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रक्त की प्यास

"अरे अंकिता तुमने गैसत्राण क्यों नहीं पहना? यह वायुयान शीघ्र ही उतरने वाला है।" - डेविड ने चिंता भरे स्वर में कहा।

"हां,वो मैं भूल गई थी। अभी पहनती हूँ।" - अंकिता ने कहा और एक काले रंग का मुखौटा निकालने लगी। यह मुखौटा एक गैसत्राण था जो वायु में उपस्थित हानीकारक तत्वों को छान कर धारक को शुद्ध वायु प्रदान करता था।

"तुम भी न... ऐसे कैसे भूल जाती हो? प्रतीत होता है जैसे तुम्हें अपने जीवन से लगाव ही नहीं।" - डेविड ने कहा।

"ऐसा कुछ नहीं है।" - अंकिता ने कहा और डेविड ने एक गहरी सँास भरी।

"संपूर्ण विश्व की वायु प्रदूषित व विषैली हो चुकी है। मनुष्यों के सिवाय अब और कोई भी प्रजाति जीवित नहीं बची है। हमें हमेशा गैसत्राण पहने रखने की आदत होनी चाहिए।" - डेविड ने कहा।

"हाँ-हाँ इस वायुयान में तो शुद्ध वायु है न? अब भाषण बंद करो।" - अंकिता ने गुर्राते हुए कहा।

"हुंह! तुम्हारी चिंता रहती है मुझे। परंतु तुम्हें इससे क्या, है ना?!" - डेविड ने चिढ़ कर कहा।

अंकिता ने कोई उत्तर नहीं दिया व वायुयान की खिड़की से बाहर देखने लगी। पीले व काले मेघ मीलों तक फैले हुए थे। वे अम्लीय तत्वों से भरे हुए थे।

एक समय था जब पृथ्वी पर मेघ शुद्ध जल की वर्षा करते थे। परंतु अब तो केवल अम्ल की ही वृष्टि होती है। यह 22वीं शताब्दी है। मनुष्यों ने विज्ञान में काफी उन्नती कर ली परंतु आत्म संयम न होने के कारण वह पृथ्वी का नाश करते चले गए। उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव की संपूर्ण बर्फ पिघलने से प्रलयंकारी सूनामी उत्पन्न हुई व आधी मानव जनसंख्या को लील गई। फिर पर्यावरण में हुए बदलावों के चलते सभी पशु-पक्षी समाप्त हो गए। अंबर से मानों मृत्यु बरसने लगी। अनेक देश नष्ट हो गए।

विज्ञान की सहायता से बचे-खुचे मानवों ने स्वयं की रक्षा करी। सभी चीजें व भवन अम्ल प्रतिरोधी बना दिए गए। गैसत्राण से मनुष्य सांस लेते तथा कवचधारी वाहनों का प्रयोग करते।

शीघ्र ही वायुयान विमान पत्तन पर पहुँच गया तथा सभी लोग उतर गए।

"शीघ्र चलो। इससे पहले कि वर्षा होने लगे, हमें शोधकेंद्र भी पहुँचना है।" - डेविड ने कहा।

"अरे ठीक है भई!" - अंकिता खीझ कर तेज चलने लगी। वह दोनों तुरंत ही वायुु पŸान से शोध केंद्र की ओर चल पड़े। उनकी सवारी एक कच्छपनुमा कवचधारी वाहन था जो भारी होने पर भी तीव्र गति से दौड़ रहा था। उसके अंदर अंकिता, डेविड व एक अन्य व्यक्ति भी था जिसने सफेद वस्त्र व एक चूहे के मुख वाला गैसत्रांण पहना हुआ था।

"आप ने अकारण ही हमें लेने आने का कष्ट उठाया।" - डेविड ने इस व्यक्ति से कहा।

"आप एक उत्तम श्रेणी के वैज्ञानिक हैं डेविड। आप की सुरक्षा नवेशिया शोध केंद्र का उŸारदायित्व है। वैसे भी यह तो मेरा काम ही है।" - वह व्यक्ति बोला।

डेविड ने मुस्काया और अंकिता का परिचय दिया।

"यह मेरी...मित्र तथा शिक्षु है।" - डेविड ने कहा।

"आप से मिल कर प्रसन्नता हुई।" - वह व्यक्ति बोला परंतु अंकिता ने कोई उत्तर नहीं दिया।

"क्षमा कीजिएगा, अंकिता थोड़ी गंभीर स्वभाव की है, किसी से अधिक वार्ता नहीं करती।" - डेविड ने कहा।

"कोई बात नहीं। डेविड आप बताएं क्या आपका शोध सफल रहा? आप अमिथुनक या कहूँ कि 'क्लोन' तकनीक की त्रुटियों को दूर करने ने संबंध में पश्चिमी महाद्वीप गए थे न?"- उस व्यक्ति ने पूछा।

"जी हाँ। पश्चिमी महाद्वीप की प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान हमसे थोड़ा उन्नत है। उनके शोध केंद्र में मैनें कई अनुसंधान करके अंत में सफलता प्राप्त कर ही ली!" - डेविड ने उत्साह से कहा। यह सुनकर अंकिता ने आंखें तरेरीं।

"अब हम ऐसे मानव अमिथुनक बना सकते हैं जो न केवल रोगमुक्त होंगे, अपितु लंबी आयु वाले भी होंगे! अब हम मानव जनसंख्या को तेजी बढ़ा सकते हैं!" - डेविड ने कहा।

"हाँ और बची-खुची पृथ्वी का भी सत्यानाश कर सकते हैं।" - अंकिता बोल उठी।

"क्या अनर्गल बात करती हो!"- डेविड क्रोध में अंकिता को घूरते हुए बोला।

"हुंह। तो और क्या कहूँ?"- अंकिता भी लड़ने को तैयार थी।

कड़ाक! - तभी एक मशीनी आवाज आई। उस व्यक्ति ने डेविड पर एक पिस्तौल तान दी थी।

"य-यह आप क्या कर रहे हैं?"- डेविड ने अचंभित हो पूछा।

"अपने शोध की समस्त जानकारी मेरे हवाले कर दीजिए डेविड। वैसे इस्लामाद्वीप के बादशाह आपको वहाँ के शोध केंद्र का मुखिया बनाने को भी राजी हो जाएंगे अगर आप मेरे साथ चलें। और आपकी बेगम अंकिता से भी हमें कोई परेशानी नहीं है। आप दोनों मेरे साथ चलें या फिर अपनी आखिरी साँसें गिन लें।"- वह व्यक्ति बोला।

"यह बोली.... तुम...तुम इस्लाामाद्वीप के जासूस हो!?"- डेविड चौंक गया।

"हा-हा! जी हाँ मियां। तो... क्या चुना आपने? घुटने टेकना या मौत?"- उस व्यक्ति ने पूछा।

तभी अंकिता ने बिजली की गति से उस पिस्तौल को लात मारकर गिरा दिया। वह जासूस चौंक गया और पीछे हटकर उसने दूसरी पिस्तौल निकाल ली। पर तभी डेविड उस पर कूद पड़ा और वह दोनों गुत्थमगुत्था होकर लड़ने लगे। जासूस की पिस्तौल कई बार गरजी परंतु वह डेविड के कारण वह लक्ष्य नहीं साध पाया अपितु उनके वाहन को जरूर क्षति पहुँची।

अंदर धुआं भरने लगा तथा वाहन की स्वचालक प्रणाली खराब होने लगी। उनका वाहन टेढ़ा-मेढ़ा चल रहा था और कभी भी दुर्घटनाग्रस्त हो सकता था। अंदर डेविड और जासूस लड़ रहे थे। तभी अंकिता ने नीचे गिरी हुई पिस्तौल ढूंढ ली और जासूस पर तान दी।

"रूक जाओ अन्यथा मृत्यु तुम्हें लील जाएगी!"- अंकिता ने जासूस से कहा। पर अब तक जासूस ने मरने-मारने की ठान ली थी। उसने डेविड को लात मारकर धकेल दिया और अंकिता की तरफ अपनी पिस्तौल तान दी।

धांय!! धांय!!- दो गोलियां चलीं और अंकिता व जासूस दोनों ही ढेर हो गए।

"नहीं!! अंकिता!!"- डेविड चीखा और उसकी ओर लपका। गोली अंकिता के सिर पर लगी थी। जासूस का निशाना पक्का था। अंकिता की सांसें रुक चुकी थीं।

डेविड जैसे विक्षिप्त सा हो गया था। वह कभी रोता-बिलखता तो कभी हंसता।

"हा-हा-हा! इसमें मेरा ही दोष है! न मैं वह अनुसंधान करता, न ही यह जासूस हम पर घात करता। ओह अंकिता यह मैनें क्या किया! मैं तो तुम्हें बता भी नहीं पाया कि मैं तुमसे कितना..." -डेविड अंकिता को बांहों में भरकर विलाप कर रहा था।

तभी अचानक अंकिता की आंखें खुलीं और वो डेविड को घूरने लगी।

"अ-अंकिता!- डेविड चौंक गया। उसकी बुद्धि जाम हो गई। अंकिता अचानक ही पुर्नजीवित हो गई थी पर उसकी आंखें अब काली नहीं वरन् लाल थीं!

अचानक अंकिता ने गुर्राते हुए अपना मुंह खोला और डेविड ने देखा कि अंकिता के आगे के दो दांत लंबे और नुकीले हो गए थे। इससे पहले कि डेविड कुछ सोच पाता, अंकिता ने अपने दांत उसकी गर्दन में धंसा दिए और डेविड का रक्त पीने लगी!

"आह! अंकिता! यह क्या कर रही हो!? क्या हो गया है तुम्हें? आह!!"- डेविड की चीखें वाहन मेें घुट कर ही रह गईं और बाहर वाहन अपने मार्ग से हट कर एक खाई में जा गिरा। एक धमाका हुआ और प्रचंड ज्वाला ने वाहन के अंदर उपस्थित तीनों लोगों को लील लिया।

उस संध्या को सूर्य का प्रकाश भी लाल ही था। वाहन के जलते हुए मलबे से फिर अंकिता बाहर निकली। उसकी आंखें अभी भी लाल थीं व उसके मुख पर डेविड का रक्त लगा हुआ था। अग्नि की लपटें अंकिता के वस्त्रों को तो जला रही थीं, परंतु उसकी काया को कुछ भी क्षति नहीं पहुंचा पा रही थीं।

"यह...यह मैनें क्या कर दिया!" - अंकिता चीखी। ओह डेविड... यह क्या हुआ है मुझे? मैं... मैं अभी भी प्यासी हूं। मुझे...और रक्त चाहिए!"