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एक राजा था. उसका नाम कर्म सिंह था. राजा वीर होने के साथ-साथ न्यायप्रिय शासक भी था. प्रजा को अपनी संतान समझता था. सांय को स्वयं नगर में घूम-घूमकर प्रजा का हाल मालूम करता था. उसके सिर्फ एक दुख था. वह था संतान का दुख. राजा सोचता,

"मेरे मरने के बाद राज्य का उत्तराधिकारी कौन होगा?"

राजा ने काफी यज्ञ करवाये, दान दिया लेकिन सफलता नहीं मिली. रानी स्वयं दुःखी थी. एक बार राजा ने सुना कि राज्य में एक ऐसे साधू आया है, जिसके आशीर्वाद से सब इच्छा पूरी हो जाती है. बस राजा रानी को लेकर साधू से मिलने गए. साधू ने राजा का हाथ देखकर कहा:-

"राजन तुम्हारे संतान तो है लेकिन उस के कारण तुम्हे काफी दुःख सहना पड़ेगा."

रानी बोली:-

"हम चाहे जितने दुःख सह लेंगे लेकिन संतान का मुंह देखना चाहते है."

साधू बोला:-

"तुम्हारी इच्छा पूरी होगी"

यह कहकर उसने रानी को थोड़ी मिट्टी उठाकर दी और कहा:-

"इसे तीन दिन तक सर पर रखे रहना"

राजा-रानी मिट्टी लेकर महल में आ गए. ठीक एक साल बाद रानी ने एक सुन्दर लड़की को जन्म दिया. लड़की भी ऐसी मानो कोई परी हो. सारे राज्य में ख़ुशी की लहर दौड़ गई. रात को घी के दीपक जलाए गए. तीन दिन तक सारे राज्य में ख़ुशी की लहर छाई रही.

धीरे-धीरे राजकुमारी बड़े होने लगी. बड़ी होने के साथ-साथ वह अधिक चंचल भी हो गई. उसका नाम स्वर्णा कुमारी रखा गया. ज्यों-ज्यों वह बड़ी होती गई, उसका रूप निखरता गया. स्वर्णा कुमारी के रूप की चर्चा कई राज्यों में फैल चुकी थी.

एक दिन एकाएक राजा के पास पत्र आया

"या तो वह राजकुमारी का विवाह मेरे पुत्र महमूद के साथ करदें अन्यथा राज्य पर आक्रमण कर दिया जाएगा."

राजा सच्चे क्षत्रिय थे, वे भला चुनौती कैसे सहन कर सकते थे. कुछ दिनों बाद दोनों राज्यों में भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें राजा कर्म सिंह जीत गए, पूर्ण राज्य में खुशियां मनाई गई.

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