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श्री

अहम ब्रह्मास्मि:

{मैं ही प्रारंभ हो, मैं ही अंत, मैं समय, मैं रचयिता, मैं ही पालनहार, मैं ही विनाशक, मैं आदि, मैं ही अनंत, मैं ही सत्य, में ही असत्य मैं ही सर्वस्व।}

बहुत समय पहले की बात है, जब इस ब्रह्माण्ड की भी उत्पत्ति नहीं हुई थी उससे पहले सिर्फ एक बिंदु था। उस बिंदु में अनंत शक्ति तथा ऊर्जा का भंडार था। लेकिन उसमें चेतना का अभाव था, उसमें सोचने समझने और महसूस करने की शक्ति का अभाव था।

कुछ समय पश्चात उस बिंदु से 13 छोटे छोटे कण अलग हो गए और वह उस बिंदु के चारों ओर परिक्रमा करने लगे। इसी तरह कई वर्ष बीत गए, फिर कुछ समय बाद सबसे बड़े कण आदि शक्ति में चेतना का जागरण हुआ। जागरण होते ही उसमें खुद से कुछ प्रश्नो ने भी जन्म लिया जैसे की वह कौन है, वह क्यों है, वह कहाँ से आया है, और वह यहाँ किस लिए है। इसी तरह के कई और प्रश्नों ने भी जन्म लिया। इसी तरह थोड़ा समय और बीत गया। उसने महसूस किया कि वह वहाँ अकेला नहीं है, उसके जैसे वहाँ कुछ और है। आदि शक्ति ने वहाँ मौजूद अपने जैसे उन 12 कणों से संपर्क करने का प्रयास किया किंतु वह असफल रहा, क्योंकि उन 12 कणों और निराकार शिवा में चेतना का अभाव था। जब आदिशक्ति का यह प्रयास असफल रहा तो उसमें दुख का भाव पैदा हुआ, इससे वो और वह दुखी रहने लगा, कुछ समय बाद जब आदिशक्ति ने दुखी मन से अपनी चेतना मैं सोचा कि वह उन 12 कणों को देखना चाहता है, तभी उसने पाया कि वह उन 12 कणों को तथा निराकार शिवा को देख सकता है। तब आदिशक्ति को एक उपाय सुझा कि वह अपने जैसों का निर्माण करेगा। जब आदशक्ति ने अपने जैसों का निर्माण करना चाहा तो वह फिर असफल रहा, तभी उसको दूसरा सुझाव आया की वह अपने जैसों का निर्माण तो नहीं कर सकता लेकिन वह उनका निर्माण अपने आपसे ही करे तो शायद वह इसमें सफल हो जाये, यह सोचकर आदि शक्ति ने अपने आप से और अपनी चेतना से तीन भागो को अलग कर दिया। और वह इसमें सफल रहा थोड़े समय पश्चात् उन तीनों भागों मैं भी आदि शक्ति की तरह ही सोचने समझने और महसूस करने तथा भावनाओं का वास् था। लेकिन थोड़े ही समय बाद आदि शक्ति को ये आभास हो गया की वह अब भी अकेला है, क्योंकि वह उन तीनों भागों के बारे में पहले से ही सब कुछ जैसे कि वो कौन है, क्या है, कैसे हैं, ओर आगे क्या करेंगे। वह उनका भूतकाल वर्तमान और भविष्य सब कुछ जानता था इसीलिए उसे फिर अकेलापन महसूस होने लगा। कुछ समय पश्चात आदि शक्ति को एक ओर सुझाव आया जैसे की वे तीनों भाग उसकी रचना है इसीलिए वह उनके बारे में सब कुछ जानता है, अगर वह किसी और की रचना का भाग बने तो वह अपने उस अकेले पन से छुटकारा पा सकता है। इसीलिए उसने उन तीनों भागों को एक कार्यभार सौंपा कि वह सृष्टि ब्रह्मांड की रचना करें और उन्हें नाम दिए हैं।

पहले भाग को आदि शक्ति ने ब्रह्मा नाम दिया जिसको उसने रचना का कार्यभार सौंपा।

दूसरे भाग को आदि शक्ति ने विष्णु नाम दिया जिसको उसने पालन अर्थात सृष्टि को चलाने का कार्यभार सौंपा।

और तीसरे भाग को आदि शक्ति ने महेश नाम दिया जिसको उसने समय आने पर सृष्टि का विनाश करने का कर्तव्य सौंपा।

उसके बाद आदि शक्ति ने अपने शक्तिओं को उन तीनों भागों में बराबर बांट दिया उसने सिर्फ अपनी चेतन को अपने पास रखा, आदि शक्ति ने अपने सर्वशक्तिमान(omnipotent) सर्वज्ञ(omniscient) सर्वभूत(omnipresent) को त्याग दिया और अपनी इच्छा को उन तीनों को बता कर गहरी नींद मैं सो गया।

ब्रह्मा ने अपने शक्तिओं का उपयोग करके अनंत ब्रह्मांड का निर्माण किया, उसने कई सारे अलग अलग आयामों का भी निर्माण किया। उनमें से एक स्वर्गलोक जहाँ देव निवास करते और वह वहाँ से संपूर्ण ब्रह्मांड में व्यवस्था तथा शांति बनाए रखते थे।