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"Holoom Almahdi".. (Jinno Ka ek Shahzada)

"weh janna chahti thi is kahani ko..jo usne jee nahi thi..mahar phir bhi uska koi na koi kirdar usme raha tha.!log uske naam ko nahi magar uske chehre ko jante the!or weh bhi weh log jo insan hi nahi the..!naa jane kya tha un pardo key pichhe...jinme yeh kahani chhupi hui thi...use shayad in par se parde uthane padenge"!!

FARHA_KHAN · Horror
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"Hawa mai thappad ka lagna"

डिनर के बाद सब अपने अपने कमरों में आ गए थे!यास्मीन आज भी उसके साथ लटक गई थी!दोनों कुछ देर बातें करती रहीं फिर यास्मीन सो गई मगर उसे नींद नहीं आई!वह खिड़की पर चली आई थी!आसमान बिल्कुल सियाह हो रहा था!कोई चाँद या तारा नज़र नहीं आ रहा था!दूर कहीं कोई रौशनी सी चमक रही थी!जैसे किसी ने ज़मीन पर सितारे बिछा दिए हों!अमल ने इधर उधर निगाहें घुमाकर थोड़ा गौर से देखा और उसे लगा किसी ने उसके दिल पर खौफ का हथोड़ा मार दिया है!बड़े बड़े लफ़्ज़ों में लिखा हुआ था!(साया महल)अमल ने झटके से खिड़की का पट बंद कर दिया!और गहरे गहरे साँस लेने लगी!यह क्या था?आज से पहले तो कभी वह उसे नहीं दिखाई दिया था!उसने हल्का सा खिड़की का पट खोला और थोड़ा सा बाहर झाँका दूर दूर तक कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था!उसने खिड़की वापस बंद कर दी और तेज़ तेज़ क़दमों से चलती अपने बेड तक आई!तभी ज़ोर की चीख़ मारती यास्मीन नींद से उठ गई थी!अमल की भी डर कर चीख़ निकल गई!"क्या हुआ?...क्या हुआ?"वह बेड से कूद कर उसके पास पहुंची थी!वह बेइंतिहा बौखलाई हुई थी!"क्या हुआ?यास्मीन?"उसका दिल तेज़ तेज़ धड़क रहा था!"किसी ने..मुझे...थप्पड़ मारा"वह हड़बड़ाई आवाज़ में कह रही थी!"क्या बकवास कर रही हो?"अमल को उसके इस वक़्त के मज़ाक से बेहद ग़ुस्सा आया था!उसका दिल चाहा उसे अमल ही एक थप्पड़ लगा दे!वह पहले ही इतनी डरी हुई थी ऊपर से उसे मज़ाक सूझ रहा था!"मैं मज़ाक नहीं कर रही!किसी ने मुझे तीन बार थप्पड़ मारा"यास्मीन भी ज़ोर से बोली थी और अपनी चादर लेकर फ़ौरन उठ गई!"मैं यहाँ से जा रही हूँ..मुझे तो पहले ही शक था तुम्हारे कमरे में कोई साया है"वह बोखलाती हुई बाहर निकलने लगी थी!अमल ने उसका हाथ थाम लिया!"अच्छा रुको तो!मैं हूँ ना यहीं लेट जाओ!मेरे पास.."उसे भी अब डर लगने लगा था!बाहर निकलती यास्मीन से उसकी तरफ चेहरा घुमाया था लेकिन वह चेहरा यास्मीन का नहीं था!"जाने दे उसे"वह चेहरा और आवाज़ क़तई भी यास्मीन की नहीं थी!उसकी आँखों से कोई चिंगारी से लपकी थी!अमल ने ख़ौफ़ज़दा होकर उसका हाथ छोड़ दिया था!दिल जैसे सीने के अंदर यूँ धड़क रहा था जैसे कोई घबराहट में दरवाज़ा पीटता है!यास्मीन उसे देखे बिना बाहर निकल गई!गेट अपने आप बंद हो गया था!अमल ने चारों तरफ ख़ौफ़ज़दा नज़रों से देखा!कमरे में हल्की लाइट जल रही थी!अमल पसीना हो रही थी!ना जाने किस लम्हें कोई मोत बन कर उसके ऊपर आ लपकता!कहाँ फंस गई थी!चंद लम्हों बाद कमरे में किसी के दाखिल होने की आवाज़े आना शुरू हो गई थीं!अमल पीछे हटते हटते दीवार से लग गई थी!ज़बान पर भी ताले पड़ गए थे!कुछ पढ़ने के लिये याद नहीं आ रहा था!मम्मा ने बहुत कोशिश की थी उसे सूरतें याद कराने की मगर उसे हर बार भूल जातीं!आँखों में तेज़ नमी दर आ रही थी!उसका तो आखरी वक़्त आ गया था!तलवार की वही तेज़धार चमक नज़र आने लगी थी!मोत के फ़रिश्ते थे शायद!वह चार लोग थे!इतने लम्बे लम्बे क़द कि सर उठा कर देखने से मुश्किल से उनके चेहरे दिखाई दे रहे थे और इतने चौड़े कि इस पार से उस पार!उसकी आंखें पत्थर हो रही थीं और जिस्म बर्फ की तरह जम गया था!वह हिल भी नहीं पा रही थी!ठन्डे ठंडे पसीनों ने उसके बदन को भिगो डाला था!जैसे यह एक खौफनाक ख्वाब था!वह चारो उसके सामने खड़े हो गए थे!"आपको हमारे साथ चलना होगा"उनकी आवाज़ जैसे किसी ने स्पीकर को फुल वॉल्यूम में करके उसका कान बिल्कुल क़रीब कर दिया हो!जिसे सुन कर समाअत फटने को तय्यर हो जाये!वह बस कोई बेजान मूरत थी!उन्होंने उसे छुए बिना दीवार से हटा दिया था!और चारों के चारों तरफ खड़े होकर मुँह ऊपर की तरफ उठाकर खड़े हो गए थे!अमल के पैर उनके साथ साथ ज़मीन से उठने लगे थे!

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