही है । यह सुनकर दक्ष मुस्कुरा देता है और उसके माथे क़ो चूम लेता है । सभी जब नीचे आने लगते हैं तो दक्ष और पृथ्वी सभी के बाहर निकल जाते हैं।

पीछे शुभ के साथ सभी खड़ी होती है तो दीक्षा जो आगे जा रही होती है, उस को पकड़कर कहती हैं," अरे रुक जाईये देवरानी जी !! जीजी  कुछ बात है क्या !! हाँ बात है, हमारी दीक्षा महरानी सा!! अभी हम बड़ों से जितना रंग लगाएंगे और अपने पतियों क़ो  उसके बाद रंग लगाएंगे। हाँ!!ये तो हम करेंगे ही जीजी!! इसमें बताने वाली कौन सी बात है।तूलिका उसके सर पर मारती हुई कहती है, 'बिसखोपड़ा दिमाग़ तेरा मार काट मे ही चलता है !! पहले शुभ भाभी की बात सुन। ये जो बिच बिच मे कौन बनेगा करोड़पति वाले सवाल पूछना बंद कर। कहिये बड़ी जीजी!!

शुभ कहती है, " उसके बाद हम मे से एक भी लडकियाँ किसी भी लड़के चाहे पति हो या देवर,खुद को रंग लगाने नहीं देंगी।यह सुनकर दीक्षा कहती है, " लेकिन वो मानेंगे!! जीजी। शुभ कहती है, "अरे वो तो नहीं मानेंगे लेकिन हम मनवायेगे। हम लगाने देंगे नहीं। अरे जीजी !! तब तो आज आपने अपने पति से साथ साथ सारे देवर की लगा दी। ये सुनकर सभी हंसने लगती है। जीजी आपने तो बिना तलवार के ही सभी क़ो चारों खाने चीत करने का मन बना लिया है। सभी लडको क़ो परेशानियों में आपने डाल दिया।

रितिका  कहती है,"  अरे परेशानी कैसे पता तो चले उनकी पत्नियां को रंग लगाने इतना आसान है अभी यह सुनकर सभी हंसने लगती है तभी पीछे से रौनक आता है और कहता है, " भाभी माँ !!  आप लोगों की हंसी ठिठोली हो गई तो बाहर आ जाइए आप सबको बुलाया जा रहा।

यह सुनकर जब सब बाहर जाने लगती है तो तूलिका कहती है एक बात बताओ भांग की तैयारी है या नहीं सही उसके मुंह पर उंगली डालती हुई अनामिका कहती है, " खबरदार  भाभी माँ !! भांग का नाम लिया तो हंगामा हो जाएगा। यह सुनकर तूलिका मुंह बनाते हुए कहती है, " अरे यार होली है और होली मे बिना भांग वाली ठंडाई  कैसा अच्छा लगेगा? दीक्षा कहती है अच्छा!! ज़ब सबके डंडे बरसगे तो कैसा रहेगा!!

रितिका और कनक कहती है, जो डर गया वो मर गया महारानी सा!! शुभ भी कहती है, हाँ!! बिना भाँग की कैसी होली। हमारे पति तो ऐसे कारनामें ना खुद करेंगे ना करने देंगे। दीक्षा कहती है, तो ठीक है लेकिन भाँग किसके पास है, रीती क्या   तेरे पास भांग है !! रितिका मुंह बनाते हुए कहती है नहीं मेरे पास भांग नहीं।

तभी सौम्या कहती है, "भाभी सा मेरे पास भांग है । उसकी बातें सुनकर सभी की आंखें बड़ी हो जाती है। दीक्षा कहती है तुम्हारे पास भाँग कहाँ से आया। अरे भाभी माँ!! ऐसे आप सब मुझे मत देखिए मैंने झुमकी से मंगवा कर रखा था। सभी मुड़ कर झुमकी क़ो देखती है," जो कि सर हिला कर कहती हां भाभी माँ !! मैंने ही अपने पहचान वाले से मंगवा कर रखा था ।

शुभ कहती है, " संभाल के अगर किसी को पता चला ना यह कांड हमने किया है तो फिर खैर नहीं होगी। यह सुनकर अनामिका कहती है क्यों ना दादी माँ को मिला लिया जाए खुद में? ताकि हमारी शैतानियां अगर पकड़ी जाए तो बचाव के लिए कोई तो हो। यह सुनकर अंकिता कहती है लेकिन दादी माँ को मनाएगा कौन? सभी एक साथ दीक्षा की तरफ देखती है।दीक्षा सबको अपनी तरफ देख कर कहती है, "  क्या मैं?

सब एक साथ मासूम चेहरा बनाकर अपना सर हिला कर कहती है, " हाँ तुम!! बस तुम !!!

दीक्षा अपने दोनों हाथों क़ो हिलाती हुई कहती है, " ना बाबा!! बिल्कुल नहीं मैं नहीं जाऊंगी रानी मां के पास। तभी सौम्या, अंकिता, अनामिका और झुमकी उसके पैरों के पास रितिका और कनक उसके दोनों कंधो की तरफ और तूलिका और शुभ उसके दोनों हाथों क़ो पकड़ लेती है। सभी मासूमियत से उसकी तरफ देखती है और शुभ कहती है, "क्या तुम हमारे लिए इतना भी नहीं कर सकती।" दीक्षा अपनी आईबरों ऊपर करती हुई कहती है, "अच्छा!! अच्छा!! ज्यादा इमोशनल ब्लैकमेल करना बंद करो। मै कोशिश करुँगी रानी माँ क़ो अपने पक्ष मे करने की। ये सुनकर सभी मुस्कुरा देती है। लेकिन। दीक्षा की लेकिन सुन सभी फिर से उसे देखती है। दीक्षा कहती है, ऐसे मत देखो मुझे, अगर वो नहीं मानी तो मै कुछ नहीं कर सकती, अब चलो देखती हूं।

तब तक एक बार फिर हार्दिक आता है और कहता है," भाभियों आप लोग क्या कर रही है अंदर!! बाहर आइए सब बुला रहे हैं? यह सुनकर सभी बाहर आते हैं। प्रजापति महल में आज आम लोग भी बहुत सारे आये होते हैं क्योंकि आज सबसे बड़ा खुशी का दिन था राजेंद्र जी के लिए। आज पहली बार कुल मंदिर से  पूजा  पूरी तरह सफल और संपन्न हुई थी।

सभी बाहर आती है एक एक कर सभी बड़ो क़ो रंग पैरों और चेहरों पर लगाती है। सभी एक दूसरे क़ो मुबारकबाद देते है। तुलसी जी सभी से दीक्षा और सभी बहुओं क़ो मिलवाती है। सभी दीक्षा क़ो इशारा देती है।

अनीश उन्हें इशारा करते देख लेता है और दक्ष सब से कहता है, मुझे क्यों लगता है की हमारी पत्नियां कुछ लम्बा झोल करने मे लगी है। जिसे सुनकर अतुल कहता है, "चुप कर हर वक्त वकील का दिमाग़ लगाते रहता है। होगी कोई बातें है।

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इधर जयचंद के यहाँ दुख का माहौल था। स्नेहलता का रो रो कर बुरा हाल था वो जयचंद से कहती है, मेरे बेटे क़ो. जिसने मारा अगर तुम ने उसका सर काट कर मुझे ला कर नहीं दिया तो आज से मेरे लिए मेरे बेटे के साथ तुम भी मर चुके हो कहती हुई अपनी चूरियां उतारने लगती है। जिसे देख दाता हुकुम कहता है, भाभी सा!! अभी ये मत उतारीये। ज़ब हम लाकर नहीं देंगे उस दक्ष प्रजापति का सर, तब ये वैधव क़ो अपनाना। अभी हम आपसे वादा करते है की.... जरूर आपके बेटे का इतकाम पूरा करेंगे और उस दक्ष प्रजापति का सर आपकी कदमों मे लाकर देंगे। अभी आप अपने बेटे क़ो आखिरी विदाई दीजिये।

रंजीत के साथ साथ सभी जयचंद के महल आ रखे थे। जयचंद तो जैसे खुद क़ो क्रोध की अग्नि मे तपा रहा था।