1.] बड़े बड़े शहरों के इक्के - गाड़ीवालों कि जबान के कोरों से जिनकी पीठ छिल गई है और कान पक गए है , उनसे हमारी प्राथना है कि अमृतसर के बंबुकार्टवालों कि बोली का मरहम लगाएं । जब बड़े - बड़े शहरों की चौड़ी सड़कें पर घोड़ों की पीठ को चाबुक से धुनते हुए इक्केवाले कभी घोड़ों कि नानी से अपना निकट संबंध स्थिर करते है ,, कभी राह चलते कि आंखों के न होने पर तरस खाते हैं ,, तो कभी प्यासा देखकर । अगल बगल में सजी दुकानें बाजारों कि सोभा बढ़ाने के लिए ही लगे है ।।।।
ऐसे ही एक बाजार में एक लड़का और एक लड़की चौक कि एक दुकान में आ जाते है । उसके बालों और इसके ढीले सूथने से जान पड़ता है कि दोनों सीख है ।। वह अपने मामा के केश धोने के लिए दही लेने आया था, और यह रशोई के लिए सामान ।। दुकानदार एक परदेशी से गुथ रहा था, जो कुछ पैसों कम के लिए हो रहे थे ।
तेरे घर कहां है ,, ?
" मगरे में - और तेरे "
" मांझे में ; यहां कहां रहती है ?"
" अतरसिंह की बैठक में , वो मेरे मामा है ।"
" मै भी मामा के यहां ही हूं , उनका घर गुरूबाजार में है ।"
इतने में दुकानदार निबटा और इनका सौदा देने लगा ।। सौदा लेकर दोनों साथ चले ।। कुछ दूर चलकर लड़के ने पूछा तेरी शादी हो गई क्या ?
इसपर लड़की ने थोड़ी आखों में आंखें डालकर धत कहकर भाग गई , लड़का मुंह देखता रह गया ।।।...