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Heartless king

न्यूयोर्क शहर एक उँची ईमारत से, एक शख्स शीशे क़ी खिड़की के पास खड़ा  निचे आते -जाते हुए गाड़ीयों और लोगों को देख रहा होता हैँ..... उतनी ऊंचाई लोग और गड़िया उसे कीड़े माकोड़े क़ी तरह दिख रही होती हैं। वो निचे देखते हुए कुछ सोचे जा रहा था। तभी दो लोग अंदर आते हैँ, चलो हमें निकलना हैँ, काका हुजूर का बार बार फ़ोन आ रहा हैँ .... राजस्थान के लिए.... जैट तैयार हैँ......... वो शख्स, "हम्म्म " कहते हुए फिर से खिड़की क़ी तरफ देखते हुए और कहता हैं........... क्या उसके बारे कुछ मालूम हुआ, कहते हुए उसके आखों में एक दर्द उभर आया। दूसरा शख्स, "तुम आज तक नहीं भूले हो उसे..... सात साल हो गए.... कौन थी, कहाँ से आयी थी, केसी दिखती हैं,अब तक हमें मालूम नहीं हुआ,जैसे उसे जमीन खा गयी या आसमान निगल गया। जिन्दा भी हैं या मर गयी। तभी वो गुस्से में, उसका गला पकड़.... जस्ट शटअप दुबरा ये कहने की हिम्मत मत करना ये कहते हुए उसके आँखो में खून उतर आया। फिर झटके से उसे छोड़ दिया। वो खाँसते हुए अपने गले को सहलाता हैं। तभी वो मुड़ता हैँ और कहता हैँ..... उसकी पहली मुलकात के बाद यही कहूँगा क़ी उसके बगैर दिल कही लगता नहीं ज़ब तक जियूँगा उसे आखिरी सांस तक ढूढ़गा..... आगे महादेव क़ी मर्जी। तभी तीसरा शख्स छोड़ ना तू इसे जानता तो हैँ। तीनों निकल जाते हैं इंडिया के लिए.....

Dhaara_shree · Urban
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ch-13

अंकिता खुद मे खोई हुई, महल के दूसरे तरफ जा रही थी। पीछे से किसी ने उसके मुँह पर हाथ रखा और उसे खींच कर ले जाने लगा। वो हाथ पैर मारती रही लेकिन उसकी पकड़ से वो छूट नहीं पायी।

दक्ष हार्दिक और अनामिका क़ो एक एक करके सबसे मिलवाता है। ज़ब दीक्षा से मिलवाता है तो उसके आखों मे चमक देख कर दोनों भाई बहन मुस्कुरा देते है।

मेहंदी होने के बाद दक्ष सबको लेकर चला जाता है उसके साथ कनक भी होती है। रंजीत जी और कामिनी जी पृथ्वी और रौनक क़ो कहते है, आप दोनों साथ जाये। हमारे घर की बहु क़ो पहुंचा कर आये। बड़े भाई सा और भाभी सा की आज्ञा नहीं होती तो हम कभी हमारी बिन्दीनियों क़ो दक्ष के साथ नहीं भेजते। चलिए जाईये आप।

दक्ष के साथ पृथ्वी और रौनक निकल जाते है तो हार्दिक और अंकित कहता है, भाई हम भी साथ चले। दीक्षा, दक्ष के बदले मुड़ कर जबाब देती है, हम सब तो किसी कारणवश जा रहे है लेकिन घर की रौनक तो आप सब है इसलिये आपसब बच्चे यही रहेंगे। खुद का और अपने साथ सभी का ध्यान रखिये।

जिसे सुनकर दोनों एक साथ कहते है, जो हुकुम मलिल्का। दक्ष अपनी आँखे छोटी करके उन्दोनो क़ो घूरता है और दीक्षा की बाजु क़ो पकड़ कर कहता है, चलिए देर हो गयी है। लेकिन दक्ष रुकिए तो सही। दक्ष उसे सीधे गाड़ी मे बिठा कर वहाँ से निकल जाता है।

सभी उसे देख कर अपना सर ना मे हिला देते है....। हार्दिक सबकी तरफ देखते हुए कहता है, ये बड़े भाई सा क़ो क्या हुआ है ? ये सुनकर अंकित कहता है, बाद मे बताऊंगा छोटे अब चलो। सब निकल जाते है।

दीक्षा गाड़ी मे गुस्से से दक्ष क़ो घूर रही थी। दक्ष बिना उसकी तरफ देखें अपनी तरफ खींच लेता है, जिससे वो सीधे उसके गोद मे जा कर बैठ जाती है। ये आदमी दिन ब दिन बेशर्म हो ठीट होते जा रहे है। उउउह्ह्हम्म्म! आप मुझे कुछ कह रही है स्वीट्स! बिल्कुल नहीं आपको मै कुछ ऐसी मेरी मजाल कहाँ?

उसके पेट पर अपने दबाब क़ो बना कर अपने और करीब करते हुए कहता है, "वैसे मै ज्यादा जताता नहीं लेकिन आप जानती है, मै आपको लेकर कितना पोसेसिव हूँ।" उसके कंधे क़ो चुम कर कहता है, इसलिये आप शांत हो जाईये। लेकिन दक्ष वो आपके भाई है।

दक्ष उसे अपनी तरफ घुमा कर उसके होठों पर अपने होठों क़ो रख कर उसे इंतेनसिली चूमने लगता है। इधर गाड़ी का पार्टिशन ऑन कर देता है। दीक्षा उसकी कशिश भरी किश से खुद क़ो अलग नहीं कर पाती और उसके हाथ खुद दक्ष के गर्दन पर चलने लगते है।

अंकिता क़ो लेकर वो कमरे मे लाता है और उसे पकड़े हुए ही दरवाजा बंद कर देता है। फिर अंकिता क़ो देखता है जो अपनी लाल गुस्से मे भरी आखों से उसे घूर रही होती है। उसको छोड़ते ही वो उसे जोर से धका देती है। जिससे वो दो कदम पीछे हट जाता है। फिर गुस्से मे आगे बढ़ कर उसके गालों पर थप्पड़ मारती हुई कहती है, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई शुभम शेखावत मेरे साथ इस तरह की बत्तमीजी करने की।क्या तुम भूल गए की हमारे बिच एक साल पहले ही सब कुछ खत्म हो चुका था। तुमने मुझे धोखा दिया था ये तुम भूल गए या याद नहीं है। मुझे कमजोर मत समझना। मै अंकिता सिंहानियाँ हूँ। मैंने सिर्फ दक्ष भाई  के सम्मान की वजह से चुप हूँ नहीं तो तुम्हारा.... कहती हुई अपना मुक्का दिखाती है।

शुभम उसकी मुठ्ठी क़ो अपनी मुठियों मे दबाते हुए बहुत प्यार से देखता है और कहता है, अगर और कुछ बच गया तो वो भी कह लो क्योंकि ज़ब मै बोलुँगा तो तुम सिर्फ सुनोगी। मेरा हाथ छोड़ो और मुझे जाने दो, ना मुझे तुमसे कुछ कहना है और ना तुम्हारी कुछ सुननी है।जाओगी तुम तब तक ज़ब तक मै ना चाहूं। फिर उसे अपने कंधे पर उठा कर सीधे बेड पर पटक देता है और उसकी तरफ देखते हुए झुकने लगता है।

दूर रहो मुझसे, ये क्या कर रहे तुम शुभम शेखावत। क्यों दूर रहु तुमसे इससे कहीं ज्यादा करीब तो हम कई बार आ चुके है फिर आज क्या नई बात है, कहते हुए उसे ऊपर से दबोच लेता है और अपने होठों क़ो उसके करीब ले जाने लगता है। बोलो सुनोगी आराम से मेरी बात या मै सिर्फ एक्शन करुं। अपने चेहरे क़ो घुमाती हुई कहती है, सुनुँगी तुम्हारी बात अब मेरे ऊपर से हटो।

शुभम मुस्कुराते हुए उसकी कमर क़ो पकड़ कर अपने ऊपर उसे ले लेता है। अभी वो निचे और अंकिता उसके ऊपर थी। ये क्या तरीका है बात करने का!  ये मेरा तरीका है बात करने का। ठीक है ! ठीक  है! जो कहना है जल्दी कहो।

अच्छा तो मेरी तरफ देखो। बात सुनने के लिए कानों की जरूरत होती है ;आखों की नहीं!!!

लेकिन मेरी बातें तुम कानों से ज्यादा अपनी आखों से समझोगी ये कहते हुए शुभम की आवाज़ इस बार गंभीर थी। अंकिता कहती है, बोलो।

"मै कोई सफाई नहीं दूँगा जो तुमने देखा था। लेकिन इतना जरूर कहूँगा की मैंने तुम्हारे सिवा किसी क़ो नहीं छुआ है ना कभी छुआ था।"अच्छा तो फिर वो क्या था, जो मैंने था वो गलत था। क्या तुम थोड़ी देर चुप रहोगी। हाँ ठीक है, बोलो।

सुप्रीया मेरी मॉम की भेजी हुई लड़की थी जिससे वो मेरी शादी तय करना चाहती थी। तुम जानती हो हम सब भाई कहीं ना कहीं दक्ष भाई की मदद कर रहे है बिना किसी की नजर मे आये हुए। मै मॉम क़ो सीधे तरिके से मना नहीं कर पाया। लेकिन मुझे नहीं मालूम था की वो इतनी गंदी चाल चलेगी और मेरी चाय मे कुछ मिला देगी और तुम भूल क्यों रही हो वहाँ की लोकेशन मैंने तुम्हें और रौनक भाई क़ो भेजी थी। तुम आयी तो उसे मुझे पर सोया देख वही से चली गयी एक बार भी पलट कर नहीं देखा। बस तुम्हारे आने की वजह से सुप्रिया डर गयी की कहीं वो पकड़ी ना जाये इसलिये मुझे उसी तरह छोड़ कर चली गयी। बाद मे रौनक भाई ने मुझे हॉस्पिटल मे एडमिट किया, जहाँ मे दो दिनों तक बेहोश था।

ज़ब मुझे होश आया तो मै तुम्हारे पास आया था लेकिन मुझे छोड़ कर बाहर चली गयी थी और ये बात मै किसी से पूछ नहीं सकता था। मै भी अपनी मॉम से नाराज होकर खुद क़ो काम मे डूबो दिया। इस शादी मे, मै बस तुम्हारे लिए आया हूँ अंकिता !! सिर्फ और सिर्फ तुम्हें मानाने अपनी मोहब्बत क़ो फिर से पाने आया हूँ। अगर अब भी तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं है तो शायद मेरी मौत..... आगे कुछ कहता उससे पहले अंकिता उसके होठों क़ो अपने होठों से दबा देती है।

शुभम भी मुस्कुराते हुए उसे चूमने लगता है।

अवंतिका विला....

सभी इंतजार कर रहे थे दक्ष और दीक्षा का, ज़ब दोनों अंदर आते है तो पृथ्वी कहता है, "अतुल जहाँ तक हमे याद है, दक्ष हम सभी से पहले निकला था ना !! हाँ भाई सा!! लेकिन लौटा है सबसे पीछे।

सबकी नजरें खुद पर महसूस कर रही दीक्षा, दक्ष क़ो घूरती है और तेजी से अपने कमरे मे चली जाती है, क्योंकि उसके हुलिया दक्ष ने बहुत बिगाड़ दिया था। मगर दक्ष क़ो कोई फर्क नहीं पड़ता और वो अपनी ठंडे व्यवहार के साथ सबके सामने आता है और कहता है, भाई से !!! सारी तैयारी हो चुकी है। आपकी बदौलत बाहर से तो कोई धमाके नहीं होंगे लेकिन कल हमारी तरफ से आतिशबाजी की पूरी तैयारी है।

पृथ्वी उठ कर कहता है, आप फ़िक्र मत कीजिये पूरी तैयारी है। फिर सभी गले मिल कर कहते है, चलिए कल की तैयारी करते है। मिलते है फिर कल। जी भाई सा, ख्याल रखिये।

अगली सुबह प्रजापति महल...

आज की सुबह सभी के लिए कुछ अलग और नया होने वाली थी। किसी की जिंदगी मे नए रंग भरने वाले थे  तो किसी की जिंदगी के रंग खत्म होने वाले थे।

शुभम की बाहों मे सोई अंकिता की ज़ब आँखे खुली तो तो खुद क़ो शुभम की बाहों मे देख, जोरवसे चीखती उससे पहले उसके होठों क़ो शुभम अपने मुँह मे ले लेता है। कुछ देर चूमने के बाद कहता है, इतनी जोर से क्यों चिल्लाने लगी थी। चिल्लाऊँ नहीं तो और क्या करुं? मै पूरी रात तुम्हारे साथ थी किसी क़ो मालूम चल गया तो। किसी क़ो मालूम नहीं चलेगा। अंकिता घूर कर उसे देखती है और कहती है, तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन मुझे फर्क पड़ता है। अरे यार कितना बोलती हो तुम। सौम्या ने सब संभाल लिया है मेंने उसे मेसेज कर दिया था।सच ख़ुश होकर पूछती है। शुभम मुस्कुराते हुए, हाँ कहता है। तो अब मुझे जाने दो। पहले एक वादा करो की आज जो कपड़े मे लाया हूँ, वही तुम पहनोगी। हहहह!!! क्या लाये तुम। सौम्या के पास है खुद ही देख लेना। ठीक है अब मुझे छोड़ो। शुभम उसके नाक क़ो चूमते हुए कहता है, ठीक है।

कनक और शुभ एक कमरे मे सो रही थी। कनक सबेरे उठ कर बालकनी मे खड़ी हो जाती है और सुबह की पंछीयों की चहचहाहट क़ो सुन रही थी। उसकी अंदर अब भी शोर था जिसे वो समझ नहीं पा रही थी। शुभ सुबह सुबह उसके लिए चाय लाती है और उसकी तरफ एक कप बढाती हुई कहती है, "इतनी शोर!!! से ये मत समझना की कुछ गलत हो रहा है याँ होने वाले है।तुम्हारे मन का शोर आज तुम्हें नई जिंदिगी देने वाला है जिसे खुल कर जीने का मौका तुम्हें देना है।"

शुभ की बात सुनकर कनक कहती है, "जीजी क्या मै रिश्ता संभाल लुंगी। मुझे पता नहीं क्यों घबराहट हो रही है।"ऐसा क्यों सोच रही आप, क्या आपके दिल मे कोई और है। नहीं जीजी मेरे दिल मे कोई और नहीं है लेकिन रौनक जी भी नहीं है।

देखिए कनक शादी हमारी सभ्यता मे, वैसी भी होती है, ज़ब लड़का और लड़की एक दूसरे क़ो जानते है ;वैसी भी होती है, ज़ब दो लोगो अजनबी होते है ;वैसी भी होती है, ज़ब दो लोगो एक दूसरे क़ो जानते तो है लेकिन कभी उनकी शादी हो जाएगी ऐसा नहीं सोचते है।

आपकी और रौनक की शादी कुछ इस तरह की है की आप दोनों एक दूसरे क़ो जानते तो है लेकिन आपदोनों ने ये नहीं सोचा था की आपकी शादी हो जाएगी। बस यही एक बात आप दोनों क़ो परेशान कर रही है।

अब ये सब छोड़िये!!दिल से रिश्ते मे जुड़ीयें, बाक़ी सब होता जायेगा।

कनक मुस्कुराते हुए कहती है, आप जानती है!!मुझे अपनी किस्मत से हमेशा शिकायत रही है। हम कितना भी कुछ कर लेते लेकिन हमारे परिवार क़ो ख़ुशी नहीं होती। भरे -पुरे परिवार मे रहने के बाबजूद हम हमेशा अकेले ही रहे है। लेकिन ज़ब से रौनक जी हमारी जिंदगी मे आये है। उसके बाद हमारे पास ऐसे रिश्ते है जो हमे कभी अकेला नहीं रहने देता। आप, दीक्षा, तूलिका, रितिका आप सभी हम से हमेशा अपनापन रखते है।

शुभ मुस्कान के साथ कहती है तो चलिए नए जीवन की तैयारी पूजा के साथ करे। हाँ चलिए।

दक्ष हमे जाने दीजिये। बिल्कुल नहीं स्वीट्स!!रात से आप हमसे नाराज है, हमें अपना हाथ तक खुद पर रखने नहीं दिया। अभी तो हमें बिल्कुल नहीं छोड़ेंगे। दक्ष आज शादी है और हम सभी क़ो, देवी माँ के मंदिर जाना है। आपको मालूम है ना की घर की बहु आज उनकी पूजा करेगी। अच्छा!!रानी सा क़ो तो सब कुछ मालूम है। लेकिन जाने की इज्जाजत तब होगी ज़ब आप मुझे प्यार करेगी। दक्ष ये ब्लैकमेल करना बंद कीजिये। मै ऐसा कुछ नहीं करुँगी। तो फिर भूल जाईये।

दक्ष दीक्षा क़ो खुद के ऊपर किये हुए, मुस्कराते हुए देखता है। दीक्षा गुस्से मे कहती है,'अगर अभी आपने मुझे नहीं छोड़ा तो आप सोच भी नहीं सकते दक्ष,' मै क्या करुँगी आपके साथ '। मुझे सब मंजूर है लेकिन अभी एक प्यार भरा किश चाहिए, कहते हुए दक्ष, दीक्षा क़ो खुद के निचे कर लेता है और उसके होठों पर अपने होठों क़ो रख कर चूमने लगता है।

दीक्षा उसके किश क़ो ज्यादा देर तक रेसीस्ट नहीं कर पाती और वो भी उसको चूमने लगती है। दक्ष मुस्कुराते हुए अपने हाथों क़ो उसके टीशर्ट के अंदर डाल देता है और उसके होठों क़ो छोड़ कर अब उसके गर्दन क़ो चूमने लगता है। दीक्षा मदहोश होती हुई कहती है, अभी नहीं दक्ष!!!अभी देर हो जाएगी। स्वीट्स मुझे अभी चाहिए और मै अब नहीं रुक सकता, कहते हुए उसके टीशर्ट क़ो निकाल देता है। उसकी मोहब्बत और बेसब्र नजरों क़ो देख दीक्षा मुस्कुरा देती है और खुद उसके चेहरे क़ो अपने सीने से लगा लेती है। अब दोनों अपनी मोहब्बत भरी दुनिया मे खो जाते है।

तूलिका ज़ब अतुल के बगल से उठ कर जाने लगती है तो अतुल उसकी बाहें पकड़ कर खुद के ऊपर खींचता है। उसजे इस तरह से खींचने से तूलिका घबराती नजर से अतुल क़ो देखती है। अतुल बहुत मायूसी से उसे देखते हुए कहता है, "माना हमारे बिच जो भी हुआ बहुत जल्दी हुआ। जिसके लिए तुम तैयार नहीं थी। लेकिन हमारी शादी के बाद तुम मुझसे खींची खींची रहने लगी हो। इससे तो अच्छी तुम पहले हुआ करती थी, निडर, बेबाक। क्या तुम्हें मै पसंद नहीं था। क्या जो मैंने तुम्हारे लिए महसूस किया वो सिर्फ एक तरफा था।

ये कहते हुए अतुल तूलिका की आखों मे देख रहा होता है, इस इंतजार मे की वो कुछ कहेगी। तभी शुभ की आवाज़ आती है, तुली तैयार हुई, हमे मंदिर जाना है। उसकी आवाज़ सुनकर तूलिका कहती है, अतुल जी मुझे छोड़िये, ये कहती हुई वो तेजी से वाशरूम चली जाती है।

अतुल बेचैनी मे बस तूलिका क़ो जाते देखता है और वो भी उठ जाता है।

रितिका तैयार होकर आईने के पास खड़ी थी और सिंदूर अपनी मांग मे भर रही थी की तभी अनीश उसके हाथों क़ो पकड़ लेता है और खुद सिंदूर उठा कर उसकी मांग मे भर देता है। रितिका प्यार से अनीश क़ो निहार रही होती है। अनीश उसके गालों क़ो चूमते हुए कहता है, वकील साहिबा ऐसी मोहब्बत से ना देखिये। हमारा ईमान डोल जायेगा और जो हमारे बिच समझौता हुआ है की शादी के बाद हमें दोनों करीब आएंगे। कहीं उससे पहले ना टूट जाये। रितिका मुस्कुरा कर उसके सीने से लग जाती है। अनीश उसे बाहों मे भरते हुए कहता है, आज रात हमारी मिलन की रात है तो तैयार रहिएगा। उसके माथे क़ो चुम कर कहता है, अब जाईये और हाँ रात मे पहने के लिए मैंने कपड़े रख दिए है वही पहनना। रितिका अपना सर हाँ मे हिलाती हुई बाहर चली जाती है।

सभी ने आज साड़ी पहनी हुई थी। ऊपर से अनीश, दक्ष और अतुल अपनी अपनी पत्नियों क़ो देख रहे थे।अनीश वीडियो कॉल करके पृथ्वी और रौनक क़ो दिखा रहे होता है। पांचो मंदिर के लिए निकल जाती है क्योंकि ये पूजा सिर्फ उन्हें ही. करनी होती है तो उनके साथ कोई नहीं जाता है।

उनके निकलने के साथ दक्ष किसी क़ो कॉल करता है और कहता है, शुभम, अंकित आप सब की भाभियाँ निकल गयी है देवी माँ की मंदिर, आगे आप सब संभाल लीजिये। उधर जी भाई से।

अनीश कहता है, तुमने भाभी सब के साथ क्यों नहीं भेजा इन शैतानों क़ो। दक्ष आह भरते हुए कहता है, ज़ब से स्वीट्स ने तलवार बाजी सीखी है, तब से उन्हें लगता है की वो पूरी जंग अकेले जीत लेगी और हम उनके इस ख्याल क़ो बदलना नहीं चाहते।दोनों बात कर रहे होते है की अनीश, दक्ष क़ो इशारा देकर अतुल की तरफ दिखता है, जो किसी और ख्यालों मे था।

दक्ष अतुल क़ो यु खोया हुआ देख कर, दक्ष उसके एक तरफ खड़ा हो जाता है और दूसरी तरफ अनीश खड़ा हो जाता है।

दक्ष कहता है, तूलिका के लिए परेशान है। उसकी बात सुनकर अतुल अपने दोनों तरफ देखता है लेकिन कुछ कहता नहीं। दक्ष  फिर कहता है, ज़ब हमे मालूम है की हमें जिस रास्ते पर चल रहे है, वो रास्ता बहुत कठिन है तो हर कदम पर हार मानने का क्या मतलब। उसकी बात सुनकर अतुल कहता है, मै कुछ समझा नहीं तुम क्या कहना चाहते हो?

अनीश कहता है, पहले भी तुम तूलिका क़ो कम्फर्ट करवाते थे बिना किसी उम्मीद के। लेकिन शादी के बाद तुम उस कम्फर्ट के बदले उससे उम्मीद कर बैठे हो। तुम्हें मालूम है उसे थोड़ा वक़्त चाहिए।

तो क्या करुं, जिससे वो मेरे साथ कम्फर्ट महसूस करे। उसकी बातें सुनकर दक्ष कहता है, तू सिर्फ उस पर अपना मोहब्बत जता, अपना हक दिखा। बाक़ी वो खुद तेरे करीब होते चली जाएगी। और तुझे ये मानना होगा की तेरा रिश्ता इतना आसान नहीं है। वो कदम कदम पर टूटेगी और तुझे कदम कदम पर उसे संभालना होगा।

अब चल ख़ुश हो जा। आज की बाद तो सबकी जिंदगी बदल रही है। तेरी भी बदलेगी इसलिए देवदास की जगह सलमान खान बन जा, कहते हुए अनीश उसके पेट पर मुक्का मारता है।

जिसे देख अतुल कहता है, साले तेरी ये आदत नहीं जाएगी। फिर तीनों एक दूसरे के गले मिल जाते है।

इधर मंदिर मे ज़ब दीक्षा पूजा कर रही थी। तब उसकी नजर मंदिर के पिछले हिस्से पर गयी। जहाँ कुछ लोग लगातार उन्हें घूर रहे थे।

मंदिर मे घंटीयों का शोर था और इधर दीक्षा की नजर अपने चारों और थी किसी क़ो कुछ समझ मे आता तब तक दीक्षा ने देवी माँ की त्रिशूल क़ो खींच कर पीछे से आ रहे एक नकाब पोश क़ो मार डाला। सब का ध्यान पूजा छोड़ पीछे गया। जिसे देख दीक्षा कहती है, जीजी आपकी और कनक की पूजा शेष है। आप दोनों पहले पूजा सम्पन्न कीजिये। तब तक हम इन्हें देखते है।

उनलोगों क़ो देख रितिका कहती, अरे इनलोगो के अंदर हमारे जीजू का डर भय खत्म हो चुका है क्या???तूलिका कहती है अगर ये बात तुझे इनसे पूछनी है तो भूल जा क्योंकि ये तेरा कोट नहीं है। अब तुम दोनों खुद मे उलझोगी याँ कुछ ढूढोगी इनको रोकने के लिए।

तब तक दो आदमी तलवार लेकर दीक्षा पर वार करते तब तक शुभम और हार्दिक अपनी तलवार आगे कर देते है और कहते है, तुझे क्या लगा था.... ये सब अकेली होगी कहते हुए उसे पीछे धका देते है।

तब तक. दीक्षा एक आदमी से उसका तलवार छीनती हुई, तूलिका और रितिका से कहती है, मेरे मुँह देखोगी ये छीनोगी इनसे तलवार।

तब तक कनक और शुभ भी उन्दोनो के साथ आकर सभी से लड़ने लगती है।

रितिका कहती है लेकिन हमसे कैसे होगा। दीक्षा तलवार चलाती हुई कहती है, एक से नहीं होगा लेकिन दोनो मिलकर एक से छीन सकती हो ना। फिर दोनों एक क़ो पकड़ कर तलवार छीनती है। तब तक अंकित और आकाश एक एक तलवार शुभ और कनक क़ो देते हुए कहते है, "भाभी सा !!! दुल्हन बनने से पहले प्रजापति खानदान की बहु का हक निभाइये।।

शुभ एक आदमी क़ो  अपनी तलवार से पीछे करती हुई कहती है,  हाँ लग तो यही रहा है।

दीक्षा की नजर ज़ब रितिका के पास जाती है तो उसके पास चार आदमी बढ़ रहे थे जिसे दीक्षा आगे बढ़ कर रोकती हुई कहती है, रीती नजर हर जगह रखिये, कहती हुई दोनों सभी क़ो. घायल करती है।

आकाश कहता है, अरे यार हम तो प्रजापति खानदान से है भी नहीं लेकिन अगर यहाँ आये और ये रौनक ना हुई तो बात ही नहीं बनती। प्रजापति खानदान मे जश्न हो और बलि ना चढ़े तो मजा नहीं आता है। अरे शुभम यार और कितने है, कमीने लगता है पूरी फौज उठा लाये है। सिर्फ औरतों क़ो मारने के लिए।कनक मारते हुए कहती है, इनलोगो क़ो मालूम नहीं था की प्रजापति खानदान की औरते चुड़ीयों के साथ साथ तलवार भी चलाती है।

बहुत देर से वो सभी मारे जा रहे थे। तूलिका कहती है, अरे यार ये चीटियों की झुण्ड की तरह कम ही नहीं हो रहे है।भूखे पेट लड़ते लड़ते तो हम बिल्कुल थक गए है। उसकी बातें सुनकर अंकित कहता है, भाभी मै हूँ ना सब संभाल लूँगा। आप परेशान मत हो। दोनों मुस्कान के साथ फिर लड़ते है।

एक तलवार ज़ब शुभ की तरफ आती है और उसकी बाजी मे लगनी होती है तभी दीक्षा उसके तलवार क़ो अपनी तलवार से रोकती हुई, उस आदमी के सीने पर वार कर देती है.... और जोर से कहती है, सबसे ज्यादा दोनों दुल्हन पर ध्यान देना आप सब इन दोनों क़ो एक खरोंच नहीं आनी चाहिए।

सभी एक साथ सहमत होते है।

सभी आने वाले  किसी भी हमलावर क़ो जान से नहीं मार रहे होते है बल्कि बुरी तरह से घायल कर रहे होते है। जिसे देख आकाश कहता है, यार इन सब क़ो जिन्दा क्यों रख रहे हो। उस पर हार्दिक कहता है, क्योंकि हम मंदिर मे है और सभी भाभियाँ अभी पूजा कर रही थी, शादी शुदा जीवन सुखी बिताने के लिए देवी माँ से आशीर्वाद लेने आयी थी इसलिए किसी की मौत यहाँ नहीं होने चाहिए।

अब मै थक गयी तुली। तूलिका कहती है उठ जा रीती अभी हम थक नहीं सकते।सभी लड़ते हुए थक चुके थे। लेकिन लड़ रहे थे। तूलिका कहती है, अरे भाई लोगो कल आते तुम सब। आज दुल्हन क़ो इतना थका दोगे तो बताओं वो शाम क़ो सुन्दर कैसे लगेगी। कमीने सब समझ ही नहीं रहे है।

तभी एक पीछे से तलवार दीक्षा पर आती है... ज़ब तक सब उसकी तरफ आते तब तक दीक्षा किसी की बाहों मे होती है और बहुत सारे आदमी एक साथ आकर उन सभी क़ो घेर कर पकड़ लेते है।

दीक्षा अपना सर उठा कर देखती है तो दक्ष खड़ा होता है। दक्ष मुस्कुराते हुए कहता है, मान गए हमारी शेरनी क़ो लेकिन आज के बाद अकेले जाने की इज्जाजत नहीं है।

दीक्षा मुस्कराते हुए उसके सीने से लग जाती है। इधर अतुल, अनीश और पीछे से पृथ्वी और रौनक भी आ जाते है। सब क़ो सुरक्षित देख सबकी जान मे जान आती है।

पृथ्वी शुभ क़ो बाहों मे भरते हुए कहता है, हमने मना किया था की शादी तक कुछ नहीं करने क़ो लेकिन ये लोगो बात कभी सुनते क्यों नहीं है।

दक्ष कहता है रहने दो भाई सा!!शादी से पहले ये इन सब की नजर उत्तराई हो गयी। आकाश और हार्दिक मुँह बना कर कहते है, थोड़ी देर और बाद मे आते आप सभी। ताकि आपकी शादी मे नागिन डांस की जगह हम सब सोये रहते।

जिसे सुनकर सभी हँस देते है।

पृथ्वी दीक्षा के पास आकर कहता है रुकिए जरा आप दोनों। फिर शुभ क़ो कहता है चलिए देवी माँ के पास से आरती की थाली लाईये। शुभ आरती की थाली लाती है। पृथ्वी आरती की थाली शुभ के साथ पकड़ते हुए कहता है, "प्रजापति खानदान मे ज़ब आप आएगी तब का तब देखेंगे। अभी हम हमारी बहुरानी और रानी सा की विजय तिलक करना चाहते है।"

फिर दोनों दक्ष और दीक्षा की आरती उतारते है। शुभ दोनों की तिलक करती है। पीछे से सब ये देख रहे होते है।

कनक क़ो अब भी कुछ समझ मे नहीं आता है। जिसे देख रौनक कहता है आपके सवाल का जवाब आपको शादी के वक़्त मिल जायेगा। तब तक. इंतजार कीजिये।

प्रजापति महल पूरी तरह से रौशनी से नहाया हुआ था। आज प्रजापति की शानों शौकत की कहानी ये शादी और उसकी तैयारियां बता रही थी। दुनिया भर कर के खाने की वैराइटी के साथ साथ, मोहक कला कृति भरी सजावट। एक एक चीज मे राजस्थान की संस्कृति और मिट्टी की खुशबु समाई हुई थी।पूरा राजस्थान शामिल था पूरा राजवाड़ा इस इंतजार मे था की आगे क्या होने वाला है प्रजापति खानदान मे.

सभी मे दाता हुकुम भी शामिल थे। सभी के बिच बैठे हुए बातें कर रहे होते है की एक इंसान कहता है, सुना है की पृथ्वी और रौनक जी की शादी हो रही है लेकिन राजा साहब के अपने पोते ने अब तक शादी नहीं की। तो आपको क्या लगता है हुकुम गद्दी पर कौन बैठेगा। जिसे सुनकर दाता हुकुम कहता है, ये तो वक़्त बताएगा, सेठ गंगा राम। आज पहले शादी तो देख लो। वैसे भी ये तो अच्छा है ना की दक्ष राजा सा की रेस से बाहर हो चुका है। छोड़ो ये सब बातें आज शादी और जश्न का मजा लो। प्रजापति की जश्न मे शामिल होने भी सबके नसीब मे नहीं होता तो तुम्हें मिला है तो मजे लो।

सभी महिलाओ ने राजस्थानी रंग बिरगी पोशाक और उनके साथ गहने पहन रखे थे। सभी पुरुष ने काले और सफेद मे सफारी सूट और केशरिया रंग की पगड़ी पहन रखी थी। पूरा राजवाड़ा शामिल था आज की शादी मे।

तुलसी जी और कामनी जी ने नीले रंग की रेशमी गोटे दार लहंगा पहन रखी थी, उन्ही के साथ रंजीत जी और राजेंद्र जी ने नीले रंग की सफारी सूट पहन रखी थी।

लक्ष्य, शमशेर, मुकुल, और चेतन जी ने मेरून रंग की लम्बी सफारी कोट पहन रखी थी और सुमन, लक्षिता, निशा, और सुकन्या जी ने उन्ही से मिलती मेरून रंग की साड़ीयाँ पहन रखी थी।

अंकिता, सौम्या, लावण्या, अनामिका, लतिका ने हल्की पिले रंग के लहंगे पहन रखे थे। शुभम, अंकित, आकाश, हार्दिक इन सभी ने थ्री पीस सूट ब्लैक मे पहन रखा था।

किसी ने आज की शादी मे किसी तरह की कमी नहीं छोड़ रखी थी। सभी की ड्रेस कोड पहले से तैयार थे।

मंडप के बिच पृथ्वी और रौनक बैठे हुए थे दोनों ने क्रीम रंग की शेरवानी पहन रखी थी। दोनों की नजर सामने था। उन्दोनो के साथ अतुल और अनीश थे। उन्दोनो ने भी सफ़ेद रंग की थ्री पीस सूट पहन रखा था। अनीश पृथ्वी क़ो छेड़ते हुए कहता है, भाई सा थोड़ा तो सब्र करो। तुम से ज्यादा शांत तो हमारा रौनकु है देखो तो कितने धीरज से अपनी दुल्हनियाँ का इंतजार कर रहा है और एक तुम हो जो उतावले हुए जा रहे हो।

पृथ्वी अपनी आँखे छोटी करके उसे घूरता है तो अतुल कहता है, आज नहीं भाई सा!!कहीं हम आपकी दुल्हनियाँ लेकर ना भाग जाये।

रौनक हल्का हँसते हुए कहता है, सुना था आज देख रहा हूँ शादी से पहले ही आपकी हालात खराब हो गयी है। उसकी बात सुनकर अनीश और अतुल एक साथ कहते है, रोनकु!!ज़ब बड़े बात कर रहे होते है तो छोटे बिच मे नहीं बोलते है। रौनक मुँह बना कर चुप हो जाता है।पृथ्वी कहता है, हमारे हीरो और हीरोइन कहाँ है, नजर नहीं आ रहे है। जिस पर दोनों कहते है, भाई सा हीरो -हीरोइन है तो उनकी इंट्री भी तो धमाकेदार होगी। वो ज़ब आएंगे तो आतिशबाजीयाँ शुरु हो जाएगी। पहले आप अपनी दुल्हनियाँ क़ो देखिये कहते हुए अपने हाथ सामने कर देता है। चारों की नजर सामने जाती है।

तभी शोर और तालियां बजने लगती है, शुभम -अंकित -हार्दिक -आकाश -अंकिता -सौम्या -अनामिका -लावण्या सभी एक बड़ी सी लाल चुनर क़ो उठाई हुई आ रही होती है। बिच मे तूलिका और रितिका के बिच मे शुभ और कनक लाल रंग के जोड़े मे बेहद खूबसूरत लग रही थी। दोनों ने झिनी सी चुनर पूरी तरह से ओढ़ रखी थी। जिसे पकड़ कर दोनों अपनी धीमी धीमी कदमों से मंडप की तरफ बढ़ रही थी। उनके साथ तूलिका और रितिका ने गहरी नारंगी रंग की लहंगे पहन रखे थे। उन्दोनो के माथे पर भी चुनर थी दोनों बिल्कुल राजस्थानी राजवाड़ा तरीके से तैयार हुई थी।

मंडप पर बैठे चारों ने अपना दिल और आँखे दोनों ही बिछा दी अपनी अपनी मोहब्बत के लिए। अतुल और अनीश के साथ साथ पृथ्वी और रौनक भी खड़े हो जाते है और चारों अपना हाथ बढ़ा देते है। दोनों दुल्हन के साथ तूलिका और रितिका भी ऊपर आ जाती है।

अतुल धीरे से कहता है, आपके प्यार का जो मिले आसरा फिर खुदा का बेशक सहारा ना हो । ये सुनकर तूलिका शरमा जाती है। अनीश रितिका की तरफ देख कर कहता है, हम तुम्हारे लिए तुम हमारे फिर जमाने का क्या है हमारा ना हो।रितिका मुस्कुरा देती है।

पृथ्वी के बगल मे शुभ बैठ जाती है और रौनक के बगल मे कनक।पृथ्वी धीरे से शुभ के कानों मे कहता है, प्यार के चाँद से रात रोशन रहे फिर कोई आसमां पे सितारा ना हो।शुभ घुघट के अंदर मुस्कुरा देती है। शुभम धीरे से अंकिता से कहता है, बहुत जल्द तुम्हें भी इस लाल रंग के जोड़े मे लेकर अपने घर ले जाऊंगा। अंकिता कहती है, पहले ये शादी देख लो फिर सपने देखना।

सभी सामने कुर्सी पर बैठ जाते है, शादी देखने।राजेंद्र जी कहते, दक्ष अभी तक नहीं. आया है लक्ष्य। बस बड़े पापा वो आ रहा है।

शादी पंडित जी करवाने लगते है।तभी पंडित जी कहते है कन्यादान के लिए दुल्हन के परिवार क़ो बुलाइये। सभी इधर उधर देखते है। शुभ का चेहरा उदास हो जाता है। कुछ लोगो कहते है लड़की का कोई परिवार नहीं है क्या? प्रजापति खानदान कैसी लड़की से शादी करवा रहे है?

कामिनी जी कहती है, मैंने तो पहले ही कहा था की ऐसी लड़की की शादी हमारे घर मे नहीं होनी चाहिए।

सभी के चेहरे पर परेशानी के भाव आ जाते है, उस बिच एक बार फिर पंडित की आवाज़ आती है, राजा साहब बड़ी दुल्हन के परिवार क़ो बुलाइये कन्यादान के लिए।कोई नहीं इनके परिवार मे, माँ -बाप या भाई बहन। तभी  पृथ्वी कुछ कहने के लिए मुँह खोलता है, की जी पंडित जी इनका...

तभी पीछे आवाज़ आती है, इनका बड़ा भाई और भाभी  है। हम करेंगे कन्यादान। ये आवाज़ सुनकर सभी पीछे मुड़ कर देखते है। बहुत के चेहरे का रंग उड़ चुका होता है।

"बहुत देर कर दी मेहरबान आते आते "कहते हुए अनीश मुस्कुराते हुए आकाश क़ो इशारा देता है। आकश एक हाथ से ताली बजाता है और आसमान मे आतिशबाजीयाँ शुरू हो जाती है।

जहाँ आवाज़ सुनकर सबकी नजरें रुक जाती है, वही आसमान मे हुई आतिशबाजी देख कुछ लोगो मुस्कुरा रहे होते है तो कई के माथे पर चिंता और पसीने की बुँदे आ जाती है।सामने मंडप पर पृथ्वी के साथ साथ सभी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।

ये नजारा ही बेहद आकर्षक लग रहा होता है। जैसे आसमां से सितारे खुद ही जमीं पर आ गए उन्दोनो के कदमों मे बिछने के लिए।

राजेद्र जी -तुलसी जी के चेहरे पर गर्वबिली मुस्कान और आखों मे प्यार भरे आंसू आ जाते है। जिसे देख लक्ष्य और मुकुल आकर उनके आखों से आंसू पोंछते हुए कहते है। बाबा सा ख़ुशी की घड़ी है। स्वागत कीजिये।

दोनों तरफ जितने लोग होते है, सभी खड़े हो जाते है और बिच मे,"केशरिया पगड़ी, सफेद लॉन्ग सफारी सूट, हाथों मे घड़ी, पॉकेट मे लाल रुमाल से शेर की आकार का बना हीरे का ब्रॉन्च पहने हुए दक्ष आज दुनिया का सबसे हसीन और दिलकश, रोबिला राजा लग रहा था, उसके साथ चल रही, गुलाबी बनारसी राजस्थानी लहंगा पहनी हुई, ऊपर से निचे तक राजवाड़ी रानी सा का श्रृंगार की हुई दीक्षा, आज गजब का नूर उसके चेहरे की शोभा बढ़ा रही थी। दोनों ज़ब हजारों लोगों के बिच से चल कर आ रहे थे तो लग रहा था राजस्थान का शेर अपनी शेरनी के साथ चल रहा था।कुछ पल के लिए वो महफ़िल रुक गयी थी सिर्फ उन्दोनो क़ो देखने के लिए।

दक्ष -दीक्षा आ कर अपने दादा -और -दादी के पैर छूते है। दोनों जी भर कर आशीर्वाद देते है। अभी अचनाक ऐसे होने पर किसी के कुछ समझ मे नहीं आ रहा था इसलिये कोई कुछ नहीं कहते है। जो जानते थे वो मुस्कान लिए दोनों क़ो देख रहे थे और जिन्हें नहीं मालूम था वो हैरत लिए उन्दोनो क़ो देख रहे थे।

रंजीत के कान मे शमशेर कहता है, बाबा सा!!ये शेर नहीं बबर शेर निकला। एक चाल मे हम सब क़ो चारों खाने चीत कर दिया इसने। चुप रहिये जमाई सा, बाद मे हम बात करेंगे। जयचंद परिवार की तो हवाईयाँ उड़ जाती है। इधर दाता हुकुम जो बहुत मजे से शराब पीते हुए, शादी देख रहा था। दीक्षा क़ो दक्ष के साथ देख खुद मे बुदबूदाते हुए कहता है, नहीं! नहीं! ये नहीं हो सकता है, दक्ष प्रजापति की शादी नहीं हो सकती है।

दक्ष उनसभी क़ो नजर अंदाज करते हुए दीक्षा का हाथ थाम मंडप पर आ जाता है और अपनी हुंकार और तेज आवाज़ मे कहता है, "आज मैं दक्ष प्रजापति आप सभी क़ो अपनी पत्नी से मिलवाता हूँ। ये है हमारी पत्नी दीक्षा दक्ष प्रजापति।सभी क़ो हैरानी मे छोड़ कर दक्ष पंडित की तरफ देखता है।लतिका गुस्से भरी नजर से दीक्षा क़ो देख रही थी। अपने मन मे तुमने मेरे सपनो क़ो छिना है मै तुम्हें कहीं का नहीं रहने दूँगी।

पंडित जी, हमने शुभप्रदर्शनी क़ो अपनी छोटी बहन माना है और ये है हमारी पत्नी दीक्षा दक्ष प्रजापति और कन्यादान हमें दोनों करेंगे। जी जी राजा सा आईये बैठिये। दक्ष और दीक्षा एक साथ शुभ के साथ बैठ जाते है। शुभ जो अभी तक सभी बातें सुनकर बहुत दुखी थी लेकिन घुघट मे होने के कारण उसे कोई देख नहीं पा रहा था। ज़ब दीक्षा और दक्ष क़ो देखती है तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और वो मुस्कान के साथ अपना हाथ दोनों के हाथ मे देते है। पंडित जी पानी ग्रहण विधि के साथ कन्यादान की विधि पूरी करते है। दक्ष और दीक्षा वहाँ से उठ कर अतुल और अनीश के साथ खड़े हो जाते है।

अब रौनक और कनक की कन्यादान के लिए पंडित जी कहते है तो जयचंद जी अपनी पत्नी स्नेहलता के साथ आने लगते है। तभी दक्ष की जोरदार आवाज़ आती है, राजा जयचंद यहाँ  कन्यादान के लिए माता -पिता क़ो बुलाया गया। उसकी बात सुनकर एक पल के लिए जयचंद और उनकी पत्नी के रंग उड़ गए। उनके साथ साथ सभी हैरानी से दक्ष की तरफ देख रहे होते है।

कनक और रौनक भी दक्ष की तरफ सवाल भरी नजर से देख रहे होते है। तभी एक तो दक्ष का यु आकर सबको बताना की वो शादीशुदा है और ऊपर से अब ये बोलना। रंजीत जी क़ो बहुत ज्यादा गुस्सा आता है और चीखते हुए कहते है, दक्ष माना की आप अपनी जिंदगी मे मनमानी कर के किसी से भी शादी करके चले आये इसका मतलब ये नहीं की आप किसी की भी बेज्जती कर दे।

पुरे मेहमानों के बिच काना फुंसी होने लगती है। सभी तरह तरह की बातें बनाने लगते है। कुछ कह रहे होते है। लेकिन सीधे तरीके से कोई खुल कर प्रजापति खानदान के सामने नहीं बोल रहा होता है।

दादा सा !! किसी नहीं है ये..!! ये यहाँ की होने वाली रानी सा है तो सोच कर बोलिये और रही बात राजा जयचंद जी की तो आप उन्ही से क्यों नहीं पूछ लेते है की,' मै क्या गलत कह रहा हूँ। बोलिये जयचंद जी।

जयचंद गुस्से मे बीफरते हुए कहता है, मुझे अपनी बेटी की शादी इस प्रजापति खानदान मे करनी नहीं। सोम चलो कनक क़ो उठाओ मंडप से। जयचंद और उनके परिवार के सदस्य मंडप पर चढ़ने लगते है।

ये सुनकर कनक डर से रौनक के हाथों क़ो पकड़ लेती है। रौनक उसके हाथों पर अपने हाथों क़ो रखते हुए धीरे से कहता है, आप फ़िक्र मत कीजिये, आप ही हमारी पत्नी होगी।

स्नेहलता कहती है, होंगे आप होने वाले राजा। होगी ये आपकी पत्नी लेकिन,'मै अपनी बेटी की शादी अब आपके घर मे नहीं होने दूँगी। आगे बढ़ने लगती है।

ये सुनकर सभी दंग रह जाते है। रंजीत जी और कामिनी जी कहती है, ये आप क्या कह रहे है समधी जी, किसी के कुछ भी कहने से, सच नहीं बदल जाता है। आप हमारी छोटी बहु के माता -पिता है और आप ही कन्यादान करेंगे।

जयचंद गुस्से मे कहते है, नहीं प्रजापति जी अब ये शादी हरगिज नहीं होगी। लतिका और स्नेहलता क़ो देख कर कहते है, आप सभी मेरे मुँह क़ो देख रही है, उठाईये कनक क़ो मंडप से। हमे ऐसे परिवार मे अपनी बेटी नहीं देनी।

रंजीत अपने बड़े भाई से कहते है, देख लिया भाई सा!!! ये नई दुल्हन आयी नहीं की हमारी खानदान की बदनामी साथ ले आयी है। आप रोकिये दक्ष क़ो और कहिये माफ़ी मांगे हमारे समधी से। राजेंद्र जी कहते है, आप शांत हो जाईये। हम बात करते है।

राजेद्र जी के साथ साथ सभी उनको रोकने के लिए हाथ जोड़ने क़ो होते है। तभी दक्ष कहता है, कोई हाथ नहीं जोड़ेगा।

जिसे सुनकर राजेंद्र जी गुस्से मे कुछ कहने क़ो होते है, तो तुलसी जी उनका हाथ पकड़ लेती है और कहती है, "राजा साहब !! हमें हमारे पोते पर पूरा भरोसा है।आप थोड़ी देर शांत रहे है।"

आज पहली बार तुलसी जी ने सबके सामने दक्ष के लिए कुछ बोला था, जिसे सुनकर कामिनी जी आकर कहती है, जीजी आप कब से दक्ष के गलत काम क़ो बढ़ावा देने लगी। कामिनी हमें मालूम है की दक्ष कभी बेवजह की बातें नहीं करते है इसलिए हमें उम्मीद है की अभी वो जो भी कह रहे है और कर रहे है। उसके पीछे जरूर कोई वजह होगी।

ज़ब तुलसी जी की बात जयचंद जी सुनते है तो तेजी से वो खुद मंडप की तरफ कदम बढ़ाते है।

तभी दक्ष की रोबदार आवाज़ आती है, वही रुक जाईये जयचंद जी।उसकी आवाज़ इतनी कठोर थी की एक पल के लिए जो जहाँ थे वही रुक गए।