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वो शाम बहुत सुहानी थी

वो शाम बहुत सुहानी थी

प्रकृति सबसे सुन्दर रुप में आयी हुई थी

आसमां में लालिमा छाई हुई थी

सूरज धीरे-धीरे ढल रहा था 

देख के उसको मेरा दिल मचल रहा था

वो शाम बहुत सुहानी थी

गंगा किनारे बैठे थे हम

दोस्तों में बाँट रहे थे गम

हवाएँ गुनगुना रही थी 

मेरे दिल में हलचल मचा रही थी 

वो शाम बहुत सुहानी थी

उस शाम का लुफ्त उठाया हमने 

जब आपस में हँसी मज़ाक उड़ाया हमने

शुरु जब मज़ाक का दौर हुआ

ठहाको का शोर चारों ओर हुआ

वो शाम बहुत सुहानी थी

- बालानाथ राय

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