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Heartless king

न्यूयोर्क शहर एक उँची ईमारत से, एक शख्स शीशे क़ी खिड़की के पास खड़ा  निचे आते -जाते हुए गाड़ीयों और लोगों को देख रहा होता हैँ..... उतनी ऊंचाई लोग और गड़िया उसे कीड़े माकोड़े क़ी तरह दिख रही होती हैं। वो निचे देखते हुए कुछ सोचे जा रहा था। तभी दो लोग अंदर आते हैँ, चलो हमें निकलना हैँ, काका हुजूर का बार बार फ़ोन आ रहा हैँ .... राजस्थान के लिए.... जैट तैयार हैँ......... वो शख्स, "हम्म्म " कहते हुए फिर से खिड़की क़ी तरफ देखते हुए और कहता हैं........... क्या उसके बारे कुछ मालूम हुआ, कहते हुए उसके आखों में एक दर्द उभर आया। दूसरा शख्स, "तुम आज तक नहीं भूले हो उसे..... सात साल हो गए.... कौन थी, कहाँ से आयी थी, केसी दिखती हैं,अब तक हमें मालूम नहीं हुआ,जैसे उसे जमीन खा गयी या आसमान निगल गया। जिन्दा भी हैं या मर गयी। तभी वो गुस्से में, उसका गला पकड़.... जस्ट शटअप दुबरा ये कहने की हिम्मत मत करना ये कहते हुए उसके आँखो में खून उतर आया। फिर झटके से उसे छोड़ दिया। वो खाँसते हुए अपने गले को सहलाता हैं। तभी वो मुड़ता हैँ और कहता हैँ..... उसकी पहली मुलकात के बाद यही कहूँगा क़ी उसके बगैर दिल कही लगता नहीं ज़ब तक जियूँगा उसे आखिरी सांस तक ढूढ़गा..... आगे महादेव क़ी मर्जी। तभी तीसरा शख्स छोड़ ना तू इसे जानता तो हैँ। तीनों निकल जाते हैं इंडिया के लिए.....

Dhaara_shree · Urban
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6.दक्ष का जबाब

दक्ष ने सभी को अपनी गहरी नजरों से घूरते हुए कहता है... किससे पूछ कर आपने यें फैसला लिया। हमने यें फैसला लिया है दक्ष औऱ हम आपके पिता के पिता है.... बरखुरदार।

राजा साहब आप हमारे पिता के पिता है औऱ हम आपकी इज़्ज़त भी करते है लेकिन इसका मतलब यें कतई  ही नहीं की आप इतना बड़ा फैसला हमारी मर्जी के बिना करे। औऱ दक्ष प्रजापति पर कोई अपनी मर्जी नहीं चला सकता।

लेकिन दक्ष बेटा इसमें एतराज क्या है, आज नहीं तो कल आपको शादी करनी ही है तो अभी क्यों नहीं। दादा सा। हमें अपनी बात दोहराने की आदत नहीं है।

दक्ष इधर बोल रहा था औऱ उसे गुस्से मे जयचंद का सभी परिवार देख रहा होता है। लतिका की नजरें तो बस दक्ष के चेहरे पर अटक गयी थी लेकिन दक्ष के इन्कार से वो अंदर से खुद को अपमानित महसूस करती है.... औऱ अभी चुप ही रहती है।

वही रंजीत अपनी कुटिलता पर मुस्कान लिए हुए देख रहे होते है.।

यें कहते हुए वो बाहर निकल जाता है। राजेंद्र जी गुस्से लेकिन बेबस नजरों से उसे जाते देखते रहते है। रंजीत..... जयचंद से कहते है की..... राजा साहब माफ कीजिये..... लेकिन अगर आप चाहे तो हमारे छोटे पोते रौनक से लतिका की शादी कर सकते है हमें कोई एतराज नहीं होगी।

जयचंद इस तरह दक्ष के बोलने से अपमानित महसूस करते है लेकिन खुद को संभालते हुए कहते है.... हमें कोई दिक्क़त है।

तो फिर ठीक है रंजीत जी हँसते हुए कहते है की.... पंडित से फिर से मुहूर्त निकलवा लेते है।

पंडित जी... पृथ्वी औऱ कनकलता, रौनक औऱ लतिका के लिए अच्छा मुहूर्त निकालिये।

राजा साहब चारों बच्चों की सगाई औऱ शादी एक दिन ही होगा सकती है। पांच दिन बाद सगाई औऱ उसके अगले दस दिन बाद शादी।

सभी खुश होकर आपस मे एक दूसरे को बधाई देते है। लेकिन ना पृथ्वी को कनकलता मे को दिलचस्पी दिख रही थी। औऱ ना लतिका को रौनक मे।

रौनक को एक नजर मे लतिका पसंद आ गयी थी इसलिए वो खुश था लेकिन लतिका की नजर दक्ष पर आ रुकी थी इसलिए उसने रौनक पर ध्यान नहीं दिया। हालांकि रौनक भी आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक था औऱ लतिका के लिए बिल्कुल बेहतर था.। लतिका थोड़ी सांवली रंग की है लेकिन नैन -नक्स बेहद आकर्षक है, अपनी बहन कनकलता से थोड़ी कम खूबसूरत है।

कनकलता को एक नजर मे पृथ्वी पसंद आ गया था, लेकिन पृथ्वी के लिए यें शादी सिर्फ गद्दी पाने की सीढ़ी थी इसलिए उनको ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी की शादी किससे हो रही है।

रिश्ता पक्का करने के बाद सभी निकल गए।

रास्ते मे सोमचंद अपने पिता से कहता है.... बाबा सा... देखा आपने उस दक्ष प्रजापति को किस तरह उन्होंने हमारा अपमान किया। सुमेर सिंह कहते है, गुस्से को शांत रखो सोम। वो दक्ष प्रजापति है..... जिसके ऊपर नजर दिखाना बहुत भारी पड़ती है..... औऱ उससे दुश्मनी यानी दुनिया के किसी कोने मे  रहना मुश्किल है।

काका सा क्या हम उससे कमजोर है। औऱ आप हमें डरा रहे है। उसका साथ देते हुए सुमेर के बेटे शक्ति औऱ भूषण भी कहते है.... हाँ बाबा सा हम कोई कमजोर नहीं है। औऱ इस अपमान का बदला हम उससे जरूर लेगे। तीनों गुस्से की आगे मे जल रहे होते है।

जयचंद थोड़ी गंभीर आवाज़ मे कहते है..... सुमेर ने जो कहा वो बिल्कुल ठीक कहा है.... औऱ तुमलोगो को उससे उलझने की जरूरत नहीं है.... एक बार शादी हो जाने दो.... फिर सोचेंगे की क्या करना है। सीधे तरीके से दक्ष प्रजापति से उलझना यानी मौत।

हमें बस सही मौक़े का इंतजार करना होगा। जहाँ तक मुझे पता है हमारे होने वाले समधी भी उसी मोके की तलाश मे है।..... फिर खुद से कहते है.... वो दक्ष प्रजापति है.. वो अपने पिता की तरह सज्जन नहीं है..... उसकी नजर बाज की तरह है.... उसमें बहादुरी उसके बाप से आयी है..... दिमाग़ उसकी माँ पार्वती की तरह पायी है औऱ चलबाजी, राजनीती के दाव पेंच.... उसने राजा गजेंद्र प्रजापति से पायी है.... इसलिए उससे उलझना भारी पड़ेगा।

औऱ तुम लोग सिर्फ अपनी बहनों की शादी पड़ ध्यान दो।

इधर प्रजापति महल मे.....

राजेद्र जी गुस्से से कहते है..... रानी सा.... आपने देखा... केसे आपके लाडले पोते ने हमारी बातों को काट कर.... हमारा सबके सामने अपमान किया। राजा सा... आप इतना गुस्सा ना करे आपके स्वास्थ्य के लिए यें ठीक नहीं है। अरे रानी सा.... यें बात आप अपने लाडले पोते को क्यों नहीं कहती।

तुलसी जी उन्हें पानी देते हुए.... बहुत तरीके से कहती है..... वो इसलिए राजा सा की... हमें नहीं लगा की वो गलत है। आप बिना उनकी मर्जी जाने उनकी शादी किसी से केसे तय कर सकते है।

किसी से का क्या मतलब रानी सा.... राजेंद्र जी थोड़ी कठोर आवाज़ मे कहते है। क्या राजा जयचंद कोई औऱ हो गए, क्या आपको नहीं पता उनका खानदान क्या है औऱ रुतबा क्या है।

राजा सा हमें सब पता है, लेकिन आप भूल रहे है की वो हर्षित नहीं जो आपकी बात.... पिता की मर्यादा समझ कर मान ले चाहे वो गलत ही क्यों ना हो..... इस समय तुलसी जी आवाज़ रुधी औऱ गुस्से मे थी..... वो दक्ष है... जिससे सही औऱ गलत पड़ अपनी बात रखनी आती है...

मर्यादा के नाम पड़ राम -सीता की तरह.... आपने हमारे बेटे बहु को बांध रखा था..... वो दक्ष है.... हमारे हर्षित औऱ पार्वती का बेटा..... वो अपनी मर्यादा जानता भी है औऱ निभाता भी है। लेकिन खुद की मर्जी पड़ किसी औऱ की मर्जी पड़ नहीं..... इसलिए वो दक्ष प्रजापति है..... हर्षित या राजेंद्र प्रजापति नहीं।

रानी सा.... तेज आवाज़ मे राजेंद्र जी कहते है। तो आपको लगता है की.... हमारी वजह से हमारे बच्चे अब नहीं रहे.... यें कहते हुए उनकी आवाज़ मे दर्द उभर आया। तुलसी जी आकर उनको बिठाती हुई कहती है..... माफ कीजिये राजा सा...

हमारी कहने का यें मतलब नहीं है.... हम बस ये कहना चाहते है की.... दक्ष ना अपने दादा की तरह ना पिता की तरह..... वो दुश्मन को माफ करने मे नहीं.... खत्म करने मे यकीन रखता है। औऱ यें बात तो आप भी मानेंगे ना की.... हमारे बच्चे इस वजह से ही नहीं रहे।

राजेंद्र जी अपना सर हाँ मे हिलाते हुए कहते है।.... हाँ रानी सा... हम बहुत कमजोर राजा औऱ पिता रहे। ज़ब हम दक्ष को देखते है तो हमारा सर फर्क से उठ जाता है... उनकी उपलब्धियां देख कर। हम दिल से चाहते है की हमारे बाद यें गद्दी वो ही संभाले। लेकिन बाबा साहेब की वसीयत के मुताबिक बिना शादी यें नहीं हो सकता, इसलिए हमें शादी का दबाब उन पड़ बनाया। आपको लगता है की.... हम उनसे हमेशा..... आक्रोश मे बातें करते है.... लेकिन यें सच नहीं है रानी सा.... हमें बस वो गलती नहीं करना चाहते जो हमने अपने बेटे के साथ किया था।

हमें समझते है राजा सा..... लेकिन आप भरोसा रखिए दक्ष ने जरूर कुछ सोच रखा होगा। हमें अपने पोते पड़ पूरा भरोसा है। अब चलिए रात ज्यादा होगा गयी.... दवा लीजिये औऱ सोने चलिए। राजा साहब.... हम्म्म करते हुए अपनी दवाइ लेते है। औऱ दोनों सोने चले आते है।

इधर रंजीत अपनी पत्नी कामिनी के साथ बहुत ख़ुश थे की.... आख़िरकार.... उनका बरसों का सपना पूरा होने वाला था।

पार्वती मेंशन

यहाँ दीक्षा का रो रो कर बुरा हाल था, उसके साथ दे रही थी तूलिका औऱ रितिका। माहौल कुछ इस तरह से था की... सोफे पड़ दक्ष, अतुल, वीर, औऱ अनीश.... अपने सर पर हाथ रखे उन तीनों को देख रहे होते है..... औऱ दक्षांश अपनी माँ औऱ मासी को ऐसे देख.... कर बार बार अपने पिता की तरफ देखता है। क्योंकि दक्षांश भी दक्ष की तरह अपने इमोशन को बाहर बहुत कम लाता है। उसकी नजरें बार बार दक्ष की तरह जाती है की वो उसकी माँ को संभाल ले। लेकिन दक्ष इशारे से कहता है... जूनियर तुम्हारी माँ है तुम सम्भालो। दक्ष की बात समझ..... बेचारा दक्षांश मायूसी से अपनी माँ -मौसी को देखता है।

अनीश को ज़ब बर्दास्त नहीं होता तो कह देता..... अरे यार भाभी पिछले चालीस मिनट से आप तीनों निरुपा राय बनी हुई हो... एक बार बच्चे की तरफ भी तो देखो.... मायूस होकर बैठा हुआ है। उसकी बात सुन तीनों एक बार अनीश की तरफ अपनी आखों को छोटी करके घूरती है।

अनीश संभालते हुए कहता है..... ऐसे मत देखो.... तब से हमें लोग बैठे हुए है की अब चुप हो जाओगी.... अब चुप हो  जाओगी..... लेकिन आप सब तो.... नीरूपा राय को फेल कर दी हो यार।

तूलिका कहती है चुप होगा जाओ मगरमच्छ नहीं तो मैं तुम्हें.... झील मे भेंक आउंगी। अनीश बैठ जाता है।

फिर दक्ष.... दीक्षा के पास आकर कहता है.... स्वीट्स कुछ दिन की बात है। इतना क्यों रो रही हो आप..... देखो जूनियर कितना खुश है.... औऱ आप ऐसे रोयेगी तो वो केसे फोकस करेंगे।

लेकिन दक्ष मैं कभी दक्षु के बिना नहीं रही हूँ। लेकिन मॉम यें भी जरूरी है ना.... औऱ आप भी तो चाहती थी की आपका बेटा.... यें करे फिर आप ऐसे रोयेगी तो मैं केसे जाऊंगा। छोड़ो मैं नहीं जाता हूँ.... कहते हुए मुँह घुमा लेता है।

दक्ष आँखे छोटी करके उसे देखते हुए..... सोचता है यें नौटंकी का गुण तो मुझमे नहीं है..... फिर..... तब उसकी नजर दीक्षा पर जाती है.... यानी मेरी बीबी ऐसी है...। ओह्ह्ह.... दक्ष प्रजापति..... तुम्हारा क्या होगा 😇😇😇।

दीक्षा.... दक्षांश के पास आकर कहती है.... नहीं अब हम नहीं रो रहे है औऱ आप जाईये औऱ मन लगा कर वहाँ पढ़ाई कीजिये। तूलिका औऱ रितिका भी पास आकर.... औऱ हाँ हैंडसम डेविल.... हमदोनों को नहीं भूल जाना।

दक्षांश उन दोनों से लिपट कर कहता है.... मैं होनी यशोदा मॉम को नहीं भूलुंगा कभी मासी। औऱ दोनों के गालों पर किशी कर देता है।

तीनों बारी बारी से उसके माथे को चूमती हुई प्यार करती है..... क्योंकि दक्षांश को अपने गालों पर किसी का छूना पसंद नहीं है।

फिर दक्ष.... उसके पास आकर.... जूनियर.... अपना ध्यान रखना औऱ... ज़ब आपको अपने डैड की जरूरत हो सिर्फ... उसके दिल पर हाथ रख कहता है..... यहाँ से पुकार लेना..... तुम्हारे डैड.... तुम्हारे पास होंगे। अब चले.... सभी दक्षांश को प्यार करके वीर के साथ  विदा करते है। दक्ष खुद वीर के साथ जा रहा होता है.... उसके साथ अतुल औऱ अनीश भी होते है।

पीछे दीक्षा, तूलिका, रितिका अपनी नम आखों से खड़ी उसे जाते देख रही होती है....

दक्षांश दरवाजे से लौट कर तीनों के गले लगता है। था तो वो बच्चा ही.... खुद को संभाल नहीं पाया औऱ लिपटते हुए कहता.... मैं आप सबको बहुत मिस करुँगा.... मॉम आप की बहुत याद आएगी।

उसे ऐसे रोता देख इस बार दक्ष, अनीश, अतुल, औऱ वीर की भी आँखे नम हो जाती है।

दीक्षा उसके आंसू पोंछ कर कहती है..... मेरा दक्षु बहुत स्ट्रांग है.... इसलिए अब रोना नहीं औऱ मुस्कुराते हुए जाओ... चलो मुस्कुरा दो। औऱ उसे लेकर खुद सभी के साथ दक्ष के गाड़ी मे बिठा कर विदा करती है।

खुद को संभालती हुई अंदर आ जाती है।

कुछ दिन ऐसे ही बीत जाते है.... सभी अपनी अपनी रूटीन लाइफ जी रहे होते है....। तूलिका औऱ रितिका अब दीक्षा के साथ ही रहती है। तूलिका अपनी हॉस्पिटल कंटिन्यू करती है। अतुल की नजर हमेशा तूलिका पर होती है लेकिन तूलिका उस पर नजर नहीं डालती।

अनीश ने रितिका को अपने अंदर काम करने के लिए मना लिया था..... रितिका अनीश के साथ काम करना शुरू कर चुकी थी औऱ अनीश उसे समय समय पर.... उसे अपना प्यार जताते रहता था लेकिन रितिका उस पर प्रतिक्रिया नहीं देती थी।

इधर दक्ष.... प्रजापति कंपनी में दीक्षा के साथ काम देख रहा होता है।

दीक्षा... दक्ष के ऑफिस में आती है.... औऱ कहती.... आज शाम को मुंबई की हमारी प्रोजेक्ट से रिलेटेड मीटिंग है औऱ.... यें मीटिंग हमारी कम्पनी के लिए जरूरी है।

दक्ष लेपटॉप पर काम कर रहा होता है लेकिन दीक्षा की किसी बात पर कुछ रिस्पांस नहीं करता। दीक्षा चिढ़ती हुई टेबल पर फ़ाइल जोऱ से पटक देती है.... औऱ कहती है.... यहाँ मैं आपसे कुछ बात कर रही हूँ.... औऱ आपको कुछ समझ नहीं आ रहा है..... यें कहती हुई दक्ष के चेयर के पास चली आती है....। मैं आपसे कुछ बोल रही हूँ। ठीक है फिर जो मर्जी आये वो कीजिये मैं जाती हूँ।

दक्ष उसे कमर से पकड़ कर अपनी गोद में बिठा लेता है औऱ लैपटॉप पर काम कर रहा होता है।

दीक्षा उसकी हरकत पर..... दक्ष यें ऑफिस है औऱ आप यें क्या कर रहे है.....। दक्ष काम करते हुए कहता है.... स्वीट्स आपको नहीं लगता की पिछले कुछ दिनों से आप अपने पति पर ध्यान देना बंद कर चुकी हो.... ऑफिस में होती हो तो ऑफिस का काम करती हो औऱ घर पर होती हो तो अपने दोस्तों के साथ रहती हो..... औऱ ज़ब रात को मैं कमरे में आता हूँ तब तक आप थक  कर सो चुकी होती हो।

अब यें बताओ,यें कहते हुए दक्ष लैपटॉप को बंद कर उसके गर्दन पर अपने होठों को रखते हुए कहता है.... की मैं कब आपसे प्यार करू। दक्ष के इस तरह करने से.... दीक्षा सीहरने लगती है.... औऱ.... अपनी घबराते हुए अल्फाजो को समेट कर.... कहती है.... दक्ष ऑफिस है.... कोई आ जायेगा....। दक्ष अपने चेहरे को उसके बालों में घुमाते हुए कहता है..... स्वीट्स... यें ऑफिस मेरा है... औऱ यहाँ मेरी इजाजत के बिना कोई नहीं आ सकता फिर उसे अपनी तरफ घुमा कर उसके होठों पर अपने होठों को रख देता है..... औऱ बहुत शिद्दत से उसे चूमना शुरू करता है..... उसे इस तरह से चूमते हुए.... दीक्षा भी उसका साथ देने लगती है... दीक्षा का साथ पाते ही... दक्ष की किश वाइल्ड होने लगती है...। दोनों एक दूसरे की मदहोशी में गुम होते की तब तक.... दरवाजे पर ... अतुल...नॉक करता है। पहले तो दक्ष इग्नोर करना चाहता है क्योंकि वो दीक्षा के साथ अपना यें कीमती समय बिताना चाहता है....। लेकिन अतुल के बार बार नॉक करने पर दोनों एक दूसरे को छोड़ देते है।.... स्वीट्स आप अंदर जाकर खुद को ठीक कर लो....। दीक्षा..... हम्म्म... कहती हुई..... अंदर चली जाती है....। इधर दक्ष गुस्से में कहता है..... कमिंग...। यें आवाज़ सुन अतुल मन में..... कहीं गलत टाइम पर तो नहीं आ गया।अंदर आते  ही दक्ष की घूरती आखों को देख, वो समझ चूका था की.... गलत टाइम पर आ गया।.... सॉरी दक्ष.... बात ही कुछ  जरूरी है....।

दक्ष अब गंभीर होते हुए कहता है बोलो... अतुल उसे एक फ़ाइल देता है...। दक्ष जैसे जैसे उस फ़ाइल को देखता है उसके चेहरे के भाव.... बहुत हद तक भयानक औऱ गंभीर हो जाते है। दक्ष मुझे लगता है.... अब तुझे बाहर से खेल खेलने की जरूरत नहीं.... तुझे  खुद अब इस मैदान में उतरना होगा। बहुत खेल लिया तूने बाहर से। तभी अनीश भागते हुए आता है....। उसे इस तरह से आते देख.... दोनों गभीर होकर उसे देखने लगते है.....।क्योंकि अनीश जल्दी इतना परेशान किसी बात से नहीं होता है।

दोनों एक साथ पूछते है की क्या हुआ....।

अनीश दोनों से..... एक बात मालूम हुई है.... अंकल आंटी का जो एक्सीडेंट हुआ था, वहाँ दाता हुकूम के लोगों को देखा गया था। औऱ कुछ तो ऐसे था..... जो उनलोगों ने देखा.... औऱ यें बात किसी को खबर नहीं होने दी।फिर थोड़ी देर चुप होने के बाद कहता है.... एक बात औऱ.... ओमकार रायचंद ने शादी नहीं की है औऱ अब तक वो दीक्षा को पागलो की तरह ढूढ़ रहा है....।

दक्ष... गभीर होकर कहता है....औऱ उसकी बहन।फिर अनीश कहता है.... दीक्षा के चाचा की छोटी बेटी कृतिका की शादी रायचंद परिवार के छोटे बेटे से करवा दी गयी थी।

दक्ष कहता है...तुम अपनी तरफ से पता लगाते रहो.... एक बार यें शादी निपट जाये तब.... दक्ष प्रजापति अपना खेल खेलेंगा।

लेकिन दक्ष तु दीक्षा को कब सबके सामने लाएगा.....। दक्ष कहता है.... पृथ्वी के शादी के बाद।..वैसे भी प्रजापति कम्पनी में बहुत कुछ ऐसे हो रहा है जो.... नहीं होना चाहिये। तो तु सीधे उनलोगों को क्यों नहीं पकड़ता है.... जो कम्पनी को नुकसान कर रहे है।

दक्ष अनीश की बातों का जवाब देते हुए कहता है की..... बात यहाँ काका हुजूर के बेटों की है.... औऱ तुम तो जानते हो उन्होंने मुझे कभी पिता की कमी महसूस नहीं होनी दी.... इसलिए सीधे तरीके से मैं कुछ भी नहीं करना चाहता। चाहे जैसे  भी है....!!!! है तो उनके बेटे ही।

कल वैसे भी सगाई है तो पहले सगाई में चलते है...। तो क्या दीक्षा भी जाएगी।हाँ औऱ उसके साथ उनकी दोनों दोस्त भी जाएगी।

दीक्षा रूम से बाहर आती है.... तो उन्दोनो को देखती हुई ठिठक जाती है। वो दोनों कहते है... आप हमदोनो से क्यों घबरा रही है.... माना की हम रिश्ते में आपके देवर लगते है लेकिन आप हमें अपना बड़ा भाई मान सकती है।

दीक्षा मुस्कुराते हुए.... हाँ कर देती है।

दक्ष, दीक्षा से कहता है.... " स्वीट्स आप ड्राइवर के साथ.मॉल .. चली जाओ.... औऱ तूलिका औऱ रितिका को भी साथ ले लेना..... औऱ तीनों  शॉपपिंग कर लेना. "

लेकिन क्यों दक्ष।... ओह्ह्ह मैं तो भूल ही गया की कल सगाई है... पृथ्वी औऱ रौनक की उसमें चलना है तो इसलिए शॉपिंग कर लो.... हम आप सब को वहाँ से पिक कर लेगे तब तक आप तीनों अपनी पसंद की चीजे ले लेना। यें लो मेरा कार्ड पिन है 2907... जितनी मर्जी चाहे शॉपिंग कर लेना।

लेकिन दक्ष मैं यें केसे?????   क्या मतलब स्वीट्स....आप हमारी है.... हमें आपके तो इस तरह से मेरा सब कुछ आपका है..... आप भूलिए मत.... आप मिसेस दीक्षा दक्ष प्रजापति है। यें लीजिये औऱ जाईये।

दीक्षा कार्ड लेकर तीनों को बाय करती हुई जाने को होती है तो.... दक्ष कहता है रुकिए। फिर अपनी चेयर से उठ कर.... उसके पास आ जाता है.....। दीक्षा ना समझी में उसे देख रही होती है.... की तब तक दक्ष उसके होठों को हल्का चूमते हुए.... माथे को चुम लेता है.... जिससे दीक्षा की आँखे कुछ पल के लिए बंद हो जाती है..,औऱ कहता है..... अपना ध्यान रखियेगा। दीक्षा मुस्कुराते हुई.... हम्म्म... कहती हुई निकल जाती है।

उसके जाने के बाद.... अतुल औऱ अनीश उसे अपनी आँखे छोटी करके देखते हुए कहते है.... तुझे नहीं लगता की तु कुछ ज्यादा बेशर्म हो गया है....। दक्ष उन्दोनो को देख कर कहता है.... औऱ तुम्हें नहीं लगता की.... अब तुमदोनों को भी कुछ बेशर्मी मुझसे सिख लेनी चाहिए की आने वाले वक़्त में काम दे।

उसकी बातें सुन दोनों.... मुँह फाड़ कर उसे देखते है..... क्योंकि उन्हें यें यकीन नहीं होता की.....यें वही दक्ष है।

फिर अतुल थोड़ा गंभीर होकर कहता है, इस तरह से दीक्षा को अकेले भेजना सुरक्षित है।..... दखे कहता नहीं.... सुरक्षित तो नहीं है... लेकिन... उसके पीछे गॉर्ड लगा रखा है मैंने.... लेकिन उसे नहीं बताया है।देखो यार.....इतने साल से उसकी जिंदगी बहुत सामान्य रही है.... औऱ  अचनाक से बॉडीगार्ड... औऱ सब कुछ देख वो पैनिक ना हो जाये इसलिए सब कुछ आराम से कर रहा हूँ जिससे उसे परेशानी भी ना हो औऱ आदत भी हो जाये। कल सगाई में उसे ले जाने का मतलब ही यही है की उसे मालूम हो की अब वो सामान्य सी जिंदगी नहीं जी सकती.....उसकी जिंदगी.....रॉयल.... हो गयी है.... औऱ वो आने वाले समय में रानी सा होगी। औऱ रानी सा की जिम्मेदारीयाँ कितनी है.... यें तुम सबसे तो छिपी नहीं है।

लेकिन तुझे क्या लगता है दक्ष की वो यें जिम्मेदारी संभाल पायेगी। दक्ष मुस्कुराते हुए कहता है.... क्यों तुझे भरोसा नहीं है... जो अतुल सिंघानियाँ.... जो घास में से सुई ढूढ़ने की काबिलियत रखता है.... उससे बच कर उसने खुद को सात साल छिपाया तो..... तुझे ऐसे क्यों लगता है की वो नहीं संभाल पायेगी।

बस उनके अंदर की ताकत से हमें उन्हें रु -ब -रु करवाना है।

लेकिन दक्ष,राजा साहब को केसे मनाओगे, क्या वो दीक्षा को स्वीकार करेंगे।

दक्ष मुस्कुराते हुए.... वो तुम खुद ही देख लेना। वैसे भी दादू जो दिखाते है... सबके सामने वैसे है नहीं। दोनों उसकी बात सुन कहते है.... हमें समझे नहीं।

दक्ष मुस्कुराते हुए कहता है समझ जाओगे। तीनों बात कर रहे होते है.... की दक्ष पर एक फ़ोन आता है.... उधर से कुछ कहा जाता है की दक्ष.... गुस्से में.... कहता... हमें पहुंच रहे है।

क्या हुआ दक्ष। मॉल चलो।

मॉल पहुंच कर सामने देख दक्ष की आँखे सर्द हो जाती है.... अतुल तो.... गुस्से में.... कांप रहा होता है।

ज़ब दीक्षा सबके साथ मॉल में आती है तो तीनों ख़ुश होकर शॉपिंग करने लगती है..... एक ड्रेस उसे काफ़ी पसंद आती है.... जिस पर उसकी नजर जाती है ओर उसे लेने लगती है..... लेकिन वही ड्रेस लावण्या को भी पसंद होती है.... तो उसके हाथों से छीन कर कहती है..... इस ड्रेस को मैंने पसंद किया है तो.... तुम इसे नहीं ले सकती।दीक्षा कुछ नहीं बोलती लेकिन तूलिका उसके हाथो से ड्रेस लेती हुई कहती है... सुनो मिस मेनका...यें ड्रेस हमने पसंद की है... तो यें ड्रेस हमारी हुई।

दोनों में तु तु मैं मैं होनी लगती है की पीछे से कनकलता ओर लतिका आती है....।

लतिका थोड़े करवे शब्दों मैं कहती है, " छोड़िये लावण्या ऐसी चिप तरह की लड़कियों की क्या औकात जो यहाँ से कपड़े खरीदे.... बेबवजह सबकी नजरों मैं आने के लिए... यें तमाशा कर रही है।

तूलिका इस पर कुछ कहती उससे पहले दीक्षा कहती है..... अगर बेवजह ही हम तमाशा कर रहे है तो निकलो यहाँ से.... तुम क्यों इसे बढ़ा रही हूँ। तुम्हारे पास तो तमीज होगी ना। हम देख लेगे की इस ड्रेस को खरीदने की हमारी औकात है याँ नहीं।

दीक्षा से इस तरह की बातें सुन तीनों को अपना अपमान लगता है.....। लावण्या सीधे बोलती हुई..... दो टके की लड़की.... रुक अभी बताती हूँ ओर हाथ उठाती है..... तूलिका पर.। दीक्षा हाथ उसके रोक कर..... एक थप्पड़ लावण्या को लगाती हुई कहती है की तुम्हारी हिम्मत केसे हुई... हाथ उठाने की.... बत्तमीज तो होहिं ऊपर से बददिमाग़ भी हो तुम।

लावण्या  गुस्से में उस शोरूम के मैनेजर को बुलाती है... क्योंकि सभी को पता था की लावण्या शेखावत कौन है।

मैनेजर अगर तुम चाहते हो की तुम्हारा शोरूम बंद ना हो तो यहाँ से यें एक भी कपड़ा नहीं ले जा सकती। लतिका ओर कनक उन तीनों को थोड़ी अपमान भरी नजरों से देख रहे होते है।

मैनेजर अपने कुछ आदमियों को बुलाकर..... उन तीनों को बाहर निकलने को कहते है। रितिका कहती है ओर अगर हम ना जाये तो...। मैडम आपको जाना पड़ेगा। दीक्षा बात को बढ़ाना नहीं चाहती तो वो दोनों के साथ दूसरे शॉप पर चली जाती है... लेकिन इन तीनों को को हर शॉप से लावण्या, कनक ओर लतिका परेशान करती है।

ज़ब वो दब को नजरअंदाज करती हुई फ़ूड फ़ोर्ट पर तीनों बैठती है...। तब उन तीनों पर नजर सोम ओर शक्ति की जाती..... तीनों लगातार... उन सभी को देख रहे होते है.....। तूलिका सभी के लिए कॉफ़ी आर्डर करती है।

वहाँ भी सभी पहुंच जाती है।

अब दीक्षा का पारा पूरा चढ़ जाता है....। वहाँ फ़ूडकोर्ट में...कनक कुछ कहती की उससे पहले ही दीक्षा..... उन तीनों पर चीखते हुई कहती है... एनफ!!!!! जितना इग्नोर कर रही हूँ उतना ही सर पर चढ़ी जा रही हो। किसके दम पर इतना उछल रही हो। अब अगर एक हरकत भी की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

लतिका आगे बढ़ कर.... कहती है क्या कर लोगी। रितिका बहुत शांति से कहती है..... देखो मत बढ़ाओ बात को....।

अब तो बात बढ़ गयी है..... ओर अब तुम तीनों के माफ़ी मागने पर ही खत्म होगी।

तूलिका उन तीनों को ऊपर से निचे देखती हुई कहती है... यें लोग सर्कस से आयी है। ज़ब से मिली है बिना सर पैर की बस उलझ रही है हमसे।

इतनी जलन हो रही है तुम तीनों को जो पुरे मॉल में सिर्फ हमारे पीछे पीछे ही घूम रही हो।

जलन ओर तुमसे.... शक्ल देखी है अपनी कनक जवाब देती है। दीक्षा हंसती हुई कहती है..... देखी भी है ओर मालूम भी है।

खेर छोड़ो.... तूलिका की तरफ देखती हुई.... चल अब बहुत हो गयी शॉपिंग। तीनों जाने लगती है। तो सोम आगे आकर खड़ा हो जाता है।

तूलिका अपनी ऑयबरों ऊपर कर..... उसे देखती हुई कहती है.... अब तुम किस चिड़ियाखाना से भाग कर आये हो।

यें सुनती हुई लतिका उसके टॉप के कॉलर को अचानक पकड़ लेती है। ज़ब तक किसी को समझ आता.... तब तक उसकी टॉप की बाजु खींच देती है..... जिससे तूलिका का एक तरफ का कपड़ा बहुत हद तक फट जाता है।

रितिका चिल्लाती हुई.... लतिका को धका दे देती है..... जिससे लतिका निचे गिर जाती है ओर पिलर से उसे चोट लग जाती.....ओर माथे से खुन गिरने लगता है।

इधर तूलिका के साथ ज़ब ऐसे होता है तो वो अपनी होश खो देती है ओर बुत बनी खड़ी हो जाती है.... रितिका जल्दी से अपनी स्टाल से उसको ढक देते है।दीक्षा उसकी हालत देख.... उसे पुकारती है.... तुली.... तुली.... देख इधर देख। लेकिन तूलिका को होश नहीं होता।

इधर लतिका के सर से खून गिरने पर..... सोम ओर शक्ति.... रितिका ओर तूलिका के बाजु को पकड़ लेते है।

लेकिन दीक्षा सोम ओर शक्ति को लगातार घूम कर दो दो किक मारती है.... जिससे वो दोनों.... रितिका ओर तूलिका को छोड़.... थोड़ी दूर जा कर गिर जाते है।

गुस्से में कनक ओर लावण्या उस तक पहुंचते उससे पहले रितिका उन्दोनो पर 5-7थप्पड़ खींच देती है। ओर गुस्से में कहती..... घटिया ओर जलील लडकियाँ पता नहीं कहाँ कहाँ से आ जाती है। इनको तो पागल खाने में फर्ती कर देना चाहिए।

इधर दीक्षा लतिका के बालों को पकड़ती हुई कहती है... तेरी हिम्मत केसे हुई उसके कपड़े फाड़ने की। वो दोनों उन तीनों में उलझी रहती है। की तब तक सोम ओर शक्ति तूलिका को पकड़ लेता है..... दोनों की नजर वैसे भी तूलिका पर तब से थी.... ज़ब से वो फ़ूड कोर्ट आती है। शक्ति ने उसके बालों को पकड़ रखा होता है ओर सोम उसके फटे हुए कपड़े के ऊपर से स्टाल हटा कर..... उसे गंदी तरीके से पकड़ रखा होता है। फिर चिल्लाते हुए कहता है.... सारे फसाद की जर यही है ना....। आवाज़ सुन दोनों पीछे मुड़ती है.... तो गुस्से में कहती है.... छोड़ो उसे। नहीं तो बहुत बुरा होगा। अपने भाई को इस तरह से तूलिका को पकड़े देख तीनों कहती है.... अब बताती हुई इसे..... यें कहती हुई.... दीक्षा ओर रितिका को दोनों थप्पड़ मारती है। ओर कहती है बहुत दुख हो रहा है ना की सिर्फ उसके कपड़े फटे.... क्यों ना तुम्हारे भी फाड़ दिए जाये। यें कहती हुई अपनी बॉडीगार्ड से कहती है.... पकड़ो दोनों मैडम को....। इधर सोम कहता है.... तुम लोग जो करना है करो.... हम इसे ले जाते है। दीक्षा कहती है आखिरी बार कह रही हूँ रुक जाओ। रितिका तूलिका को देख कर..... बेचैन हो जाती है..... वो तो बुत बन कर खड़ी है। उन्दोनो को मालूम होता है की.... तूलिका को अगर जल्दी इलाज नहीं मिला तो क्या हो सकता है।

दीक्षा कहती है.... तुम जानवर हो क्या छोड़ो उसे दिख नहीं रहा है उसकी हालत। लतिका कहती है उसे मत छोड़ना भाई।

ओर अपने बॉडीगार्ड को कहती है.... कपड़े उतारो इन दोनों के.....।

दोनों  घिरी होती है ओर उनके पास 10 आदमी आ रहे होते है..... दोनों के आखों में डर आ जाता है। जिसे देख पांचो हँसते हुए कहते है..... अब देखो केसे डर रही है। मजा आ रहा है हमें देख कर।

दीक्षा अपने पीछे रितिका को कर देती है....दीक्षा अपनी आँखे बंद कर ली  होती है.... उसको हाथ लगाने के लिए एक आदमी ने हाथ बढ़ाया ही था....की उसकी माथे के बीचो बिच एक गोली चलती है..... ओर वो आदमी वही ढ़ेर हो जाता है।एक गोली सोम  ओर शक्ति की बाजुओं पर लगती है.... दोनों तूलिका को छोड़ देते है।

दीक्षा गोली की आवाज़ सुन सामने देखती है..... ओर लावण्या, कनक ओर लतिका पीछे देखती है.... तो उनकी आँखे फटी रहा जाती है..... सामने दक्ष, अनीश ओर अतुल को देख कर। तीनों के हाथों में ग़न होती है। उनके पीछे बहुत सारे बॉडीगार्ड होते है.... जो मॉल की शटर को गिरा देते है।

लावण्या धीरे बोलती है दक्ष भाई।

दक्ष दीक्षा की तरफ देखता है.... जो अब भी शॉक में खड़ी  होती है। उसे खींच कर अपनी बाहों में भर लेता है। अतुल सीधे तूलिका के पास आता है ओर अपना कोट उतार कर उसे पहना देता है। अनीश आराम से रितिका को लेकर तूलिका के पास खड़े हो जाता है।

अभी मॉल का नजारा देख जो जहाँ होते है वही खड़े हो जाते है..... क्योंकि किसी को उम्मीद नहीं थी दक्ष प्रजापति की यहाँ होने की, वो भी इस तरह से....

लावण्या दक्ष के पास आती उससे पहले गार्ड ने उन्हें रोक दिया और लतिका... दीक्षा को दक्ष के बाहों मे देख.... नफ़रत से उसे  घूर रही थी।

तब तक पृथ्वी और रौनक आते है....

दीक्षा का चेहरा डर के कारण दक्ष के सीने मे छिपा होता है।जिससे पृथ्वी उसका चेहरा नहीं देख पाता। इधर लावण्या गुस्से मे अतुल का बाहों मे सिमटी तूलिका को देख कर..... गुस्से से जल रही थी।

पृथ्वी चिल्लाते हुए.... दक्ष से पूछता है.... तुमने मुझे यहाँ क्यों बुलाया है और.... यें सोम और शक्ति गोली किसने मारी।

फिर लावण्या के तरफ मुड़ कर... गुस्से मे पूछता है.... क्या हुआ... लावण्या.... यें दोनों तो नई है.... लेकिन तुम तो नहीं हो.... ऐसे क्या किया तुमने।

लेकिन लावण्या क्या वहाँ पर कनक, लतिका, सोम, शक्ति वैसे ही दक्ष को देख कजरी डरे हुए थे की अभी पृथ्वी को चीखता देख..... और डर गए। रौनक पीछे से कहता है.... आराम से भाई मैं बात करता हूँ।रौनक कुछ पूछता।

तब तक दक्ष अपनी सर्द आवाज़ मे कहता है..... यें पहली और आख़री गलती है.... अगर आज तुम्हारी सगाई नहीं हो रही होती तो यें सब नहीं जानते की दक्ष प्रजापति क्या है????

लेकिन तुम तो जानते हो ना पृथ्वी मुझे???? तो अपने नए रिश्तेदारों को बता दो की..... दक्ष प्रजापति क्या है???

पृथ्वी गुस्से मे कहता है... ऐसे क्या कर दिया और यें कौन जो तुमसे चिपकी हुई है।

उस पर लतिका कहती है की.... है कोई दो कोड़ी की बाजारू... बात पूरी करती की उससे पहले दक्ष उसके गर्दन को दबा देता है..... एक लफ्ज भी तुम्हारे मुँह से निकला.... तो मैं औरतों पर हाथ नहीं उठाता लेकिन जिसके लिए तुमने यें शब्द बोलने की कोशिश की है.... उसके लिए तुम्हें.... बिच चौराहे पर टांग सकता हूँ। उसके हाथों का दबाब.... लतिका के गर्दन पर बढे जा रहा था..... रौनक और सभी उसे बार बार कहते है.... छोड़ दीजिये भाई सा। लेकिन दक्ष के आखों मे खुन सवार था... और लतिका की आँखे ऊपर आ गयी थी की.... तभी बहुत धीमी आवाज़ के साथ.... एक हाथ दक्ष के हाथों को पकड़ती हुई कहती है..... छोड़ दीजिये दक्ष.... मेरे लिए। दक्ष उस आवाज़ के साथ... अपनी आँखे बंद करता हुआ...उसके गर्दन से हाथो को हटा लेता है।

लतिका खांसती हुई निचे बैठ जाती है उसके गले पर काले निशान आ जाते है। कनक और सोम दौड़ कर उसे संभालते है... लावण्या पानी देती है।

पृथ्वी गुस्से मे कहता है..... कौन है यें दक्ष जो तुम इस हद तक चले गए। दक्ष कुछ कहता.... तब तक दीक्षा उसकी बाहों से निकल कर तूलिका की तरफ दौड़ती है। अतुल भैया.... इसे डॉक्टर की जरूरत है.... जल्दी चलिए। उसके बाल से उसका चेहरा ढका होता है जिससे पृथ्वी उसे नहीं देख पाता।

लेकिन उसकी आवाज़ सुन उसकी जिज्ञासा बढ़ जाती है.... मगर माहौल और हालात देखते हुए.... वो शांत रहता है।

इधर दक्ष सबको लेकर निकल जाता है।

पृथ्वी उन सभी को गुस्से से देखते हुए कहता है..... सोचा नहीं था की.... जयचंद जी के बच्चे इतने बेबकुफ़ होंगे। फिर कनक की बाजु पकड़ कर उठाते हुए कहता है। यें लोग तो छोटे थे.... क्या आपके पास भी दिमाग़ नहीं था। और जोर से उसे धका देता है.... जिससे कनक को वहाँ रखी टेबल की नोक से चोट लग जाती है। और आंसू भरी आखों से उसे देखती है।

पृथ्वी गुस्से मे कहता है.... इन दोनों को डॉक्टर पास ले चलिए और आप तीनों हमारे साथ चलिए.... हम घर छोड़ देते है।

लावण्या उसे ऐसे गुस्से मे देख कहती है.... भाई सा.... गलती उन तीनों की थी..... पृथ्वी बिना उसे देखे कहता है.... हम आपको अच्छी तरह से जानते है लावण्या। यें सुन लावण्या अपनी नजरें निचे कर लेती है। लेकिन आप अपने दक्ष भाई सा को नहीं जानती है।

मुझे नहीं पता वो किसके लिए इस हद तक गए थे। लेकिन एक भाई होने के नाते हम आपको सावधान करते है.... जिनसे आज उलझी है फिर कभी मत उलझीयेगा। नहीं तो आज.... वो रुक गए।

कल रुकेंगे याँ नहीं... हम बता नहीं सकते।

और सोम और शक्ति को देखते हुए कहता है..... रिश्ता जुड़ा नहीं.... दुश्मनी पहले निभा ली। सोचा नहीं था की अपनी बहनों की तरह आप भी बेबकुफ़ है। जाईये मरहम पट्टी करवाईये. शाम को सगाई है। कहते हुए निकल जाता है।

रौनक लतिका को देखते हुए कहता है... एक राजकुमारी होने के बाबजूद आपको भाषा की गरिमा नहीं मालूम है। लतिका कुछ नहीं कहती क्योंकि अभी भी उसके दिमाग़ मे... दक्ष के बाहों मे दीक्षा घूम रही थी।

यहाँ दक्ष के घर पर डॉक्टर आये हुए थे.... तूलिका अब भी आँखे खोली हुई ख़ामोशी से बुत बनी हुई थी.... कोई हरकत उसके शरीर पर नहीं हो रहा था। सभी परेशान थे। अतुल डॉक्टर पर गुस्सा करते हुए कहता है.... कुछ कीजिये डॉक्टर।

उसको इतना परेशान देख.... दीक्षा और रितिका हैरान थी लेकिन दक्ष और अनीश.... कुछ सोच रहे थे।

फिर दक्ष अतुल के कंधे पर हाथो को रख कर कहता है... शांत हो जाओ, अतुल। फिर डॉक्टर से पूछता है... क्या बात है डॉक्टर।

देखिये राजा साहब... यें किसी ऐसी मानसिक दर्द से गुजर चुकी है अपने अतीत मे... की ज़ब भी उस तरह की कोई घटना इनके साथ होगी तो यें ऐसी की शॉक मे चली जाएगी।इसे मनोविज्ञान मे....,, PTSD कहते है...मतलब पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर उन लोगों में प्रकट होने वाला एक सिंड्रोम है, जिन्होंने कुछ अत्यधिक दर्दनाक घटनाओं को सहन किया है।

मैंने इन्हें अभी नींद की इंजेक्शन दे दी है और इनकी कुछ मेडिसिन भी चल रही थी..... रितिका हाँ मे सर हिलाती हुई.... उसका परिस्क्रिप्शन लाकर देती है।

डॉक्टर उसे देख कर कहता है.... हाँ यें मेडिसिन चलेगी इनकी। और हो सकते तो सकारात्मक, प्यार और इनके अंदर के डर को निकलने की कोशिश कीजियेगा।

अब मैं चलता हूँ अगर कोई जरूरत हो तो फोन कर दीजियेगा।

दक्ष सबको लेकर बाहर आता है लेकिन अतुल वही रुक जाता है। अनीश उसके पास आते हुए कहता है तू फ़िक्र मत कर वो ठीक हो जाएगी। अभी उसे आराम करने दे.... चल बाहर चल। और उसे पकड़ कर बाहर ले आता है।

सभी हॉल मे बैठे हुए होते है।

दक्ष... दीक्षा से पूछता है.... रानी सा.... आप बताएगी की तूलिका के साथ.... आखिरी हुआ क्या था। ... मुझे नहीं मालूम दक्ष... जिस हालत मे वो मिली थी... तब वो अस्पताल मे थी और.... हमने कभी उसकी साथ हुए हादसे के बारे मे पूछा नहीं ज़ब तक वो खुद ना बताना चाहे। क्योंकि डॉक्टर ने हमें मना किया था।

और आज जो हुआ.... वो उसकी वजह से शॉक मे चली गयी है।

हम्म्म... कहते हुए...दक्ष अभी आँखे बंद किये हुए था की... उसका फोन बजता है.... जिसमे उसके दादा यानी राजा साहब का नंबर आ रहा होता है।

दक्ष वो फोन पिक करता है.... वो कुछ कहता...इससे पहले... राजेंद्र जी गुस्से मे कहते है.... दक्ष कहाँ है आप...?... और आपने.. आज हमारे होने वाली समधी के बच्चों के साथ क्या किया है???? लावण्या इतना रो क्यों रही है?????

कौन है वो लड़की जिसके लिए आपने अपने रिस्तेदार के साथ ऐसे किया????

दक्ष लगातार अपनी दादा की बात सुन कर.... सिर्फ इतना कहता है..... दादू। यें सुन राजेंद्र जी चुप हो जाते है.... क्योंकि इतने सालों बाद उन्होंने दक्ष के मुँह से अपने लिए दादू सुना। अपने बेटे और बहू के मौत के बाद दक्ष उन्हें सिर्फ राजा साहब करके ही बुलाया करता था। आज दक्ष के मुँह से दादू सुन कर उनकी आँखे नम हो गयी, उनके होठों से शब्द नहीं निकल रहे थे।

दक्ष उनकी भावनाओ को समझ रहा था, इसलिए अपनी बातों को बढ़ाते हुए कहता है..... दादू भरोसा रखो अपने दक्ष पर, बहुत जल्दी मैं सब ठीक कर दूँगा और आपके सवालों का जवाब दूंगा। रखता हूँ।

राजेंद्र जी..... सिर्फ हम्म्म कहते हुए, फोन रख देते है और चुप चाप अपने कमरे मे चले जाते है। तुलसी जी उन्हें जाता देख परेशान हो जाती है और उनके पीछे पीछे चली जाती है। इधर रंजीत, उनके इस रवेये पर.... कुछ नहीं कहते सिर्फ पृथ्वी को अपने साथ लिए, अपने कमरे मे चले जाते है।

कामिनी जी परेशान होती हुई अपनी बहू सुमन जी कहती है..... तुम दोनों पति पत्नी का तो कुछ समझ मे नहीं आता की.... अपने बेटे की शादी मे, ऐसे लग रहा है जैसे तुम दोनों मेहमान हो।

माँ सा.... सब कुछ आपने और बाबा सा ने ज़ब तय कर लिया, हमसे ना कुछ पूछा, ना हमारी राय ही पूछी यहाँ तक की ज़ब हमदोनों नहीं थे तब आपने शादी तय कर दी तो बताईये.... अब हमसे क्या चाहती। सभी तैयारी जैसा जैसा आपने कहा हमने सब कर दिया है।

भाभी सा.... यें आवाज़ लक्षिता शेखावत की थी.... जो अपनी बेटी के बारे मे सुन कर आयी थी। यें आप किस तरह से बात कर रही है.... माँ सा से।

सुमन जी बिना उनकी बातों का जवाब दिए कहती है..... आप बैठिये बाई सा... हम चाय -नाश्ते का प्रबंध करते है। कहती हुई चली जाती है।

देख लिया माँ सा, भाभी सा के तेवर। हम्म्म्म..... इसी बात का तो दुख है मुझे की.... ऐसी बिंदनी मेरा बेटा लाया है, जो मेरी कम... भाभी सा की सगी ज्यादा लगती है। अच्छा अब तू आ गयी है तो जरा  अपनी बेटी को समझा दे.... जो आज हुआ दोबारा ना करे और दक्ष से दूर रहे। लेकिन माँ...सा....।

लेकिन नहीं लक्षिता, तेरे बाबा सा का हुकुम है और अगर उन्होंने कुछ कहा है तो सो है समझ कर ही कहा होगा। चल अब तैयार हो जा.... शाम को मेहमानों आते ही होंगे और जमाई सा और शुभम नहीं आये।

वो माँ सा यें सीधे शाम को आएंगे। शुभम अभी यहाँ नहीं है.... मुंबई गया है किसी जरूरी काम से, शादी मे आ जायेगा।

अच्छा ठीक है।

अंदर रंजीत जी पूछते है... पृथ्वी से, क्या लगता है आपको.... कौन होगी वो लड़की???? मालूम नहीं दादा सा!!! लेकिन दक्ष को इतने गुस्से मे देख इतना तो जरूर कहूँगा की.... दक्ष उसके लिए दुनिया मे आगे लगा सकता है।पता करवाओ कौन है वो। मुझे लगता है जरूरत नहीं पड़ेगी दादा सा, क्योंकि दक्ष कुछ भी छिपा कर नहीं करता है, वो जो भी है, उसे वो जल्दी ही सामने ले आएगा।

वैसे भी दादा सा.... मुझे तो यें जयचंद के साथ रिश्ता ही ठीक नहीं लग रहा। रंजीत जी थोड़ी तेज आवाज़ मे...कहते है..... कहीं ऐसे तो नहीं आप भी अपने बाप के नक्शे कदमो पर चल कर किसी और को पसंद कर रहे है।नहीं दादा सा ऐसे कुछ नहीं है।

अच्छी बात है और ऐसा होना भी नहीं चाहिए क्योंकि आपके जन्म से पहले ही हमने जो सपना देखा था.... उसमें हम कोई परेशानी नहीं चाहते। लक्ष्य ने वैसे ही हमें हमेशा निराश किया है।

लेकिन आपसे हमें ऐसी उम्मीद नहीं है तो इस बात का ध्यान रखे। जाईये... शाम को आपकी सगाई है, उसकी तैयारी कीजिये।

जी दादा सा, कहते हुए पृथ्वी बाहर चला जाता है।

इधर रंजीत जी किसी को फोन करते हुए कहते है..... तैयारी कर लो क्योंकि हर्षित का बेटा शायद बहुत जल्दी.... सीधे मैदान मे उतरे और हाँ..... एक बात सुना है.... उसके पास एक लड़की है..... जिसके लिए उसकी आखों मे एक जूनून है। तो पता करो दक्ष प्रजापति की कौन सी कमजोरी है। फिर उधर से कुछ कहा जाता है।.... हाँ शाम को मुलाक़ात होगी।

इधर पृथ्वी कमरे मे आकर गुस्से से दीवाल पर ज़ोर से हाथो को मारता है.... फिर अपने फोन से किसी x2 को मेसेज करता है। और बिस्तर प्रकाख बंद करके लेट जाता है।

तुलसी जी ज़ब राजेंद्र जी के कमरे मे आती है तो.... राजेंद्र जी कहते है.... रानी सा दरवाजा बंद कीजिये। तुलसी जी कहती है... राजा साहब क्या हुआ...। राजेद्र जी ख़ुशी से पीछे मुड़ते हुए.... तुलसी जी को अपनी बाहों मे लेते हुए कहते है..... रानी सा हम आज बहुत खुश है। तुलसी जी उसी तरह उनकी बाहों मे.... खड़ी कहती है..... क्यों आज आपके पोते ने आपको दादू बुलाया इसलिए।

राजेंद्र जी उनको अलग करते हुए, हैरानी से पूछते है, आपको केसे मालूम हुआ रानी सा।

तुलसी मुस्कुराते हुए कहती है... आप भूल रहे है..... हम तबसे आपके साथ है.... ज़ब आप 15 साल के थे और हम 12 साल के। हम पहचानते है... आपकी हर धड़कन को। हाँ रानी सा.... आज हम बहुत खुश है।

इधर दक्ष सबके साथ हॉल मे बैठा हुआ.... तूलिका की कंडीशन को लेकर फ़िक्र मे था। अनीश कहता है दक्ष से.... क्या आज सगाई मे जायेगा। नहीं जिसकी सगाई है उसे तो उसमें कोई दिलचस्पी ही नहीं है। मतलब कुछ नहीं। अभी सगाई मे तो नहीं जायेगे। फिर दीक्षा को।

दक्ष की नजर दीक्षा पर जाती है जो बहुत गहरी सोच मे उसके बगल मे बैठी हुई होती है।

कंटिन्यू.....